आज यहां तो कल वहां ,
अपनी मंजिल खोज रहा ,
आज यहां तो कल वहां
क्या चाहता है कल क्या होगा ,
इसका कोइ अंदाज नहीं ,
कल भी वह अंजाना था ,
अपने सपनों में खोया रहता था ,
लक्ष क्या है नहीं जानता था ,
बिना लक्ष दिशा तय नहीं होती ,
यह भी सोचता न था ,
पढता था इस लिये ,
कि पापा मम्मी चाहते थे ,
या इसलिए कि,
बिना डिग्री अधूरा था ,
पर डिग्री ले कर भी ,
और बेकार हुआ आज ,
जो छोटा मोटा काम ,
शायद कभी कर भी पाता ,
उसके लिए भी बेकार हुआ ,
ख्वाब बहुत ऊंचे ऊंचे ,
जमीन पर आने नहीं देते ,
जिंदगी के झटकों से ,
दो चार होने नहीं देते ,
हर समय बेकारी सालती है ,
मन चाही नौकरी नहीं मिलती ,
यदि नौकरी नहीं मिली ,
तो आगे हाल क्या होगा ,
यही सवाल उसको ,
अब बैचेन किये रहता है ,
यदि थोड़ी भी हवा मिली ,
एक तिनके की तरह ,
उस ओर बहता जाता है
पैदा होती हजारों कामनाएं ,
कईसंकल्प मन में करता है ,
कोइ विकल्प नजर नहीं आते ,
दिशा हीन भटकता है |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
10 comments:
बहुत बढ़िया |
बधाई स्वीकारें ||
बहुत सुन्दर!
हाँ आशा जी ये बेकारी और बेरोजगारी के पल बहुत सालते हैं दिल को ,,संकल्प दृढ हों और फलदायी हों तो आनद और आये
जय श्री राधे
भ्रमर ५
बधाई के लिए आभार रविकर जी |
आशा
टिप्पणी हेतु आभार |आशा
सुरेन्द्र जी कविता अच्छी लगी जान कर अच्छा लगा टिप्पणी हेतु आभार |
आशा
ख्वाब अगर सच नहीं होता तो युवा-मन में भटकाव की स्थिति आ जाना स्वाभाविक है।
सामयिक संदर्भों को समेटती अच्छी कविता।
टिप्पणी हेतु धन्यवाद महेंद्र जी |आपलोगों की टिप्पणी लेखन को बल प्रदान करती हैं |
आशा
aashaa jee bahut sundar racanaa| badhaaI|
आदरणीया निर्मला जी बहुत बहुत आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ........आशा जी जैसा आप से भी योगदान की उम्मीदें होंगी इस मंच पर ...बताइयेगा ...जय श्री राधे आप का आशीष भी बना रहे ..भ्रमर ५
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