AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Friday 30 December 2011

नया साल अच्छा होगा !!

हरियाली हो वर्षा होगी

लहराएगी खेती

पेट भरेगा छत भी होगी

शेर -भेंड एक घाट पियेंगे पानी

मन मयूर भी नाच उठेगा

नया साल अच्छा होगा !!

आशु-आशा पढ़े लिखें

रोजगार भी पाएंगे

आशा की आशा सच होगी

सासबहू- माँ बेटी होगी

मन कुसुम सदा मुस्काएगा

नया साल अच्छा होगा !!

रिश्ते नाते गंगा जल से

पूत-सपूत नया रचते

बापू-माँ के सपने सजते

ज्ञान ध्यान विज्ञानं बढेगा

मन परचम लहराएगा

नया साल अच्छा होगा !!

खून के छींटे कहीं न हो

रावन होली जल जायेगा

घी के दीपक डगर नगर में

राम -राज्य फिर आएगा

मन -सागर में ज्वर उठेगा

नया साल अच्छा होगा !!


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

30.12.2011

6.35 P.M., U.P.

Wednesday 14 December 2011

कवि -लेखक को वेतन मिलता

कवि -लेखक को वेतन मिलता

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ये जग कितना सुन्दर होता

कवि लेखक को वेतन मिलता

राज-कवी बन पूजे जाते

राजा मन की बात लिखाते

शिला लेख पर लिख -लिख यारों

राजा का हर गुण हम गाते

सोने चांदी और अशरफी

हीरे मोती दान में पाते

चाटुकार चमचों से भाई

कभी नहीं हम सब भय खाते

राज महल दरबार में बैठे

चुटकुले सुनाकर कभी हंसाते

अब बिन वेतन भूख से आकुल

पेट जले उपजे है पीड़ा

कुटिया में सूरज शशि झांके

इंद्र -वज्र ले हमें डरा दे

वसन फटा है -पाँव बिवाई

ठिठुरी कविता -तब -रोती आई

सागर से ज्वालामुखी निकल

जब अंगारों सा बह जाता

फिर लावा धुवां राख करता

उनकी छाती में गड़ जाता !!

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इन कंकालों में है ताकत

ये आह करें -सब -धातु भसम

रोटी कपडे रहने खातिर

जब टिड्डी दल है चल जाता

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ये दौड़ें पागल कुत्तों सा

बेचैन हुए बस झपट रहे

ये पूँछ टेढ़ी रहे सदा

इन को सब भान है हो जाता

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फिर मुंह पर ताले चले लगाने

गायें अपने बस ना हों बेगाने

सारे राक्षस फिर मिल जाते

धर्म -मृत्युसब-लाला बांधें

गेह में बांधें सभी खिलाते

मनमर्जी- फिर -बैठ लिखाते

कवि लेखक को वेतन मिलता

जग ये कितना सुन्दर होता ??

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भ्रमर

.०२-.५६ पूर्वाह्न

.१२.२०११

यच पी

Saturday 10 December 2011

जिंदादिली ( कविता )-दिलबाग विर्क









ये रचना प्रिय दिलबाग विर्क द्वारा रचित है और सधन्यवाद प्रेषित है

जिंदादिली ( कविता )

तालियों की गड़गड़ाहट

और

पेट की भूख

कर देती है मजबूर

मौत के मुंह में उतरने को

यह जानते हुए कि

यह वीरता नहीं

मूर्खता है

बाजीगिरी

कोई चुनता नहीं शौक से

यह मुकद्दर है

गरीब समाज का

और इस मुकद्दर को

कला बनाकर जीना

जिन्दादिली है

और यह जिन्दादिली

जरूरी है क्योंकि

जिन्दगी जीनी ही पड़ती है

चाहे रो के जियो

चाहे हँस के जियो

चाहे डर के जियो

चाहे जिन्दादिली से जियो

द्वारा -दिलबाग विर्क

Friday 9 December 2011

सहनशीलता-

प्रस्तुत रचना आदरणीया आशा जी द्वारा लिखित है और सौभाग्य से इस ब्लाग के लिए प्राप्त हुयी है ...हम आदरणीया आशा जी से अनुरोध करेंगे की वे अपनी प्यारी रचनाओं से इस ब्लाग को अलंकृत करेंगी ...

हम अपने अन्य लेखक मित्रों से भी इस साहित्य प्रेमी मंच के लिए आगे कुछ योगदान करने का आग्रह करते हैं रचनाएं निम्न मेल पर भेजी जा सकती हैं ...

skshukl5@gmail.com,

धन्यवाद के साथ

भ्रमर

मन में दबी आग
जब भी धधकती है
बाहर निकलती है
थर्रा देती सारी कायनात |
मन ही मन जलता आया
सारा अवसाद छिपाया
सारी सीमा पार हों गयी
सहनशक्ति जबाब दे गयी |
विस्फोट हुआ ज्वाला निकली
धुंआ उठा चिंगारी उड़ीं
हाथ किसी ने नहीं बढाया
साथ भी नहीं निभाया |
समझा गया हूँ क्रोधित
इसी से आग उगल रहा
पर कारण कोई जान पाया
मन मेरा शांत कर पाया |
बढ़ने लगी आक्रामकता
तब भयभीत हो राह बदली
बरबादी के कहर से
स्वयम् भी बच पाया |
बढ़ी विकलता , आह निकली
बहने लगी अश्रु धारा
पर शांत भाव आते ही
ज़मने लगी , बहना तक भूली |
फिर जीवन सामान्य हो गया
कुछ भी विघटित नहीं हुआ
है यह कैसी विडंबना
सवाल सहनशीलता पर उठा |
बार बार आग उगलना
फिर खुद ही शांत होना
कहीं यह संकेत तो नहीं
सब कुछ समाप्त होने का |

आशा लता सक्सेना |