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Thursday, 3 May 2012

संघर्ष गृहणी का

      !अपनी ड्रेसेज निकालते क्यूँ नहीं ?ड्राइक्लीनिंग को देनी हैं न!आठ दिन हो गए कहते कहते |चाचा की शादी में जाना है कि नहीं ?अहमदाबाद से चाचा का भी फोन आया था |बेटी अनसुनी  कर बापिस ती.वी. में डूब गयी |
       मैं भी उससे कह तो आई पर खुद ही न समझ पाई कैसे जुगाड लगाऊं कहाँ से तैयारी शुरू करूँ ,और कहाँ खतम करूं|अरे हां अभी गप्पू की फीस भी तो जमा करनी है |पंखुरी की कॉलेज की फीस की तारीख भी आने वाली है  |शायद तिमाही फीस ही भर पाऊं अभी |
    चार पांच बार सामान की लिस्ट बना कर मोड कर पर्स  की छोटी जेब में रख लेती |स्कूल से लौट कर आवाज लगाई !"पंखुड़ी ज़रा मेरा चश्मा  तो लाना बेटा पढ़ने वाला "
  "लीजिए माँ "------
चश्मा लगा के फिर से पूरे ध्यान से लिस्ट पर निगाह दौडाई -
अठारह कपडे ड्राई क्लीनिग के लिए
बारह  कपडे प्रेस के
पंखुरी कई दिन से जींस दिलाने को कह रही थी |बात मन में तो थी मेरे पर उस समय अनदेखा सा कर दिया था |
मैनेज होगया तोवह भी दिला दूंगी |
     "राम राम भाभी  मैं तीन दिन नहीं आऊँगी और हां भाई की शादी के लिए कुछ उपहार तो देना होगा |मुझे ३-४ हजार रुपयों की जरूरत है "कहती हुई महरी आ धमकी
    हूँ |हूँ ---
उफ एक और नया खर्चा आन टपका |खैर फिर से शादी की तैयारी पर ध्यान देने लगी नए कपडे लाने का आइडिया कट कर लूंगी |
पंखुरी भागती हुई आई और मोबाइल पर आया  मैसेज दिखाने लगी ,"आज कोचिंग की फीस भरनी है माँ |और १-२ हजार ज्यादा देना |मैंने एक किताब तो एक्सचेंज कर ली है पर तीन आप दिला देना "
फिर मेरी तरफ कुछ संशय से देखा और बोली "पक्का आज करवा दोगी ना माँ "
  ट्रिंग ट्रिंग घंटी बजी |सासूजी का फोन आया था |\सो उधर भागी
प्रश्न उछला क्या हुआ बल्लू को ?उसे यहाँ भेज दो हम ध्यान रख लेंगे बार बार तबियत बिगड रही है उसकी |
धीरे से गप्पू ने कहा," दादी पापा की रिपोर्ट आगई है |उन्हें टाईफाइड हुआ है |
"अब तो बहुत ध्यान रखना उसका |बाहर का खाना बंद कर दो |बिसलरी का ही पानी देना और फल ज्यादा से ज्यादा देना तबियत अच्छी हो तो सब अच्छा लगे "
     जल्दी जल्दी डाक्टर के पास भागे |एहतियात के तौर पर जानेमाने  आयुर्वेदाचार्य को भी दिखाया आराम तो काफी हुआ पर खर्चे की मत पूंछो |पूरे हफ्ते का वेतन कट गया सो अलग |
"बेटा ज़रा डायरी तो देना आज का खर्च लिख दूं उसमें "
अरे मम्मी आप तो बेकार ही लिखती है कभी तेली तो होता नहीं |लीजिए किखिये |
२४५० /-संपत्ति कर
९८०/-मोबाइल बिल
१४००/- बिल बिजली
अब बारी  गप्पू की थी बोला  "आपको याद है कि नहीं ?मेरे वोकेशनल गाइडेंस वाले सर का फोन आया था |बहुत अच्छा समझाते हैं और मेरी आने वाली पढाई की शिदूलिग़ भी कर देंगे "
हां हां क्यूं नहीं ? मेरे मुंह से निकला |
मन ही मन में मैंने सोचा -तू क्यूं छोड़ता है ?बोल डाल
   सोचते सोचते जल्दी जल्दी चप्पल पैरों में डाल स्कूल को भागी चिंता थी कहीं ड्यूटी के लिए विलम्ब न हो जाए
|बाकी गणनाएं नए सिरे से बापिस आकार करूंगी |आखिर माध्यम वर्ग की गृहणी को तपस्या यूं ही नहीं कहा गया है |


  लेखिका
 रूचि सक्सेना



1 comment:

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

रूचि जी आप तो कहानी में भी माहिर हैं ..बहुत सुन्दर.. गृहिणी के मन की उलझनों को दर्शाती हुयी रचना ..इसीलिए तो उन्हें प्यार से होम मिनिस्टर या गृह लक्ष्मी भी हम कहते हैं न ! . अब आ के मन को आराम दीजियेगा सब सरलता से निपटा रहेगा ..जय श्री राधे ....भ्रमर ५