AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Saturday, 5 October 2013

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||

जय माँ शैलपुत्री ..



प्रिय भक्तों आइये माँ शैलपुत्री की आराधना निम्न श्लोक से शुरू करें उन्हें अपने मन में बसायें
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||
नवरात्रि का शुभारम्भ हो गया आज से सब कुछ पवित्र मन मंदिर ..एक  नया जोश ..भक्ति भावना से ओत प्रोत भक्तों के मन ..शंख और घंटों की आवाज लगता है सब देव भूमि में हम सब आ गए हैं

 दुर्गा पूजा के इस पावन  त्यौहार का   प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना इस  उपर्युक्त  मंत्र द्वारा की जाती है.
मां दुर्गा की पहली स्वरूपा और शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही  यह पावन पूजा आरम्भ हो जाती  है. नवरात्रि  पूजन के पहले  दिन कलश स्थापना के साथ ही माँ शैल पुत्री की  पूजा और उपासना की जाती है. माँ  शैलपुत्री का वाहन वृषभ हैउनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभित होता  है.
इस प्रथम दिन की उपासना में  योगी जन अपने मन को 'मूलाधार'चक्र में स्थित करते हैं और फिर  उनकी योग साधना शुरू होती है . पौराणिक कथा के अनुसार  मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर में  कन्या के रूप में  अवतरित हुई थी.

उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह प्रभु शिव शंकर  से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को  इस यज्ञं  में   आमंत्रित नहीं किया अपनी  मां और बहनों से मिलने को आतुर माँ  सती बिना आमंत्रण  के ही जब अपने पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और प्रभु भोलेनाथ के प्रति कोई प्रेम न दिखाई दिया बल्कि  तिरस्कार ही दिखाई दिया . अपने पति का यह अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं होता
माँ  सती इस अपमान को  बिलकुल सहन नहीं कर पायीं  और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया  जब इसकी जानकारी भोले  शिव शंकर को होती है तो वे  दक्षप्रजापति के घर जाकर तांडव मचा देते हैं तथा अपनी पत्नी के शव को उठाकर पृथ्वी  के चक्कर लगाने लगते हैं। इसी दौरान सती के शरीर के अंग धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरते चले जाते  हैं। यह अंग जिन 51 स्थानों पर गिरते हैं वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो जाती है ।
पुनः अगले जन्म में माँ ने  शैलराज हिमालय के घर में पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण माँ  दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को शैल पुत्री नामकरण किया गया
नवरात्रि  के पहले  दिन भक्त घरों में कलश की स्थापना करते हैं जिसकी अगले आठ दिनों तक पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री  का यह अद्भुत रूप मन में रम जाता है  दाहिने हाथ में त्रिशूल व बांए हाथ में कमल का फूल लिए मां अपने भक्तों  को आर्शीवाद देने आती है।
ध्यान मंत्र .....माँ  शैलपुत्री की आराधना के लिए भक्तों को विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए ताकि वह मां का आर्शीवाद प्राप्त कर सकें।
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
फिर क्रमशः  दुसरे से आठवें दिन तक
ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा ,कुस्मांडा ,स्कन्द माता ,कात्यायिनी कालरात्रि,महागौरी माँ को पूजा जाता है


और फिर नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना होती है जो की सिद्धगन्धर्व,यक्ष ,असुरऔर देव द्वारा पूजी जाती हैं सिद्धि की कामना हेतु यहाँ तक की प्रभु शिव ने भी उन्हें पूजा और शक्ति ..अर्धनारीश्वर के  रूप में  उनके बाएं अंग में प्रतिष्ठापित हुईं
      या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः |
   या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः |
   या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः |
   नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः |
   जय माँ अम्बे ...माँ दुर्गा सब को सद्बुद्धि दें सब का कल्याण हो ...
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.
05.10.2013

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (06-10-2013) हे दुर्गा माता: चर्चा मंच-1390 में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रविकर said...

नवरात्रि की शुभकामनायें-
सुन्दर प्रस्तुति है आदरणीय-

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

आदरणीय शास्त्री जी जय माता दी इस माँ की भक्ति में लिखे लेख को आप मयंक के कोन में स्थान दिए ख़ुशी हुयी
भ्रमर ५

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

प्रिय रविकर जी आभार प्रोत्साहन हेतु
जय माता दी ...

भ्रमर ५