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Sunday 25 September 2011

ना जाने क्यों वो “बुत” बनकर

ना जाने क्यों वो “बुत” बनकर

मंदिर दौड़ी मस्जिद दौड़ी
कभी गयी गुरुद्वारा
अर्ज चर्च में गली गली की
खाक छान फिर पाया
लाल एक मन-मोहन भाया
मेरे जैसे कितनी माँ की
इच्छा दमित पड़ी है अब भी
कुछ के “लाल” दबे माटी में
कुछ के जबरन गए दबाये
बड़ा अहम था मुझको खुद पर
राजा मेरा लाल कहाए
ईमां धर्म कर्म था मैंने
कूट -कूट कर भरा था जिसमे
ना जाने क्यों वो “बुत” बनकर
दुनिया मेरा नाम गंवाए
उसको क्या अभिशाप लगा या
जादू मंतर मारा किसने
ये गूंगा सा बना कबूतर
चढ़ा अटरिया गला फुलाए
कभी गुटरगूं कर देता बस
आँख पलक झपकाता जाए
हया लाज सब क्या पी डाला
दूध ko मेरे चला भुलाये
कल अंकुर फूटेगा उनमे
माटी में जो “लाल” दबे हैं
एक “लाल” से सौ सहस्त्र फिर
डंका बज जाए चहुँ ओर
छाती चौड़ी बाबा माँ की
निकला सूरज दुनिया भोर
हे "बुत" तू बतला रे मुझको
क्या रोवूँ मै ?? मेरा चोर ??
चोर नहीं ....तो है कमजोर ??
अगर खून -"पानी" है अब भी
वाहे गुरु लगा दे जोर
शुक्ल भ्रमर ५
यच पी २५.९.२०११
८.१५ पी यम

Sunday 4 September 2011

मै बीमार नहीं-ईमानदार हूँ

मै बीमार नहीं-ईमानदार हूँ
कुरुक्षेत्र के मैदान सा
खौफनाक -धंसा चेहरा
टूटी खटिया और मडई में पड़ा
घेरे -अधनंगे
चमकता चेहरा चरित्रवान बच्चे
साधारण जीर्ण वस्त्र में लिपटी
ये मेरी प्यारी गुडिया
अर्थी उठाने नहीं जुटे
मै बीमार नहीं ईमानदार हूँ
ये पढ़ते हैं पास बैठ
मेरे मन को
मेरे दुःख को
मेरे दर्द को
जो मैंने झेला है
घुट-घुट के जिया हूँ
गरल पिया हूँ
मेरे हाथों से छीन
सुधा के प्याले
जब -जब "उन्होंने "-पिया है
चोर-चोर मौसेरे भाई
सच ही कहा है
मेले में अकेले
कोने में पड़ा -पड़ा
तिल-तिल जिया हूँ
साठ साल
गाँधी की आत्मा ले
थाना-कचहरी
स्कूल-अस्पताल
पग-पग पे दलाल-
से - कितना भिड़ा हूँ
मै बीमार नहीं
ईमानदार हूँ ----
ये देख रहे हैं
मेरी जमा पूँजी
मेरी धरोहर
मेरी नजरें
पत्थर से दिल पे
खिले कुछ फूल
मेरी मुस्कान
जो अब भी
सैकड़ों में -
फूंक देती है जान
टटोल रहे हैं
मेरा सोने का दिल
और टटोलें भी क्या ??
वहां टंगा है
एक मैला -कुचैला
खादी का कुर्ता
सौ छेद हुयी जेब ------
मै बीमार नहीं
ईमानदार हूँ ----
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५
१०.०८.११ जल पी बी
00.५४ पूर्वाह्न