प्रेम सुधा रस प्राण-दायिनी जान हमारी "माई" है
ओ माँ ओ माँ ...........
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मै अनभिज्ञं रहा था कुछ दिन नाल तुम्हारे लटका
अंधकार था सोया संग -संग साथ तुम्हारे
भटका
चक्षु हमारे भले बंद थे -साथ रहा हंसता
रोता
तेरा सहारा -भोजन ले मै -खून भी लेकर पला -बढ़ा
तेरे दुर्दिन -कड़े परिश्रम -आह-आह तेरा
करना
दोल रहा था साक्षी बन मै मन ही मन रोया
करता
जेठ दुपहरी बारिस के दिन वो चक्की का
चलना
हिलता -डुलता भीगा-भीगा -कभी कभी जल भी जाता
पेट में तेरे कर कोमल से नमन तुझे था
करता रहता
ओ माँ ओ माँ
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प्रेम सुधा
रस प्राण-दायिनी जान हमारी "माई" है
ओ माँ ओ माँ ..............
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तू है नैन हमारी माता प्यार का स्रोत
तुम्ही हो
तू सूरज है चंदा है गुरु ईश -सब
कुछ-तुमही हो
तेरे सहारे खड़ा हुआ मै -चलना जग में सीखा
सांप है क्या -क्या रस्सी है माँ अद्भुत
मन्त्र से मन जीता
भव -सागर मै घिरा -लहर जब शक्ति तुमही बन
आयी
मन में उतारी आंसू पोंछे -जीवन-ज्योति
जगाई
तू हंसती तो खिल जाता मै -किलकारी मै
मारूं
अद्भुत असीम आनंद मै पा के जीवन तुझ पे
वारूँ
ओ माँ ओ माँ
.......
प्रेम सुधा
रस प्राण-दायिनी जान हमारी "माई" है
ओ माँ ओ माँ ..............
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तू अमृत की धार का सोता जिसे मिली ना
ममता-रोता
प्रेम प्यार करुना का घट तू जिसे मिला
जीवन भर ढोता -
शीश रहे ये ! आंचल छाया-जीवन जगती फिर
क्या कम है
माँ की ही संताने हम सब -सभी हैं
अपने -फिर क्या गम है
ये सौहाद्र मिलन-मन -संगम चार धाम सब
तीर्थ तभी हो
विकसे कमल सी कला हमारी -झंडा ऊंचा छुए
गगन हो
परम पुनीत नाम तेरा माँ जपते झंडे नीचे
आयें
तेरे गुण के सभी पुजारी -माँ कब
कौन उऋण हो पाए
दे ऐसा संस्कार हमें माँ गर्व से सीने
हमें लगाए
ओ माँ ओ माँ ..............
प्रेम सुधा
रस प्राण-दायिनी जान हमारी "माई" है
ओ माँ ओ माँ ..............
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नहीं कोई है जग में माता तुझसा जो
निःस्वार्थ करे
झिडकी खा भी ताने सह भी शिशु को
"जाँ" सा प्यार करे
ऋषि देवगन मानव सब की है प्यारी तू जग
कल्याणी
जग रचती तू मधु घोलती कभी बड़ी कर्कश है
वाणी
तुम्ही भारती तुम्ही हो वीणा तुम आदर्श
तुम्ही संस्कृति हो
बड़े हुए तो क्या हे ! माता , कान पकड रस्ता दिखला दो
दूध की तेरी लाज न भूलूँ जब तक
"जाँ" सत्कर्म निभाऊं
माँ -माँ कह मै अंत विदा लूं --आँखों का
तारा बन जाऊं
चरणों में नत शीश हमारा आंचल छाया दे दे
ओ माँ ओ माँ .......
प्रेम सुधा
रस प्राण-दायिनी जान हमारी "माई" है
ओ माँ ओ माँ
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७.५८-८.४९ कुल्लू यच पी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर' ५
10.05.2012
MAA SAB MANGAL KAREN
2 comments:
मस्त रचना |
आभार ||
प्रिय रविकर जी बहुत बहुत आभार आप का ...आइये माँ गुण-गान करते रहें आजीवन ..
भ्रमर ५
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