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Tuesday 20 April 2021

संगिनी हूं संग चलूंगी


संगिनी हूं संग चलूंगी
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जब सींचोगे
पलूं बढूंगी
खुश हूंगी मै
तभी खिलूंगी
बांटूंगी
 अधरों मुस्कान
मै तेरी पहचान बनकर
********
वेदनाएं भी
 हरुंगी
जीत निश्चित 
मै करूंगी
कीर्ति पताका
मै फहरूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
*********
अभिलाषाएं 
पूर्ण होंगी
राह कंटक
मै चलूंगी
पाप पापी
भी दलूंगी
संगिनी हूं
संग चलूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
*********
ज्योति देने को
जलूंगी
शान्ति हूं मैं
सुख भी दूंगी
मै जिऊंगी
औ मरूंगी
पूर्ण तुझको
मै करूंगी
सृष्टि सी 
रचती रहूंगी
सर्वदा ही
मै तेरी पहचान बनकर
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ,
भारत


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Sunday 18 April 2021

चंदा मामा कल ना आना

चंदा मामा कल ना आना
मम्मी जी की थाली में
पुए भी मीठे नहीं बनाना
दूध न देना प्याली में
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बोला हूं मम्मी को अपनी
मुझे झिंगोला एक सिलाओ
ऊंची सी बनवा दो सीढ़ी
' मामा ' से चल मुझे मिलाओ
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नहीं तो चिड़ियों से मिल करके
पवन पुत्र सा मै आऊंगा
सैर करूं नभ तुझ संग मामा
हाथों तेरे ही खाऊंगा
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश,
भारत



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

साजन का मुख तो दिखला दे

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कितना ठौर ठिकाना बदले
हे चंदा तू नित आकाश
साजन का मुख तो दिखला दे
चैन से सो लूं जी इस रात
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Saturday 17 April 2021

फूला अब तो फल रहा विषाणु बनकर

उग गया बोया गया या उड़ के आया
फूला अब तो फल रहा विषाणु बनकर
भोर को लूटा गया मिटते उजाले
खींचती है भींचती अब काल रात्रि है भयंकर
शिव हैं शव है औ मरुस्थल भस्म सारी
रोती आंखें आंधियां तू फां बवंडर
सांस अटकी थरथराते लोग सारे
रेत उड़ती फड़ फड़ाते पिंड पिंजर
गुल गुलिस्तां हैं हुए बेजान सारे
सूखती तुलसी पड़ी वीरान घर है खंडहर
ना भ्रमर हैं गूंजते ना फूल मुस्काते दिखे
मोड़ मुख हैं दूर सारे कौन कूदे इस कहर
दुधमुंहे जाते रहे हैं बूढ़ी आंखें थक चुकीं
बूढ़े कांधे टूटते अब कौन ढोए ये सितम
चार दिन की जिंद गानी कौन खोए
छू के शव को सोचते बीते प्रहर
खोद देते फेंक देते औंधे मुंह जज़्बात सारे
मर मिटीं संवेदनाएं क्रूर आया है प्रलय
शान्त हो मस्तिष्क को काबू रखो हे!
नाचो गाओ कर लो चाहे आज तांडव
मौन मत हो गा आे झूमो काल भैरव ही सही
दिल से छेड़ो तुम तराने साथ छोड़े ना हृदय
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश, भारत 17.04.2021


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Friday 16 April 2021

जय मां जय हे शेरों वाली

सतरंगी झिलमिल चुनरी सज
स्वर्णिम आभा कन्या आई
शंख बजी पूजा थाली, सब
करें आरती मातृ भवानी
जय मां जय हे शेरों वाली
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तेज पुंज नैनों से निकला
नव दुर्गा घर घर हैं प्रकटी
करुणा दया रौद्र रस छलका
सहमे डरे छुपे सब कपटी
जय मां जय हे शेरों वाली
****
शान्त हृदय आराधन पूजन
नर नारी जो हैं शरणागत
दीप्ति आज उनके घर मंडप
अमृत वाणी हिय गंगा रस
जय मां जय हे शेरों वाली
****
कुंकुम रोली रंग रंगोली
दीप सजे दीवाली होली
नौ दिन व्रत मन शुद्ध हृदय भी
खिले चेहरे दिल मां चौकी
जय मां जय हे शेरों वाली
******
रक्त पुष्प गल माल सजाए
कोटि चन्द्र सी आभा वाली
शस्त्र सुसज्जित अनुपम छवि ले
संकट हरनी जय मां काली
जय मां जय हे शेरों वाली
**********
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश , भारत



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Wednesday 14 April 2021

प्रिय उर तपन बढ़ा री बदली


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प्रिय उर तपन बढ़ा री बदली
देखें तुझको दसियों बार
चांद देख लें अपनी ' पगली '
आ मिल लें सावन इस बार ।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Sunday 11 April 2021

झांक नैनों पढ़ रही हूं


छुआ जब से मुझको तूने
खिल गई हूं
कली से मै फूल बनकर
भ्रमर आते ढेर सारे
छुप रही हूं
ना सताएं शूल बनकर
गुनगुनाते छेड़ते कितने तराने
खुश बहुत हूं
तार की झनकार बनकर
मधु पराग खुश्बू ले उड़ते
फिर हूं रचती अन्नपूर्णा -
स्नेह घट मै कुंभ बनकर
नेह निमंत्रण दे जाते कुछ
झांक नैनों पढ़ रही हूं
संग जाती हूं कभी मुस्कान बनकर
वेदनाएं ले उदासी घूमते कुछ
धड़कनें दिल की समझती
अश्रु धारा मै सहेजूं सीप बनकर
नत हुए कुछ पाप ले मिलते शरण तो
पूत करती मै पवित्री
बह रही जग गंगा यमुना धार बनकर
स्नेह पूजा मान देते ढेर सारे
प्रकृति अपनी देवी मां हूं
बलि हुई हूं
सुख प्रदाता हवन बनकर

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5, 
12.04.2021



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Saturday 10 April 2021

आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी


आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी
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रूपसी थी कभी चांद सी तू खिली
ओढ़े घूंघट में तू माथे सूरज लिए
नैन करुणा भरे ज्योति जीवन लिए
स्वर्ण आभा चमक चांदनी से सजी
गोल पृथ्वी झुलाती जहां नाथती
तेरे अधरों पे खुशियां रही नाचती
घोल मधु तू सरस बोल थी बोलती
नाचते मोर कलियां थी पर खोलती
फूल खिल जाते थे कूजते थे बिहग
माथ मेरे फिराती थी तू तेरा कर
लौट आता था सपनों से ए मां मेरी 
मिलती जन्नत खुशी तेरी आंखों भरी 
दौड़ आंचल तेरे जब मै छुप जाता था
क्या कहूं कितना सारा मै सुख पाता था
मोहिनी मूर्ति ममता की दिल आज भी
क्या कभी भूल सकता है संसार भी
गीत तू साज तू मेरा संगीत भी
शब्द वाणी मेरी पंख परवाज़ भी
नैन तू दृश्य तू शस्त्र भी ढाल भी
जिसने जीवन दिया पालती पोषती
नीर सी क्षीर सी अंग सारे बसी
 आई माई मेरी अम्मा है प्राण सी

सुरेंद्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत , 10.4.2021




सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Friday 9 April 2021

आज चांद का रंग कुछ बदला


आज चांद का रंग कुछ बदला , 
प्रिय ने शायद देख लिया ।
लाल तभी है मेरा मुखड़ा,  
नैन उतर दिल नेह किया ।।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Thursday 8 April 2021

कर सोलह श्रृंगार नटी ये


 कर सोलह श्रृंगार नटी ये

...…...……..........

नीले नभ पे श्वेत बदरिया

मलयानिल मिल रूप आंकती

हिमगिरि पे ज्यों पार्वती मां

सुंदरता की मूर्ति झांकती

……....….....

शिव हों भोले ठाढे जैसे

बादल बड़े भयावह काले

वहीं सात नन्हे शिशु खेलें

ब्रह्मा विष्णु सभी सुख ले लें

……..…............

निर्झर झरने नील स्वच्छ जल

कल कल निनादिनी सरिता देखो

हरियाली चहुं ओर है पसरी

स्वर्ण रश्मि अनुपम छवि देखो

…...................

कर सोलह श्रृंगार नटी ये

प्रकृति मोहती जन मन देखो

..…

श्वेत कबूतर ले गुलाब है

उड़ा आ रहा स्वागत कर लो

…...…........

फूल की घाटी तितली भौंरे

कलियों फूल से खेल रहे

खुशबू मादक सी सुगन्ध ले

नैन नशीले बोल रहे

......

पंछी कुल है हमें जगाता

कलरव करते दुनिया घूमे

छलक उठा अमृत घट जैसे

अमृत वर्षा हर मुख चूमे

...........

हहर हहर तरू झूम रहे हैं

लहर लहर नदिया बल खाती

गोरी सिर अमृत घट लेकर

रोज सुबह आ हमे उठाती

..........

ओस की बूंदें मोती जैसे

दर्पण बन जग हमे दिखाती

करें खेल अधरो नैनों से

बड़ी मोहिनी हमे रिझाती

............

कहीं नाचते मोर मोरनी

झंकृत स्वर हैं कीट पतंगे

रंग बिरंगी अद्भुत कृति की

शोभा निखरी किस मुंह कह दें

,.....….........

मन कहता भर अनुपम छवि उर

नैन मूंद बस कुटी रमाऊं

स्नेह सिक्त मां तेरा आंचल

शिशु बन मै दुलराता जाऊं

..........

उठो सुबह हे! ब्रह्म मुहूरत

योग ध्यान से भरो खजाना

वीणा के सुर ताल छेड़ लो

क्या जाने कब लौट के आना ।

.........

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

भारत 8.4.2021




सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Tuesday 6 April 2021

मुझको भी ले चल तू मुन्ना रंग बिरंगे सपनों में


नैन मूंद मत करे अकेला
मेरे जीवन का तू मेला
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

अंक भरूं मै चंदा मामा
सूरज चाचू को जल दे दूं
तारों संग कुछ कंचा खेलूं
नील गगन में सैर करूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना......

परियों संग मै खेलूं कूदूं
सप्तऋषि संग वेद पढूं
परियों की जादुई छड़ी लेे
शक्तिमान बन खेल करूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना.........

तितली बन मै फूल की घाटी
पर्वत चढ़ बादल से खेलूं
कामधेनु से मांग खिलौने
कल्पवृक्ष पे झूला झूलूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

नदियां सागर झील व झरने
हरे भरे जंगल में घूमूं
हाथी दादा हिरन मोर से
करूं दोस्ती सब सुख लेे लूं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

गौरैया तोता बुलबुल संग
राजहंस बगुला संग उड़ लूं
ले प्यारे बच्चों की टोली
कान्हा संग मै माखन खाऊं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

चलूं घुटुरुवन छुन्नुन छुन्नून
पैजनिया पैरन में पाऊं
उठूं गिरूं चीखूं चिल्ला के
मां की गोदी में छुप जाऊं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना
रंग बिरंगे सपनों में....

आंख बंद जब तू मुस्काए
तीन देव संग जग हंस जाए
अधर तुम्हारे जब रोने को
मातृ दे वियां सब दुलराएं
मुझको भी लेे चल तू मुन्ना.........

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तरप्रदेश, भारत



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः