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Sunday 27 November 2022

मोती पाने की चाहत में


भाव बड़े गहरे निर्झर से , 
बहते रहते अंतस्तल में,
 बाल सा मेरा प्यारा मन तो,
 उड़ता फिरता नीलगगन में ।

कभी डूबता गागर सागर,
लहरें पटक किनारे देती
मोती पाने की चाहत में,
दर्द भुला फिर कूद पड़ूं ।

कुछ पाने को कुछ रचने को
बहुत थपेड़े सहने पड़ते
कभी रिक्त हाथों को लेकर
आता सब की सह लेता हूं।

मोती गहने भाव की गागर
कभी जभी मैं भर लाता हूं
बड़ी प्रशंसा प्रेम की गागर
से, अमृत भी तो पी लेता हूं

इसी ज्वार भाटा में उलझा 
चांद कभी लेता है खींच 
कभी सूर्य संग डूबूं निकलूं
अदभुत दुनिया प्रकृति अनूप।

जय जय श्री राधे।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

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