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Monday, 28 May 2012

मन चंचल


मन चंचल है
नहीं कुछ करने देता
तब सफलता हाथों से
कोसों दूर छिटक जाती है
उस चंचल पर नहीं नियंत्रण
इधर उधर भटकता
और अधिक निष्क्रिय बनाता
भटकाव यह मन का
नहीं कहीं का छोड़ेगा
बेचैनी बढ़ती जायेगी
अंतर मन झकझोरेगा
क्या पर्वत पर
 क्या सागर में
या फिर देव स्थान में
मिले यदि न शांति तो
क्या रखा है संसार में
साधन बहुत पर
जतन ना किया तब
यह जीवन व्यर्थ अभिमान है
मन चंचल 
यदि बाँध ना पाए
सकल कर्म निष्प्राण है |
आशा

10 comments:

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी बहुत सुन्दर रचना ..मिले यदि ना शांति तो क्या रखा है संसार में ..सुन्दर सन्देश ...जतन ..कर्म करना नितांत आवश्यक है ...चंचल मन को सम्हाल के ही बात बनती है
भ्रमर ५

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर!

तेजवानी गिरधर said...

अति सुंदर रचना, बधाई

Rajesh Kumari said...

आशा जी अतिसुन्दर रचना

lamhe said...

awakens the mind! inspires us to make a meaningful start.
thanks for these words of treasure.

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुंदर रचना आशा जी.....

सादर
अनु

राहुल said...

आपने ठीक कहा आशाजी, चंचल मन को समेट न पाने की सजा कई सदियों तक भुगतनी पड़ती है.....
एक सार्थक पोस्ट....

Anju (Anu) Chaudhary said...

सार्थक लेखनी

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीय स्मार्ट इंडियन जी , तेजवानी गिरिधर जी , राहुल जी आप सब का स्वागत है प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया राजेश कुमारी जी , लम्हे जी, अनु जी , अंजू जी ..रचना आप सब को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी .. आप सब का स्वागत है प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण