मन चंचल है
नहीं कुछ करने देता
तब सफलता हाथों से
कोसों दूर छिटक जाती है
उस चंचल पर नहीं नियंत्रण
इधर उधर भटकता
और अधिक निष्क्रिय बनाता
भटकाव यह मन का
नहीं कहीं का छोड़ेगा
बेचैनी बढ़ती जायेगी
अंतर मन झकझोरेगा
क्या पर्वत पर
नहीं कुछ करने देता
तब सफलता हाथों से
कोसों दूर छिटक जाती है
उस चंचल पर नहीं नियंत्रण
इधर उधर भटकता
और अधिक निष्क्रिय बनाता
भटकाव यह मन का
नहीं कहीं का छोड़ेगा
बेचैनी बढ़ती जायेगी
अंतर मन झकझोरेगा
क्या पर्वत पर
क्या सागर में
या फिर देव स्थान में
मिले यदि न शांति तो
क्या रखा है संसार में
साधन बहुत पर
जतन ना किया तब
यह जीवन व्यर्थ अभिमान है
मन चंचल
या फिर देव स्थान में
मिले यदि न शांति तो
क्या रखा है संसार में
साधन बहुत पर
जतन ना किया तब
यह जीवन व्यर्थ अभिमान है
मन चंचल
यदि बाँध ना पाए
सकल कर्म निष्प्राण है |
आशा
सकल कर्म निष्प्राण है |
आशा
10 comments:
आदरणीया आशा जी बहुत सुन्दर रचना ..मिले यदि ना शांति तो क्या रखा है संसार में ..सुन्दर सन्देश ...जतन ..कर्म करना नितांत आवश्यक है ...चंचल मन को सम्हाल के ही बात बनती है
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर!
अति सुंदर रचना, बधाई
आशा जी अतिसुन्दर रचना
awakens the mind! inspires us to make a meaningful start.
thanks for these words of treasure.
बहुत सुंदर रचना आशा जी.....
सादर
अनु
आपने ठीक कहा आशाजी, चंचल मन को समेट न पाने की सजा कई सदियों तक भुगतनी पड़ती है.....
एक सार्थक पोस्ट....
सार्थक लेखनी
आदरणीय स्मार्ट इंडियन जी , तेजवानी गिरिधर जी , राहुल जी आप सब का स्वागत है प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
आदरणीया राजेश कुमारी जी , लम्हे जी, अनु जी , अंजू जी ..रचना आप सब को अच्छी लगी सुन ख़ुशी हुयी .. आप सब का स्वागत है प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
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