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Wednesday, 16 May 2012

भूखी बाहर रोवे अम्मा | अन्दर सोवे पूत निकम्मा |

साठ साल की हो ली माता । पूत धर्म-संसद बैठाता ।
इक आसन पर मातु विराजी । आये पंडित मुल्ला काजी ।|

तहरीरें सब ताज़ी-ताज़ी । आपस में दिखते सब राजी ।
फर्द-बयानी जीते बाजी | भाई-चारा  हाँ जी माँ जी ।।

आजा-'दी वो ताजा मौका  |  देशी घी का लगता छौंका ।
पंगत में मिलकर सब खाता । साठ साल की हो ली माता ।।



खाना पीना मौज मनाना | धमा चौकड़ी रोब ज़माना |
पहले भांजें बहरू चाचा । शास्त्री एक पत्रिका बांचा ।

बुआ चूड़ियाँ रही बांटती | ढाका मलमल शुद्ध काटती |
निपटे सभी पचहत्तर झंझट | नई पार्टी बैठी झटपट |

सोमनाथ का तांडव नर्तन | झटपट खटपट करते बर्तन |
नई बही पर चालू  खाता  । साठ साल की हो ली माता ।|


दुहरी सदस्यता का मसला | देसाई कुर्सी से फिसला |
जै जै जै जै दुर्गे माता | जो भी आता शीश नवाता |

आये मिस्टर क्लीन बटोरें | नई सोच से सबको जोड़े ।
बाल-ब्रह्मचारी ने आ के | करते बढ़कर अटल धमाके |

रात हुई मन मौन हो गए | कुर्सी तख्ता सदन धो गए |
जूठी पत्तल कुत्ते चाटें | भौंके डकरें दौड़े  कांटे  ||

भूखी बाहर रोवे अम्मा | अन्दर सोवे पूत निकम्मा |
साधू मन का प्राण सुखाता । साठ साल की हो ली माता ।

1 comment:

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीय कैलाश जी अभिवादन और कवि वृन्द के प्रोत्साहन हेतु आभार -भ्रमर ५
प्रिय रविकर जी ...व्यंग्य का लहजा लिए बिभिन्न रंग दिखाती अच्छी रचना ...आये मिस्टर क्लीन बटोरें -नयी सोच से सब को जोड़ें ..देखिये अभी होता है क्या ...साठ साल की हो गयीं ...
भ्रमर ५