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Tuesday 22 October 2013

करवा चौथ पर

करवा चौथ पर हार्दिक शुभ कामनाएं 
चाँद ने मुह छिपाया
बादलों की ओट में
प्रिय तुम भी
अब तक न आए
जाने कहाँ विलमाए
मैं हूँ परेशान
कब तक राह निहारूं
तुम्हारी और  चाँद की
याद नहीं आई  क्या 
आज करवा चौथ की|
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Saturday 12 October 2013

ढोलक बजाकर लोगों को आश्चर्यचकित करने वाले बाल कलाकार दयानंद ने सफलता की लंबी उड़ान भरी है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में जगह पाने वाला यह प्रतापगढ़ का पहला कलाकार है।

प्रतापगढ़ [जासं]। नन्हीं अंगुलियों से ढोलक बजाकर लोगों को आश्चर्यचकित करने वाले बाल

 कलाकार दयानंद ने सफलता की लंबी उड़ान भरी है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में जगह पाने 


वाला यह प्रतापगढ़ का पहला कलाकार है।
मंगरौरा विकास खंड के लाखीपुर गांव निवासी बाल कलाकार दयानंद सामान्य परिवार का है। छोटी-

सी उम्र से ही ढोलक बजाकर जनपद को गौरवान्वित कर रहा है। बच्चे का नाम लिम्का बुक तथा 


गिनीज बुक में दर्ज कराने के लिए उसके पिता देवी प्रसाद विश्वकर्मा ने सांसदों, विधायकों व 


मंत्रियों के यहां दस्तक दी।
बाल कल्याण समिति ने दैनिक जागरण की खबरों की कतरन लगाकर लिम्का बुक कार्यालय को 

पत्र भेजा। इस पर लिम्का की संपादक विजया घोष, सहसंपादक स्मिता थामस व एडवाइजर 


प्रशांत डिसूजा ने दयानंद का एक घंटे का कार्यक्रम देखा। इसके बाद उसे बुके भेंटकर सम्मानित 


किया।
शनिवार को लिम्का बुक की सहसंपादक स्मिता थामस के हवाले से पत्र भेजकर बताया गया कि 

टीवी शो में सब से कम उम्र के ढोलक वादक के रूप में दयानंद का दावा स्वीकार कर लिया गया 


है। उसका नाम लिम्का बुक में प्रकाशित होगा।

प्रिय दयानंद ढोलक बादक के बारे में बहुत अच्छी जानकारी कला और गुण का सम्मान और उसका प्रचार 


होना ही चाहिए ... आप (दैनिक जागरण समाचार पत्र जागरण .काम ) का आभार यदि इस बच्चे की उम्र और 


फोटो भी आप ने दिया होता तो बहुत अच्छा होता ... ये हमारे जनपद प्रतापगढ़ से हैं इसलिए दिली ख़ुशी हुयी 


प्रभु इस बच्चे को नित नए आयाम पाने को आशीष और अवसर दें ..हम आप के इस संवाद को प्रतापगढ़ 


साहित्य प्रेमी मंच पर भी स्थान देंगे आप को सूचित किया जा रहा है अनुमति दें कृपया 


भ्रमर ५ प्रतापगढ़ उ. प्रदेश भारत




सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Saturday 5 October 2013

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः








श्रद्धा सुमन अर्पित करू
मन में ले विश्वास
समस्त भव बाधा हरो
सर पर रख कर हाथ |
आशा

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||

जय माँ शैलपुत्री ..



प्रिय भक्तों आइये माँ शैलपुत्री की आराधना निम्न श्लोक से शुरू करें उन्हें अपने मन में बसायें
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||
नवरात्रि का शुभारम्भ हो गया आज से सब कुछ पवित्र मन मंदिर ..एक  नया जोश ..भक्ति भावना से ओत प्रोत भक्तों के मन ..शंख और घंटों की आवाज लगता है सब देव भूमि में हम सब आ गए हैं

 दुर्गा पूजा के इस पावन  त्यौहार का   प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना इस  उपर्युक्त  मंत्र द्वारा की जाती है.
मां दुर्गा की पहली स्वरूपा और शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही  यह पावन पूजा आरम्भ हो जाती  है. नवरात्रि  पूजन के पहले  दिन कलश स्थापना के साथ ही माँ शैल पुत्री की  पूजा और उपासना की जाती है. माँ  शैलपुत्री का वाहन वृषभ हैउनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभित होता  है.
इस प्रथम दिन की उपासना में  योगी जन अपने मन को 'मूलाधार'चक्र में स्थित करते हैं और फिर  उनकी योग साधना शुरू होती है . पौराणिक कथा के अनुसार  मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर में  कन्या के रूप में  अवतरित हुई थी.

उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह प्रभु शिव शंकर  से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को  इस यज्ञं  में   आमंत्रित नहीं किया अपनी  मां और बहनों से मिलने को आतुर माँ  सती बिना आमंत्रण  के ही जब अपने पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और प्रभु भोलेनाथ के प्रति कोई प्रेम न दिखाई दिया बल्कि  तिरस्कार ही दिखाई दिया . अपने पति का यह अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं होता
माँ  सती इस अपमान को  बिलकुल सहन नहीं कर पायीं  और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया  जब इसकी जानकारी भोले  शिव शंकर को होती है तो वे  दक्षप्रजापति के घर जाकर तांडव मचा देते हैं तथा अपनी पत्नी के शव को उठाकर पृथ्वी  के चक्कर लगाने लगते हैं। इसी दौरान सती के शरीर के अंग धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरते चले जाते  हैं। यह अंग जिन 51 स्थानों पर गिरते हैं वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो जाती है ।
पुनः अगले जन्म में माँ ने  शैलराज हिमालय के घर में पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण माँ  दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को शैल पुत्री नामकरण किया गया
नवरात्रि  के पहले  दिन भक्त घरों में कलश की स्थापना करते हैं जिसकी अगले आठ दिनों तक पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री  का यह अद्भुत रूप मन में रम जाता है  दाहिने हाथ में त्रिशूल व बांए हाथ में कमल का फूल लिए मां अपने भक्तों  को आर्शीवाद देने आती है।
ध्यान मंत्र .....माँ  शैलपुत्री की आराधना के लिए भक्तों को विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए ताकि वह मां का आर्शीवाद प्राप्त कर सकें।
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
फिर क्रमशः  दुसरे से आठवें दिन तक
ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा ,कुस्मांडा ,स्कन्द माता ,कात्यायिनी कालरात्रि,महागौरी माँ को पूजा जाता है


और फिर नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना होती है जो की सिद्धगन्धर्व,यक्ष ,असुरऔर देव द्वारा पूजी जाती हैं सिद्धि की कामना हेतु यहाँ तक की प्रभु शिव ने भी उन्हें पूजा और शक्ति ..अर्धनारीश्वर के  रूप में  उनके बाएं अंग में प्रतिष्ठापित हुईं
      या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः |
   या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः |
   या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः |
   नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः |
   जय माँ अम्बे ...माँ दुर्गा सब को सद्बुद्धि दें सब का कल्याण हो ...
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.
05.10.2013

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः