दी है दस्तक दरवाज़े पर
ठंडी हवा ने जाड़े में
गुनगुनी धूप में बेटे का स्वेटर बुन रही हूँ ,
जल्दी ही पूरा हो जायेगा
जल्दी ही पूरा हो जायेगा
क्या करती कोई नई बुनाई ना मिल पाई
उसे खोजने में इतने दिन यूँही बीत गये
कई किताबें देखीं पत्रिकाएँ खरीदीं
पर वही घिसे पिटे नमूने थे
कुछ भी तो नया नहीं था
छोटे मोटे परिवर्तन कर
की गयी प्रस्तुति देख मन खराब हुआ
फिर पुराना जखीरा नमूनों का
खुद ही खोज डाला
नर्म गर्म ऊन का अहसास
सलाई पर उतरते फंदे
और जाड़ों की कुनकुनी धूप
बेहद अच्छी लगती है
उँगलियों की गति तीव्र हो जाती है
और जुट जाती हूँ उसे
स्वेटर में सहेजने में
जब वह उसे पहन निकलेगा
उसे रोक कोशिश होगी
स्वेटर देख नमूना उतारने की
असफलता जब हाथ लगेगी
सब को बहुत कोफ्त होगी
बुनाई क़ी होड़ में सबसे आगे रहने में
जो आनंद मिलेगा
उसकी कल्पना ही रोमांचक है !
आशा
1 comment:
जाड़े की नर्म धूप और स्वेटर का अच्छा चित्रण ..प्यार झलका उसे रोक कर कोशिश होगी नाप लेने की ..कल्पनाएँ आकार धर साकार हो ... ..जय श्री राधे ....भ्रमर ५
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