MAA SAB MANGAL KAREN
बाल श्रमिक
तपती धूप , दमकते
चेहरे ,
श्रमकण जिन पर गए उकेरे ,
काले भूरे बाल सुनहरे ,
भोले भाले नन्हे चेहरे ,
जल्दी जल्दी हाथ चलाते ,
थक जाते पर रुक ना पाते ,
उस पर भी वे झिड़के जाते ,
सजल हुई आँखे , पर हँसते ,
मन के टूटे तार लरजते |
8 comments:
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
बुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
बहुत खूबसूरत व यथार्थ दर्शाती सारगर्भित रचना ! बहुत खूब !
यूँ ही हर रोज कहीं न कहीं कोई दिखकर भी अनदेखा रह जाता है...
यथार्थ का सार्थक चिंत्रण ..
आदरणीया आशा जी उत्कृष्ट प्रस्तुति ....ऐसे चेहरे अक्सर यहाँ वहां स्टेशन बस स्टैंड आदि में मिल जाते हैं चिंता का विषय है न जाने कब ये बच्चे स्कूल और भरपेट भोजन देख पायेंगे इस विकाश शील देश का हाल ..........
भ्रमर ५
टिप्पणी के लिए धन्यवाद |आप की
टिप्पणी लिखने के लिए प्रेरणा बनती है |
आशा
इसे चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार |
कविता जी आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |इसी प्रकार स्नेह बनाए रखें |
आशा
साधना जी आपकी टिप्पणी लेखन के लिए प्रेरित करती हैं
आशा
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