AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Thursday 31 May 2012

लक्ष्मण रेखा



क्यूं बंद किया
लक्ष्मण रेखा के घेरे मै
कारण तक नहीं समझाया
ओर वन को प्रस्थान किया
यह भी नहीं सोचा
मैं भी एक मनुष्य हूँ
स्वतन्त्रता है अधिकार मेरा
यदि आवश्कता हुई
अपने को बचाना जानती हूं
पर शायद यहीं मै गलत थी
अपनी रक्षा कर न सकी
रावण से ख़ुद को बचा न सकी
मैं कमजोर थी अब समझ गयी हूं
यदि तुम्हारा कहा
सुन लिया होता
अनर्गल बातों से
दुखित तुम्हें न किया होता
राम तक पहुंचने के लिए
कष्ट मैं उनहें देख
जाने के लिए तुम्हें
बाध्य ना किया होता
मैं लक्ष्मण रेखा पार नहीं करती
यह दुर्दशा नहीं होती
विछोह भी न सहना पड़ता
अग्नि परीक्षा से न गुजरना पड़ता
धोबी के कटु वचनों से
मन भी छलनी ना होता
क्या था सही ओर क्या गलत
अब समझ पा रही हूं
इसी दुःख का निदान कर रही हूं
धरती से जन्मी थी
फिर धरती में समा रही हूं |
आशा


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

8 comments:

yashoda Agrawal said...

अति उत्तम...
सुन्दर रचना...
सादर

Anonymous said...

Bahut sunder likha hai.

Sadhana Vaid said...

सीता के मन की व्यथा को बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति दी है ! एक बहुत ही सशक्त एवं सार्थक रचना ! बहुत सुन्दर !

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

आदरणीया यशोदा जी , लता जी और साधना जी आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद और आभार प्रोत्साहन के लिए ..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है आशा जी द्वारा ये ..
भ्रमर ५

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

हाँ आशा जी लक्ष्मण रेखा का ध्यान बहुत जरुरी है इसे लांघने का प्रयास न करें ...करें भी कोई तो बहुत सोच समझ शायद ही सफलता मिल पाती है ...सुन्दर
भ्रमर ५

Sawai Singh Rajpurohit said...

लाजवाब रचना,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...


Rajpurohit Samaj!
पर पधारेँ।

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

प्रिय सवाई सिंह जी और कैलाश जी आप सब का बहुत बहुत आभार अपना स्नेह बनाये रखें
आभार
भ्रमर ५