मन से मन की बात यदि ना हो पाए
मन चाही मुराद यदि मिल न पाए
मन दुखी तब क्यूं न हो
बेमौसम का राग वह क्यूँ गाए |
(२)
सुनी गुनी कही बातें
वजन तो रखती हैं
पर हैं कितने लोग
जो उन पर अमल करते हैं |
(३)
मैंने सजाई थी महफिल
हंसने हंसाने को
पर देखी सिर्फ तानाकशी
खुशी गायब हो गयी
ज्ञान न था दिलों में
इतना विष घुला है
प्यार का तो ऊपरी दिखावा है
हर इंसान का दोहरा चेहरा है |
..
(४)
मधुमास में
पतझड़ की बातें
शोभा नहीं देतीं
खुशी के आलम में
उदासी भर देतीं |
आशा
5 comments:
प्यार का तो ऊपरी दिखावा है
हर इंसान का दोहरा चेहरा है \
बहुत सुन्दर \
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टिप्पणी हेतु धन्यवाद कालीपद जी |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-12-13) को "मजबूरी गाती है" (चर्चा मंच : अंक-1460) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु धन्यवाद सर |
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं आशा जी ...भ्रमर 5
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