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Sunday 29 July 2012

बंधन जाति का


खिली कली बीता बचपन
जाने कब अनजाने में
दी दस्तक दरवाज़े पर
यौवन की प्रथम सीढ़ी पर
जैसे ही कदम पड़े उसके
आँखों ने छलकाया यौवन
हर एक अदा में सम्मोहन
वह दिल में जगह बना बैठी
  सजनी सपने में आ बैठी |
धीरे-धीरे कब प्यार हुआ
साथ जीने मरने का
जाने कब इकरार हुआ
छिप-छिप कर आना उसका
मन के सारे भेद बताना 
 फिर जी भर कर हँसना 
 निश्छल मन चंचल चितवन
आनन पर लहराती काकुल
मन में कर देती हलचल |
जब विवाह तक आना चाहा
जाति प्रथा का पड़ा तमाचा
ध्वस्त हुए सारे सपने
कोई भी नहीं हुए अपने |
माँ बाबा ने उसे बुला कर
मुझसे दूर उसे ले जा कर
जाति बंधु से ब्याह रचाया
  मुझसे नाता तुड़वाया 
 ऐसी क्या कमियाँ थीं मुझमें
 मै समझ नहीं पाया |
जाति में मन चाहा वर
भाग्यशाली ही पाता है
अक्सर यह लाभ
कुपात्र ही ले जाता है
वह थोड़ा बहुत कमाता था
बहुत व्यस्त है दर्शाता था
ऐसा भी कोई गुणी नहीं था
जिस कारण अकड़ा जाता था
सारी हदें पार करता था
बेबसी पर खुश होता था |
पहले तो वह झुकती जाती थी
हर बार पिता की इज्जत का
ख्याल मन में लाती थी
फिर घुट-घुट कर
 जीना सीख लिया
समाज से डरना सीख लिया |
मैं भी दस-दस आँसू रोया
फिर दुनियादारी में खोया
एक लम्बा अरसा बीत गया
यादों को मन में दफना कर
उन पर पर्दा डाल दिया
अब जीवन चलता पटरी पर
कहीं नहीं भटकता पल भर |
तेज हवा की आँधी सी वह
मेरे सामने खड़ी हुई थी
बहुत उदास आँखों में आँसू
खंडित प्रतिमा सी लग रही थी
उसके आँसू देख न पाया
जज्बातों को बस में करके
उसका हाल पूछना चाहा
पहले कुछ न बोल पाई
फिर धीरे से प्रतिक्रिया आई
ऐसा कैसा जाति का बंधन
जो बेमेल विवाह का कारक बन
जीने की ललक मिटा देता
कितनों का जीवन हर लेता |
जब उसकी व्यथा कथा को जाना
मनोदशा को पहचाना
नफरत से मन भर आया
विद्रोही मन उग्र हुआ
जाति प्रथा को जी भर कोसा |




आशा

8 comments:

Anju (Anu) Chaudhary said...

जातिवाद और प्यार ....समाज की दुश्मनी हैं और अपनों की नफ़रत ....हमेशा प्यार करने वालो पर कहर बन कर टूटती हैं

Sadhana Vaid said...

समाज की कड़वी सच्चाई को बयान करती एक सशक्त रचना ! बहुत सुन्दर !

Asha Lata Saxena said...

अनु जी कविता पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
आशा

Asha Lata Saxena said...

साधना जी कविता अच्छी लगी इस लिए टिप्पणी के लिए धन्यवाद |
आशा

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी बहुत सुन्दर रचना प्यार सच्चा प्यार बने बंधन अनायास के न लादे जाएँ तो समाज का स्वरुप खुशनुमा प्यारा बने ...बधाई
जज्बातों को बस में करके
उसका हाल पूछना चाहा
पहले कुछ न बोल पाई
फिर धीरे से प्रतिक्रिया आई
ऐसा कैसा जाति का बंधन
जो बेमेल विवाह का कारक बन
जीने की ललक मिटा देता
कितनों का जीवन हर लेता |
बहुत सुन्दर प्रश्न ..मनोभावों का सुन्दर वर्णन
भ्रमर ५

Asha Lata Saxena said...

टिप्पणी हेतु धन्यवाद सुरेन्द्र जी |
आशा

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई हमारे सभी प्रिय मित्रों को .

.प्रभु से प्रार्थना है कि ये भाई बहन का पर्व यों ही सदा सदा के लिए अमर रहे प्रेम उमड़ता रहे और बहनों की सुरक्षा के लिए हम सब के मन में जोश द्विगुणित होता रहे ...

आइये बहनों को सदा खुश रखें हंसे हंसाएं प्रेम बरसायें ...तो आनंद और आये ...

जय श्री राधे

आप सब का 'भ्रमर'५

Asha Lata Saxena said...

राखी के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं |
आशा