AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Sunday, 22 July 2012

उपेक्षिता

सजे सजाये कमरे में
मैंने उसे उदास देखा
आग्रह से यह पूछ लिया
उसका ह्रदय टटोल लिया
तुम क्यों सहमी सी रहती हो
आखिर ऐसा हुआ क्या है
जो नित्य प्रतारणा सहती हो |
पहले तो वह टाल गयी
फिर जब अपनापन पाया
हिचकी भर-भर कर रोई
मन जब थोड़ा शांत हुआ
अश्रु धार से मुँह धोया
तब उसने अपना मुँह खोला |
सजी धजी इक गुड़िया सी
मैं सब के हाथों में घूम रही
सब चुपचाप सहा मैने
अपने भाव न जता पाई
पर उपेक्षा सह न सकी
बहुत खीज मन में आई
मेरी अपेक्षा मरने लगी
दुःख के कगार तक ले आई |
व्यथा कथा उसकी सुन कर
मन में टीस उभर आई
मैं उसको कुछ न सुझा पाई
मन ही मन आहत हो कर
थके पाँव घर को आई |
ऐसा क्या था जो भेद गया
दिल दौलत दुनिया से मुझको
बहत दूर खींच लाया मुझको
मन ही मन कुरेद गया |
उसमें मैंने खुद को देखा
जीवन के पन्ने खुलने लगे
बीता कल मुझको चुभने लगा
मकड़ी का जाला बुनने लगा
फँस कर मैं उस मकड़ जाल में
अपने को भी न सम्हाल सकी
जो बात कहीं थी अन्तर में
होंठों तक आ कर रुकने लगी |
मैं भी तो उसके जैसी ही हूँ
कभी गलत और कभी सही
अनेक वर्जनाएं सहती हूँ
फिर किस हक से मैंने
उसका मन छूना चाहा
मन ही मन दुखी हुई अब मैं
क्यूँ मैने छेड़ दिया उसको
उसकी पीड़ा तो  कम न की
अपनी पीड़ा बढ़ा बैठी |


आशा

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

5 comments:

रविकर said...

मनोभाव का उम्दा प्रगटीकरण ||

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी नारी मन की पीड़ा का अद्भुत वर्णन ..पीड़ा सच में तभी समझ में ही आती है जब उसकी जगह हम अपने को रख अनुभव करते हैं अपने अंतर में झांकते हैं ......भ्रमर ५

Asha Lata Saxena said...

आपलोगों की टिप्पणियाँ लेखन को बल देती हैं |यदि कोई त्रुटि हो तो उस ओर भी इंगित करें |धन्यवाद ब्लॉग पर आ कर प्रोत्साहित करने के लिए |
आशा

Asha Lata Saxena said...

डिक्शनरी के अनुसार सही शब्द है "प्रतारणा"भ्रमर जी |
आशा

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

धन्यवाद ये जानकारी देने के लिए आदरणीया आशा जी ....आभार
भ्रमर ५