मेरा वतन मेरा वतन
कोयल की मीठी बोली सा
ये सतरंगी रंगोली सा
नन्हें -मुन्नों की टोली सा
दीवाली सा और होली सा
मेरा वतन .....................
ये निर्मल है ..अति पावन है
सुन्दरतम है ..मनभावन है
सुन्दरतम है ..मनभावन है
ये अद्भुत है ये है अनुपम
मेरा वतन ..........................
ये गहन निशा में है सविता
ये चन्द्रकिरण की शीतलता
सूखी भूमि पर है सरिता
और कविराज की है कविता
मेरा वतन ....................
अभिराम वत्स ये धरती का
अभिराम वत्स ये धरती का
ये प्रिय सखा है सृष्टि का
ये हिम शुभ्र सा है उज्जवल
ये कलावंत का है कौशल
मेरा वतन ......................
जय हिंद !जय भारत !
शिखा कौशिक
2 comments:
शिखा जी बहुत सुन्दर आगाज ..बहुत प्यारी रचना से श्री गणेश ...सच में अपने वतन सा जहां में कुछ भी नहीं है अनुपम धरोहर है रमणीय है ये तमाम भाषाएँ जन मन बिभिन्न रंग में एक हैं हम ..
स्वागत है आप का ...जय हिंद
भ्रमर ५
प्रिय सवाई सिंह जी आभार प्रोत्साहन हेतु ..जय श्री राधे
भ्रमर ५
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