चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर,
मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।
मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ो के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।
जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता।
आसमान में कलाबाजियाँ कर के,
सबको दिखलाता।।
सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज जगाती हो।।
तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो।
अपनी पुस्तक को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो।।
चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो।
दाना-दुनका बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो।।
अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो।।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो।
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AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com
Monday 23 July 2012
‘‘चिड़िया रानी’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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6 comments:
आदरणीय शास्त्री जी ..अभिवादन और अभिनन्दन आप का ...बहुत सुन्दर सीख देती रचना ..आप की इजाजत होगी तो इसे हम अपने ब्लॉग बाल झरोखा सत्यम की दुनिया में भी ले जायेंगे या तो लिंक ही .....जय श्री राधे
अपने कामों से मेहनत का
पथ हमको दिखलाती हो
जीवन श्रम के लिए बना है
सीख यही सिखलाती हो
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर बालगीत है शास्त्री जी|
आशा
सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर जी।
आप मेरी इस रचना को बालझरोखा सत्यम् की दुनिया में प्रकाशित कर सकते हैं।
आभार!
खूबसूरत बाल गीत !
सुरेन्द्र शुक्ल "भ्रमर" जी!
मेरा सुझाव है कि आप ब्लॉग से ताला हटा दें और विजेट कुछ कम कर दीजिए।
1- चर्चा मंच में इस ब्लॉग पर पोस्ट की हुई रचनाएँ लेने में सरलता होगी।
2- अभी4 यह ब्लॉग बहुत देर में खुलता है, विजेट कम होने से जल्दी खुलेगा।
धन्यवाद!
आदरणीय शास्त्री जी आप के सुझाव का स्वागत है अमल हो चुका है मेरे मन में भी अब समूह को ध्यान रख ये बात आई थी ...जय श्री राधे
भ्रमर ५
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