गोरी के आंचल में
झिलमिल सितारे हैं
चंदा को सूरज भी
छिप के निहारे है
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रेत के समंदर में
बूँद एक उतरी तो
ललचाई नजरों ने
सोख लिया प्यारी को
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उदय अंत में त्रिशंकु -
बन ! मै लटकता हूँ
राहु -केतु से कटे भी
दंभ लिए फिरता हूँ
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चार दिन की जिन्दगी है
चार पल की यारी है
चाँद भी खिसक गया
रात अंधियारी हैं
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कल अंडा था
बच्चा बनकर
चीं चीं चूं चूं बोला
खेला खाया
उड़ा साथ कुछ
मै रह गया अकेला
MAA SAB MANGAL KAREN
4 comments:
अच्छी और भावपूर्ण रचना |
आशा
सुन्दर प्रस्तुति ।
आभार ।।
आदरणीया आशा जी ..जय श्री राधे ..प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
भ्रमर ५
प्रिय रविकर जी रचना आप के मन को छू सकी सुन ख़ुशी हुयी -- धन्यवाद और आभार
भ्रमर ५
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