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Tuesday 3 April 2012

ज्वार जवानी कनक सी, रही ध्यान है बाँट-

मर्यादित व्यवहार, ज्येष्ठ से हरदम इच्छित -

फागुन और श्रावणी


फागुन से मन-श्रावणी,  अस्त व्यस्त संत्रस्त
भूली भटकी घूमती,  मदन बाण से ग्रस्त । 
मदन बाण से ग्रस्त, मिलन की प्यास बढाये ।
जड़ चेतन बौराय, विरह देहीं सुलगाये ।
तीन मास संताप, सहूँ मै कैसे निर्गुन ?
डालो मेघ फुहार, बड़ा तरसाए फागुन ।।
 

आश्विन और ज्येष्ठ

आश्विन की शीतल झलक, ज्येष्ठ मास को भाय।
नैना तपते रक्त से, पर आश्विन  इठलाय ।
पर आश्विन इठलाय, भाव बिन समझे कुत्सित।
मर्यादित व्यवहार, ज्येष्ठ से हरदम इच्छित ।
मेघ देख कर खिन्न, तड़पती तड़ित तपस्विन ।
भीग ज्येष्ठ हो शांत , महकती जाती आश्विन ।।

 बैशाख और मेघा / माघ


मेघा को ताका करे, नाश-पिटा बैसाख ।
करे भांगड़ा तर-बतर, बट्टा लागे शाख ।
बट्टा लागे शाख, मुटाता जाय दुबारा ।
पर नन्दन वैशाख,  नहीं मेघा को  प्यारा ।
मेघा ठेंग दिखाय, चिढाती  कहती  घोंघा ।
ठंडी मस्त बयार, झिड़कती उसको मेघा ।।   

 चित्रा (चैत्र)


चित्रा के चर्चा चले, घर-आँगन मन हाट ।
ज्वार जवानी कनक सी, रही ध्यान है बाँट ।
रही ध्यान है बाँट,  चूड़ियाँ साड़ी कंगन ।
जोह रही है बाट, लाट होंगे मम साजन ।
फगुनाहटी सुरूर, त्याग अब कहती मित्रा ।
विदा करा चल भोर, ताकती माती-चित्रा ।।

आश्विन और कार्तिक

चूमा-चाटी कर रहे,  उत्सव में पगलान ।
डेटिंग-बोटिंग में पड़े, रेस्टोरेंट- उद्यान ।
रेस्टोरेंट- उद्यान, हुवे खुब कसमे-वादे ।
पूजा का माहौल, प्रेम रस भक्ति मिला दे ।
नव-दुर्गा आगमन, दिवाली जोड़ा घूमा ।
पा लक्ष्मी वरदान, ख़ुशी से माथा चूमा ।।

1 comment:

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

प्रिय रविकर जी जय श्री राधे ...आप ने साहित्य सृजन में एक और नया अध्याय शुरू किया बधाई हो..... प्रतापगढ़ (बेल्हा) अवध मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अवध ही है यहाँ बेल्हा देवी सई नदी के तीर में- प्रभु के चरण पड़े थे प्रयाग जाते समय ...बड़ी ख़ुशी हुयी आप और आशा जी ने शुरुआत की
अपना स्नेह बनाये रखें
मौसमों को आप ने जीवंत कर दिया ..मन आनंदित हुआ
भ्रमर ५