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Thursday, 12 April 2012

रविकर मौका देख, गधे को बाप बनाते -

सीधा साधा सौम्य सा . काँखा- कूँखा नाय ।
नमक-रुई की बोरियां, चतुराई विसराय ।

चतुराई विसराय, नई संतति  है  आई  |
गबरगण्ड गमखोर, गधे को मिले बधाई ।

बन्दे कुछ चालाक, गधे से हल चलवाते ।
रविकर मौका देख, गधे को बाप बनाते ।। 


3 comments:

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

बहुत सुन्दर कहा ..आज तो मैनेजर को गधे बहुत पसंद हैं ...बहुत अच्छा लगा ..अपना समर्थन और स्नेह बनाये रखें ..भ्रमर ५
भ्रमर
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

प्रिय रविकर जी प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच के लिए आप का स्नेह यूं ही बरसता रहे ये अवध का बेला यूं ही महकता रहे ..हमारे कवि महोदय मस्त मौला रविकर जी को बधाइयां
आभार
भ्रमर ५

Asha Lata Saxena said...

अच्छी रचना |
आशा