सावन का महीना
हरियाली – कजरी
कारे बदरा उमड़ -घुमड़ डराए
खुरपी -पलरी लिए घास की
अम्मा दौड़ी आई द्वारे
दामाद -बेटी के अचानक
घर आने की खबर सुन
थी सकपकाई
आस पास दौड़
सुब कुछ जुटाई
चूल्हे के पास धुएं में
बैठ बिटिया अम्मा संग
आंसू पोंछ -पोंछ
जी भर के बतियाई
पूड़ी कढ़ी
दामाद आया
कोहनी से मार- रूपा को
“उसने” -खूब उकसाया
“कुछ” कहने को
हलक में अटके शब्द
रूपा को गूंगा बनाये
फिर बिदाई
एक बंधन में बंधी गाय
चले जैसे संग -
किसी कसाई
गले लिपटी रोये
आंसू से ज्यों सारी यादें
धोती लगे – नीर इतना -
ज्यों बाढ़ सब कुछ
बहा ले जाए
अम्मा की मैली पुरानी साड़ी
सूखी कड़ाही में जलती पूड़ी
ज्यों सूखे सर में फंसा कमल
छटपटाना
घर का गिरता -छज्जा -कोना
देखती –चली —गयी ……
और कल सुबह
खबर आ पहुंची
स्टोव फट गया
अरी ! बुधिया करमजली
रूपा ..तेरी बिटिया
तो जल गयी ………
(सभी फोटो साभार गूगल /नेट से लिया गया )
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
जल पी बी २७.०७.२०११ ५.४५ पूर्वाह्न
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