है कैसा पाषाण सा
भावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाःभावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा
7 comments:
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीया-
सूचना हेतु धन्यवाद रविकर जी |
आशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति व रचना आदरणीय श्री को धन्यवाद
एक सूत्र आपके लिए अगर समय मिले तो --: श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन ?
* जै श्री हरि: *
सुन्दर रचना !
नई पोस्ट काम अधुरा है
निराशा के गहरे कूप से भग्न हृदय के अवशेषों को साथ लेकर निकलती हुयी पंक्तियाँ ! अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक अभिनन्दन है.
बहुत बढ़िया रचना !
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में
सुन्दर रचना ...
काश ये पाषाण हृदय मानवीय संवेदनाओं भावों को समझ मानवता को गले लगा ले ...तो आनंद और आये आदरणीया आशा जी
भ्रमर ५
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