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Sunday, 23 September 2012

कल चला था पुनः राह मै उसी दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …




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( फोटो साभार गूगल / नेट से लिया गया )









कल चला था पुनः राह मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए ...
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रौशनी छन के आई गगन से कहीं
दिल के अंधियारे दीपक जला के गयी
राह टेढ़ी चढ़ाई  मै चढ़ता गया
दो दिलों की सी धड़कन मै सुनता रहा
कोई सपनों में रंगों को भरता रहा
रागिनी-मोहिनी-यामिनी-श्यामली
मेंहदी गोरी कलाई पे रचता रहा
छम -छमा-छम सुने पायलों की खनक
माथ बिंदिया के नग में था उलझा हुआ
इंद्र-धनुषी छटा में लिपट तू कहीं
उन सितारों की महफ़िल सजाती रही
लटपटाता रहा आह भरता   रहा
फिर भी बढ़ता रहा रंग भरता रहा
तूने लव बनाये थे कुछ तरु वहीं
चीड-देवदार खामोश हारे सभी
तेरी जिद आगे हारे न लौटा सके
ना तुझे-ना वो खुशियाँ- न रंगीनियाँ
पलकों के शामियाने बस सजे रह गए
ना वो 'दूल्हा' सजा , ना वो 'दुल्हन' सजी
मंच अरमा , मचल के कतल हो गए
वर्फ से लदे गिरि  पर्वत वहीं थे कफ़न से
दिखे ! चांदी की घाटियाँ  कब्र सी बन गयीं
सुरमई सारे पल वे सुहाने सफ़र
सारे रहते हुए -बिन तुम्हारे सखी !
सारे धूमिल हुए -धूल में मिल गए
सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
फूल कुछ कुछ झरे 'हार' से बन गए
कौंधी बिजली तू आयी -समा नैन में
प्रेम -पाती ह्रदय में जो रख तू गयी
मै पढता रहा मै सम्हलता रहा डग भरता रहा
अश्रु छलके तेरी प्रीती में जो सनम
मै पीता रहा पी के जीता रहा
झील सी तेरी अंखियों में तरता रहा
तेरी यादों का पतवार ले हे प्रिये
तेरे नजदीक पल-पल मै आता रहा
दीप पल-पल जला-ये बुझाता रहा
आँधियों से लड़ा - मै जलाता रहा !
कल चला था पुनः राह मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए ...
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
४.४५-५.४० मध्याह्न
१९.५.१२ कुल्लू यच पी



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

2 comments:

Asha Lata Saxena said...

कविता बहुत भावनापूर्ण

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी कविता में कुछ भावपूर्ण तथ्य दिखे आप ने सराहा लिखना सार्थक रहा
आभार
भ्रमर ५