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Wednesday, 4 April 2012

माँ

माँ

अतुलनीय है प्यार ,
तुम्हारे नेह बंध का सार ,
मुझ में साहस भर देता है ,
नहीं मानती हार ,
माँ तुझे मेरा शत-शत प्रणाम |
आज जहाँ मै खड़ी हुई हूँ ,
जैसी हूँ ,
तुमसे ही हूँ मैं ,
मुझे यही हुआ अहसास ,
माँ तुझे मेरा प्रणाम |
तुमने मुझ में कूट- कूट कर 
भरा आत्म विश्वास ,
माँ मेरा तुझे शत-शत प्रणाम |
न कोई वस्तु मुझे लुभाती ,
कभी किसी से ना भय खाती ,
रहती सदा ससम्मान ,
माँ मेरा तुझे हर क्षण प्रणाम !
 
आशा 

2 comments:

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति ।

बधाई ।

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी जय श्री राधे ...आप और रविकर जी ने साहित्य सृजन में एक और नया अध्याय शुरू किया बधाई हो..... प्रतापगढ़ (बेल्हा) अवध मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का अवध ही है यहाँ बेल्हा देवी सई नदी के तीर में- प्रभु के चरण पड़े थे प्रयाग जाते समय ...बड़ी ख़ुशी हुयी रविकर जी और आप ने शुरुआत की
आप की अनकहा सच के विमोचन के लए बधाइयाँ
अपना स्नेह बनाये रखें
माँ का प्रेम अपरम्पार है ...बहुत सुन्दर रचना
आज जहाँ मै खड़ी हुई हूँ ,

जैसी हूँ ,
तुमसे ही हूँ मैं ,
मुझे यही हुआ अहसास ,
माँ तुझे मेरा प्रणाम
भ्रमर ५