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Wednesday, 6 July 2011

भ्रष्ट आचरण -भ्रष्टाचारी सरकारी ही दिखते थे !

भ्रष्ट आचरण -भ्रष्टाचारी
सरकारी ही दिखते थे !
आते -जाते पाँव थे घिसते
“भ्रमर” सभी ये कहते थे !!
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सरकारी संग- प्राइवेट भी
अब तो ताल मिलाये हैं !
सोने पर कुछ रखे सुहागा
उसकी चमक बढ़ाये हैं !!
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गठ – बंधन नीचे से ऊपर
खा-लो -भर लो -होड़ लगी !
अपने प्रिय चमचों को भाई
हर वर्ष -प्रमोशन दिलवाए हैं !!
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रीति अनीति राह कोई भी
भर कर लेकर ही आओ
नहीं गधा- घोडा बन जाए
खच्चर तुम – लादे जाओ !!
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चपरासी कुछ लिपिक यहाँ भी
मालिक बन कर बैठे हैं !
नीति नियम धन ईमान लेकर
अफसर रोते बैठे हैं !!
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कुचले -दबे लोग भी कुछ हैं
मेहनत-अनुशासन -खट मरते
बाँध सब्र का- गर टूटा तो
क्रांति – सुनामी लायेंगे !!

शुक्ल भ्रमर ५ -६.७.2011
८.35 पूर्वाह्न -जल पी बी

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