AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com
Monday, 23 December 2013
सांता क्लॉस
Wednesday, 11 December 2013
क्षणिकाएं ( भाग २)
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
क्षणिकाएं (भाग २)
मन से मन की बात यदि ना हो पाए
मन चाही मुराद यदि मिल न पाए
मन दुखी तब क्यूं न हो
बेमौसम का राग वह क्यूँ गाए |
(२)
सुनी गुनी कही बातें
वजन तो रखती हैं
पर हैं कितने लोग
जो उन पर अमल करते हैं |
(३)
पर देखी सिर्फ तानाकशी
खुशी गायब हो गयी
ज्ञान न था दिलों में
इतना विष घुला है
प्यार का तो ऊपरी दिखावा है
हर इंसान का दोहरा चेहरा है |..
(४)
(३)
मैंने सजाई थी महफिल
हंसने हंसाने को पर देखी सिर्फ तानाकशी
खुशी गायब हो गयी
ज्ञान न था दिलों में
इतना विष घुला है
प्यार का तो ऊपरी दिखावा है
हर इंसान का दोहरा चेहरा है |..
(४)
मधुमास में
पतझड़ की बातें
शोभा नहीं देतीं
खुशी के आलम में
उदासी भर देतीं |
आशा
पतझड़ की बातें
शोभा नहीं देतीं
खुशी के आलम में
उदासी भर देतीं |
आशा
Monday, 11 November 2013
है कैसा पाषाण
है कैसा पाषाण सा
भावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाःभावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा
Tuesday, 22 October 2013
Saturday, 12 October 2013
ढोलक बजाकर लोगों को आश्चर्यचकित करने वाले बाल कलाकार दयानंद ने सफलता की लंबी उड़ान भरी है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में जगह पाने वाला यह प्रतापगढ़ का पहला कलाकार है।
प्रतापगढ़ [जासं]। नन्हीं अंगुलियों से ढोलक बजाकर लोगों को आश्चर्यचकित करने वाले बाल
कलाकार दयानंद ने सफलता की लंबी उड़ान भरी है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में जगह पाने
वाला यह प्रतापगढ़ का पहला कलाकार है।
कलाकार दयानंद ने सफलता की लंबी उड़ान भरी है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में जगह पाने
वाला यह प्रतापगढ़ का पहला कलाकार है।
मंगरौरा विकास खंड के लाखीपुर गांव निवासी बाल कलाकार दयानंद सामान्य परिवार का है। छोटी-
सी उम्र से ही ढोलक बजाकर जनपद को गौरवान्वित कर रहा है। बच्चे का नाम लिम्का बुक तथा
गिनीज बुक में दर्ज कराने के लिए उसके पिता देवी प्रसाद विश्वकर्मा ने सांसदों, विधायकों व
मंत्रियों के यहां दस्तक दी।
सी उम्र से ही ढोलक बजाकर जनपद को गौरवान्वित कर रहा है। बच्चे का नाम लिम्का बुक तथा
गिनीज बुक में दर्ज कराने के लिए उसके पिता देवी प्रसाद विश्वकर्मा ने सांसदों, विधायकों व
मंत्रियों के यहां दस्तक दी।
बाल कल्याण समिति ने दैनिक जागरण की खबरों की कतरन लगाकर लिम्का बुक कार्यालय को
पत्र भेजा। इस पर लिम्का की संपादक विजया घोष, सहसंपादक स्मिता थामस व एडवाइजर
प्रशांत डिसूजा ने दयानंद का एक घंटे का कार्यक्रम देखा। इसके बाद उसे बुके भेंटकर सम्मानित
किया।
पत्र भेजा। इस पर लिम्का की संपादक विजया घोष, सहसंपादक स्मिता थामस व एडवाइजर
प्रशांत डिसूजा ने दयानंद का एक घंटे का कार्यक्रम देखा। इसके बाद उसे बुके भेंटकर सम्मानित
किया।
शनिवार को लिम्का बुक की सहसंपादक स्मिता थामस के हवाले से पत्र भेजकर बताया गया कि
टीवी शो में सब से कम उम्र के ढोलक वादक के रूप में दयानंद का दावा स्वीकार कर लिया गया
है। उसका नाम लिम्का बुक में प्रकाशित होगा।
टीवी शो में सब से कम उम्र के ढोलक वादक के रूप में दयानंद का दावा स्वीकार कर लिया गया
है। उसका नाम लिम्का बुक में प्रकाशित होगा।
प्रिय दयानंद ढोलक बादक के बारे में बहुत अच्छी जानकारी कला और गुण का सम्मान और उसका प्रचार
होना ही चाहिए ... आप (दैनिक जागरण समाचार पत्र जागरण .काम ) का आभार यदि इस बच्चे की उम्र और
फोटो भी आप ने दिया होता तो बहुत अच्छा होता ... ये हमारे जनपद प्रतापगढ़ से हैं इसलिए दिली ख़ुशी हुयी
प्रभु इस बच्चे को नित नए आयाम पाने को आशीष और अवसर दें ..हम आप के इस संवाद को प्रतापगढ़
साहित्य प्रेमी मंच पर भी स्थान देंगे आप को सूचित किया जा रहा है अनुमति दें कृपया
भ्रमर ५ प्रतापगढ़ उ. प्रदेश भारत
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Saturday, 5 October 2013
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ||
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ||
जय माँ शैलपुत्री ..
प्रिय भक्तों आइये माँ शैलपुत्री की आराधना निम्न श्लोक से शुरू करें उन्हें अपने मन में बसायें
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ||
नवरात्रि का शुभारम्भ हो गया आज से सब कुछ पवित्र मन मंदिर ..एक नया जोश ..भक्ति भावना से ओत प्रोत भक्तों के मन ..शंख और घंटों की आवाज लगता है सब देव भूमि में हम सब आ गए हैं
दुर्गा पूजा के इस पावन त्यौहार का प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना इस उपर्युक्त मंत्र द्वारा की जाती है.
मां दुर्गा की पहली स्वरूपा और शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही यह पावन पूजा आरम्भ हो जाती है. नवरात्रि पूजन के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही माँ शैल पुत्री की पूजा और उपासना की जाती है. माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभित होता है.
इस प्रथम दिन की उपासना में योगी जन अपने मन को 'मूलाधार'चक्र में स्थित करते हैं और फिर उनकी योग साधना शुरू होती है . पौराणिक कथा के अनुसार मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर में कन्या के रूप में अवतरित हुई थी.
उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह प्रभु शिव शंकर से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को इस यज्ञं में आमंत्रित नहीं किया , अपनी मां और बहनों से मिलने को आतुर माँ सती बिना आमंत्रण के ही जब अपने पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और प्रभु भोलेनाथ के प्रति कोई प्रेम न दिखाई दिया बल्कि तिरस्कार ही दिखाई दिया . अपने पति का यह अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं होता
माँ सती इस अपमान को बिलकुल सहन नहीं कर पायीं और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया जब इसकी जानकारी भोले शिव शंकर को होती है तो वे दक्षप्रजापति के घर जाकर तांडव मचा देते हैं तथा अपनी पत्नी के शव को उठाकर पृथ्वी के चक्कर लगाने लगते हैं। इसी दौरान सती के शरीर के अंग धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरते चले जाते हैं। यह अंग जिन 51 स्थानों पर गिरते हैं वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो जाती है ।
पुनः अगले जन्म में माँ ने शैलराज हिमालय के घर में पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण माँ दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को शैल पुत्री नामकरण किया गया
नवरात्रि के पहले दिन भक्त घरों में कलश की स्थापना करते हैं जिसकी अगले आठ दिनों तक पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री का यह अद्भुत रूप मन में रम जाता है दाहिने हाथ में त्रिशूल व बांए हाथ में कमल का फूल लिए मां अपने भक्तों को आर्शीवाद देने आती है।
ध्यान मंत्र .....माँ शैलपुत्री की आराधना के लिए भक्तों को विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए ताकि वह मां का आर्शीवाद प्राप्त कर सकें।
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
फिर क्रमशः दुसरे से आठवें दिन तक
ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा ,कुस्मांडा ,स्कन्द माता ,कात्यायिनी , कालरात्रि,महागौरी माँ को पूजा जाता है
और फिर नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना होती है जो की सिद्ध, गन्धर्व,यक्ष ,असुर, और देव द्वारा पूजी जाती हैं सिद्धि की कामना हेतु , यहाँ तक की प्रभु शिव ने भी उन्हें पूजा और शक्ति ..अर्धनारीश्वर के रूप में उनके बाएं अंग में प्रतिष्ठापित हुईं
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः |
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः |
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः |
नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः |
जय माँ अम्बे ...माँ दुर्गा सब को सद्बुद्धि दें सब का कल्याण हो ...
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.
05.10.2013
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Monday, 30 September 2013
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
माँ के जैसी साथ
निभाया गुरु कह माथ नवाओ
ऊँगली पकडे चले
-सिखाया -आओ साथ निभाओ
जैसा प्रेम दिया
मैंने है जग में जा फैलाओ
उन्हें ककहरा अ आ
इ ई जा के ज़रा सिखाओ
संधि करा दो छंद
सिखा दो अलंकार सिखलाओ
प्रेम वियोग विरह
रस दे के अंतर ज्योति जलाओ
रच कविता जीवन दे
उसमे कर श्रृंगार जगा दो
करुणा दया मान मर्यादा सम्पुट हिंदी खोल बता दो
देव-नागरी लिपि
है आत्मा परम-आत्मा कहिये
ज्ञान का है
भण्डार ये हिंदी भाषा-भाषी ग्यानी कहिये
सरल ज्ञान नेकी
है जिन दिल ना इन्हें मूढ़ समझिये
मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
=====================================
मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
हिंदी है कमजोर
या सस्ती मूढ़ आत्मा ना बनिए
डूबो पाओ मोती
गूंथो विश्व-बाजार में फिर -फिरिए
बीज को अपने खेती
अपनी जो ना मान दिया तूने
बिना खाद के जल
के जीवन मिटटी मिला दिया तूने
अहं गर्व सुर-ताल
चूर कर गोरी चमड़ी भाषा झांके
वेद शास्त्र सब ग्रंथन को रस-रच हिंदी काहे कम आंके
पत्र-पत्रिका
चिट्ठी-चिट्ठे ज्ञान अपार भरा हिंदी में
रोजगार व्यवहार
सरल है साक्षात्कार कर लो हिंदी में
हिंदी भत्ता वेतन
वृद्धि खेत कचहरी हिंदी आँको
हिंदी सहमी दूर
कहीं जो गलबहियां जाओ तुम डालो
हार 'नहीं' है 'हार' तुम्हारा विजय पताका जा फहराओ
इस हिंदी की
बिंदी को तुम माँ भारति के भाल सजाओ
कल्पतरु सी गुण
समृद्धि सब देगी हिंदी नाज से कहिये ……..
मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
=====================================
सुरेन्द्र कुमार
शुक्ल ' भ्रमर ५'
११ -१ १ .५ ०
मध्याह्न
३ ० सितम्बर २ ०
१ ३
प्रतापगढ़
वर्तमान कुल्लू
हिमाचल भारत
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Saturday, 14 September 2013
धर्म की आड़ में
तेरा क्यों सम्मान करें ,
जो बार-बार सबने चाहा ,
तेरा धरम से क्या नाता ,
तू तो केवल चेक भुनाता ,
धर्म गुरू लोगों ने कहा ,
पर तू ना निकला सन्यासी ,
अरे धर्म का नाम डुबा,
कितने ढोंग रचाये तूने ,
जो चाहा जितना चाहा ,
शिष्यों से पाया तूने ,
मन भूखा तेरा तन भूखा ,
अरे मूर्ख अत्याचारी,
तेरे जैसे कई लोगों ने ,
धर्म की नींव हिला डाली ,
कई बार धर्म की आड़ लिए ,
लोगों को बर्बाद किया ,
जिनको माँ और बहन कहा ,
उनको ही गुमराह किया ,
किसी समस्या में फँस कर ,
मन का चैन खो जाने पर ,
आत्मशांति की चाहत में ,
यदि तेरी कोई शरण आया ,
शरणागत को खूब लुभा ,
कमजोर क्षणों का लाभ उठाया ,
आस्था का जाल बिछा,
अंधविश्वासी उसे बनाया ,
एक बालिका मैंने देखी ,
जिसने माँ की गलती झेली,
बाबा के चक्कर में फँस कर ,
वह मुग्धा बन बैठी चेली ,
पढ़ा लिखा सब धूल हो गया ,
खुद से ही खुद को बिसराया ,
बाबा ही शान्ति देते हैं ,
हर क्षण उसके संग रहते हैं ,
नहीं असहाय लाचार रहे ,
मन में ऐसा भाव जगाया ,
जो कुछ भी वह करती है ,
या बात किसी से करती है ,
बाबा सारी बातें उसकी ,
पूरी-पूरी सुन सकते हैं ,
उसको शक्ती देते हैं ,
मन में यह भ्रम रखती है ,
ऐसे ही कुछ बाबाओं ने,
धर्म ग्रंथों से नाता जोड़ा ,
अच्छी भाषा लटके झटके ,
व चमत्कार सबसे हटके ,
लोगों से नाता जोड़ा ,
ली धर्म की आड़ ,
अपने रंग में उन्हें डुबोया ,
जब कोई बुद्धिजीवी आया ,
सारी पोल पकड़ पाया ,
जैसे ही मुख से हटा मुखौटा ,
असली रूप नजर आया ,
तू बाबा है या व्यभिचारी ,
या है कोई संसारी ,
तेरी दरिंदगी देख-देख,
नफरत दिल में पलती है ,
आस्था जन्म नहीं लेती ,
मन में अवसाद ही भरती है|
आशा
जो बार-बार सबने चाहा ,
तेरा धरम से क्या नाता ,
तू तो केवल चेक भुनाता ,
धर्म गुरू लोगों ने कहा ,
पर तू ना निकला सन्यासी ,
अरे धर्म का नाम डुबा,
कितने ढोंग रचाये तूने ,
जो चाहा जितना चाहा ,
शिष्यों से पाया तूने ,
मन भूखा तेरा तन भूखा ,
अरे मूर्ख अत्याचारी,
तेरे जैसे कई लोगों ने ,
धर्म की नींव हिला डाली ,
कई बार धर्म की आड़ लिए ,
लोगों को बर्बाद किया ,
जिनको माँ और बहन कहा ,
उनको ही गुमराह किया ,
किसी समस्या में फँस कर ,
मन का चैन खो जाने पर ,
आत्मशांति की चाहत में ,
यदि तेरी कोई शरण आया ,
शरणागत को खूब लुभा ,
कमजोर क्षणों का लाभ उठाया ,
आस्था का जाल बिछा,
अंधविश्वासी उसे बनाया ,
एक बालिका मैंने देखी ,
जिसने माँ की गलती झेली,
बाबा के चक्कर में फँस कर ,
वह मुग्धा बन बैठी चेली ,
पढ़ा लिखा सब धूल हो गया ,
खुद से ही खुद को बिसराया ,
बाबा ही शान्ति देते हैं ,
हर क्षण उसके संग रहते हैं ,
नहीं असहाय लाचार रहे ,
मन में ऐसा भाव जगाया ,
जो कुछ भी वह करती है ,
या बात किसी से करती है ,
बाबा सारी बातें उसकी ,
पूरी-पूरी सुन सकते हैं ,
उसको शक्ती देते हैं ,
मन में यह भ्रम रखती है ,
ऐसे ही कुछ बाबाओं ने,
धर्म ग्रंथों से नाता जोड़ा ,
अच्छी भाषा लटके झटके ,
व चमत्कार सबसे हटके ,
लोगों से नाता जोड़ा ,
ली धर्म की आड़ ,
अपने रंग में उन्हें डुबोया ,
जब कोई बुद्धिजीवी आया ,
सारी पोल पकड़ पाया ,
जैसे ही मुख से हटा मुखौटा ,
असली रूप नजर आया ,
तू बाबा है या व्यभिचारी ,
या है कोई संसारी ,
तेरी दरिंदगी देख-देख,
नफरत दिल में पलती है ,
आस्था जन्म नहीं लेती ,
मन में अवसाद ही भरती है|
आशा
Monday, 2 September 2013
प्रेरणा शिक्षक से
आसपास के अनाचार से
खुद को बचाकर रखा
पंक में खिले कमल की तरह
कीचड से स्वम् को बचाया तुमने
सागर में सीपी बहुत थी
अनगिनत मोती छिपे थे जिनमे
उनमे से कुछ को खोजा
बड़े यत्न से तराशा तुमने
जब आभा उनकी दिखती है
प्रगति दिग दिगंत में फैलती है
लगता है जाने कितने
प्यार से तराशा गया है
उनकी प्रज्ञा को जगाया गया है
काश सभी तुम जैसे होते
काश सभी तुम जैसे होते
कच्ची माटी जैसे बच्चों को
इसी प्रकीर सुसंस्कृत करते
अच्छे संस्कार देते
स्वच्छ और स्वस्थ मनोबल देते
अपने बहुमूल्य समय में से
कुछ तो समय निकाल लेते
फूल से कोमल बच्चों को ,
विकसित करते सक्षम करते ,
जो कर्तव्य तुमने निभाया है ,
सन्देश है उन सब को
विकसित करते सक्षम करते ,
जो कर्तव्य तुमने निभाया है ,
सन्देश है उन सब को
तुम से कुछ सीख पाएं
नई पौध विकसित कर पाएं
खिलाएं नन्हीं कलियों को
कई वैज्ञानिक जन्म लेंगे
अपनी प्रतिभा से सब को
गौरान्वित करेंगे
जीवन में भी सफल रहेंगे
अन्य विधाओं में भी
अपनी योग्यता सिद्ध करेंगे
जब रत्नों की मंजूषा खुलेगी
कई अनमोल रत्न निकलेंगे |
आशा
आशा
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