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Wednesday, 20 June 2012

बरसात

बरसात


हरी भरी वादी में
लगी ज़ोर की आग
मन में सोचा
जाने होगा क्या हाल ।
फिर ज़ोर से चली हवा
हुआ आसमान स्याह
उमड़ घुमड़ बादल बरसा
सरसा सब संसार |
बरस-बरस जब बादल हुआ उदास
मैंने जब देखा तब पाया
पानी जम कर
बर्फ बन गया |  
ओला बन कर
झर-झर टपका
पृथ्वी की गोद भरी उसने
ममता से मन
पिघल-पिघल कर
पानी पानी पुनः हो गया |
काले भूरे रंग सुनहरे
कितने रंग सजाये नभ ने ।
उगते सूरज की किरणें
बुनने लगीं सुनहरे सपने
सारा अम्बर
पुनः हुआ सुनहरा
जीवन को जीवन्त कर गया !
                            आशा                          

4 comments:

रविकर said...

बहुत खूब ||

उमड़-घुमड़ कर बरसे बादल, दल-दल धरती होय |

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी बहुत सुन्दर प्राकृतिक चित्रण मन मोह गया ....काश ये बरसात जल्द आये ..
काले भूरे रंग सुनहरे कितने रंग सजाये नभ ने ...
सुन्दर
भ्रमर ५

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

प्रिय रविकर जी बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया ..अपना प्रोत्साहन बनाये रखें
भ्रमर ५

Asha Lata Saxena said...

टिप्पणी हेतु आभार |टिप्पणी से प्रोत्साहन मिलता है |ऐसा ही स्नेह बनाए रखें |
आशा