सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
एक बच्चे की चाहत पारिवारिक रिश्ते को अंसतुलित करती है
(1)
खर्चा पूरा पड़े क्या, जब बच्चा अतिरिक्त |
व्यर्थ व्यस्तता भी बढे, पुन: रक्त से सिक्त |
व्यर्थ व्यस्तता भी बढे, पुन: रक्त से सिक्त |
पुन: रक्त से सिक्त, रिक्त बटुवा हो जाता |
बिना पार्लर हाट, विलासी मन घबराता |
माँ का बदला रूप, पार्टी होटल चर्चा |
लैप-टॉप सेल कार, निकल न पावे खर्चा ||
लैप-टॉप सेल कार, निकल न पावे खर्चा ||
(2)
इक बच्चे से ही निकल, जाती अपनी फूंक ।
दो बच्चों का पालना, बड़ी भयंकर चूक ।
बड़ी भयंकर चूक, अवज्ञा मात-पिता की ।
बात कहूँ दो टूक, तैयारी करें चिता की ।
हाथ हमेशा तंग, गुप्त कुछ अपने खर्चे ।
कर न रविकर व्यंग, पाल ले इक इक बच्चे ।।
(3)
होटलबाजी करूँ नित, शाम रहूँ मदहोश ।
कार्यालय में दिन सकल, शेष बचे न होश ।
शेष बचे न होश , कैरियर कौन सँवारे ।
रविकर किसका दोष, समय के दोनों मारे ।
जीते हम चुपचाप, पराई दखलंदाजी ।
बंद करें अब आप, करें अब होटल बाजी ।।
होटलबाजी करूँ नित, शाम रहूँ मदहोश ।
कार्यालय में दिन सकल, शेष बचे न होश ।
शेष बचे न होश , कैरियर कौन सँवारे ।
रविकर किसका दोष, समय के दोनों मारे ।
जीते हम चुपचाप, पराई दखलंदाजी ।
बंद करें अब आप, करें अब होटल बाजी ।।
(4)
एकांतवास का युग अहम्, कलयुग इसका नाम ।
दो बच्चों का है वहम, बनते श्रेष्ठ तमाम ।
बनते श्रेष्ठ तमाम, तीन भाई हैं मेरे ।
आते हैं क्या काम, अलग सब लेकर डेरे ।
मात-पिता असहाय, उदाहरण बहुत पास का ।
बड़ी विरोधी राय, मजा एकांतवास का ।।
4 comments:
प्रिय रविकर जी बहुत सुन्दर ..लोग सच में उलझे हुए हैं ..होटल नशा बेफिजूल खर्चे ..कारण कुछ बताते हैं करते कुछ हैं और दोष आता है की बच्चे ज्यादा हो गए ..पहले भी तो बच्चे होते थे माँ बाप के पास कोई न कोई सहारा रह जाता था ...सभी विन्दु पर आप ने प्रकाश डाला
आभार
भ्रमर ५
आदरणीया शिखा कौशिक जी ..आभार आप का ....प्रतापगढ़ साहित्य मंच पर आप का हार्दिक स्वागत है ....जय श्री राधे
भ्रमर ५
आदरणीया शिखा कौशिक जी ..आभार आप का ....प्रतापगढ़ साहित्य मंच पर आप का हार्दिक स्वागत है ....जय श्री राधे
भ्रमर ५
बहुत सही सोच है
आशा
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