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Wednesday 14 December 2011

कवि -लेखक को वेतन मिलता

कवि -लेखक को वेतन मिलता

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ये जग कितना सुन्दर होता

कवि लेखक को वेतन मिलता

राज-कवी बन पूजे जाते

राजा मन की बात लिखाते

शिला लेख पर लिख -लिख यारों

राजा का हर गुण हम गाते

सोने चांदी और अशरफी

हीरे मोती दान में पाते

चाटुकार चमचों से भाई

कभी नहीं हम सब भय खाते

राज महल दरबार में बैठे

चुटकुले सुनाकर कभी हंसाते

अब बिन वेतन भूख से आकुल

पेट जले उपजे है पीड़ा

कुटिया में सूरज शशि झांके

इंद्र -वज्र ले हमें डरा दे

वसन फटा है -पाँव बिवाई

ठिठुरी कविता -तब -रोती आई

सागर से ज्वालामुखी निकल

जब अंगारों सा बह जाता

फिर लावा धुवां राख करता

उनकी छाती में गड़ जाता !!

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इन कंकालों में है ताकत

ये आह करें -सब -धातु भसम

रोटी कपडे रहने खातिर

जब टिड्डी दल है चल जाता

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ये दौड़ें पागल कुत्तों सा

बेचैन हुए बस झपट रहे

ये पूँछ टेढ़ी रहे सदा

इन को सब भान है हो जाता

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फिर मुंह पर ताले चले लगाने

गायें अपने बस ना हों बेगाने

सारे राक्षस फिर मिल जाते

धर्म -मृत्युसब-लाला बांधें

गेह में बांधें सभी खिलाते

मनमर्जी- फिर -बैठ लिखाते

कवि लेखक को वेतन मिलता

जग ये कितना सुन्दर होता ??

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भ्रमर

.०२-.५६ पूर्वाह्न

.१२.२०११

यच पी

2 comments:

Asha Lata Saxena said...

अच्छा विचार है कवी लेखक को व्वेतन मिलता आनंद दायक रचना |
आशा

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी अभिवादन ...मिलता तो क्या होता ये एक प्रश्न भी है रचना में न ?
रचना आप के मन को भायी सुन ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५