कलयुग है या भ्रष्टतंत्र है
तानाशाही-अत्याचार???
चार जमा कर स्विस में बैठे
भूखे मरें हजार .................
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चक्की में जो पिसे लोग हैं
अब चक्की पर चढ़ बैठे !
लिए हथौड़ा छेनी संग में
कितनी मूर्ति ---गढ़ बैठे !!
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जला -"दिया" है -पूंछ सुलगती
कभी धमाका हो सकता !
अंधियारे में डींग हांकती
सोयी बैठी है सरकार !!
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इतने दिन में ना लिख पाओ
"रामायण" कोई बात नहीं
राम से मिल के चरण पकड़ के
राम कथा के नीति नियम -
"कुछ "- लगे लगा लो बात बने !!
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रावण सा तुम अहं भरो ना
समय चक्र चलता है -"काल"
मन में मैल भरी जो धो लो
आँखों से पट्टी तो खोलो
गांधारी- धृत राष्ट्र- बनो ना
कौरव -तेरे ना टिक पायें
"पांच" पांडव- हैं दमदार !!
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पत्थर ढोती वानर सेना
पुल भी कभी बना सकती
ले मशाल जो बढ़ निकली है
लंका- आग लगा सकती !!
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पास विभीषण हैं तेरे भी
कुछ मंदोदरी भी हैं बैठी
उनकी भी कुछ बात सुनो हे !
दंभ भरो ना हे पाखंडी !!
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(सभी फोटो गूगल /नेट/याहू से साभार )
शुक्ल भ्रमर ५
१०.२० मध्याह्न जल पी बी
२०.०८.२०११
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
2 comments:
ओज पूर्ण और सार्थक सन्देश देती अच्छी रचनाएँ
चक्की में जो पिसे लोग हैं
अब चक्की पर चढ़ बैठे !
लिए हथौड़ा छेनी संग में
कितनी मूर्ति ---गढ़ बैठे !!
शानदार रचना...
सादर बधाईयाँ
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