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Friday, 19 August 2011

निज मन तू पहचाने बन्दे पूत आत्मा तेरी

निज मन तू पहचाने बन्दे

पूत आत्मा तेरी

निश्छल गंगा से बहने दे

कभी न होए मैली !!

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सोना चांदी लाद -लाद तन

मन पर बोझ बढ़ाये

ममता प्यार सत्य अनुशासन

नियम -नीति भूला जाए !!

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बही दिखावा गठरी सारी

अहम बड़प्पन सारे

छीन झपट घर महल सजाना

व्यर्थ -काम ना आते !!

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दान मान मर्यादा -धीरज

संयम दया प्रेम रख -सारे

भूखे को रोटी दे देना

अंधियारे में दीप जला दे

ख़ुशी किसी चेहरे दे देना

मीठे बोल -घोल रस देना !!

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सत्कर्मों या दुष्कर्मों का

फल है निश्चित-लेना

गाँठ बाँध मन सोच रे भाई

क्या बबूल से -आम है लेना !!

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अंत में नंगे कर नहलाएं

गहने -कपडे -सभी उतारें

गठरी-गुण-धर्मों की बांधें

लूट कोई ना पाए !!

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यही चले है संग तुम्हारे

धर्मराज "स्वागत" आते

यही आत्मा आलोकित हो

"अमर" -धरा को स्वर्ग करे !!

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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५

२३.०७.२०११ ७.५१ पूर्वाह्न

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