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Wednesday 28 December 2022

अच्छा लगता सब कुछ जैसे मां की लोरी


अच्छा लगता सब कुछ- जैसे माँ की लोरी
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गिरि की खोह से निकला सूरज
स्वर्ण रश्मियाँ ज्यों सोना बरसाईं
हुआ उजाला चमक उठा सब
चिड़ियाँ चहकीं अंगड़ाई ले जागा नीरज
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खिले फूल बहुरंगी प्यारे
खिले-खिले हर चेहरे न्यारे
रंग बिरंगी तितली मन को चली उड़ाए
पंख लगा मन भर 'कुबेर' सा फूल रहा रे !
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बहुत सुहानी मन-हर वायु जैसे अमृत
नदी पहाड़ से उड़ -उड़ आती
जान फूंक देती प्राणी या कोई चराचर
हिंडोले में सावन जैसे गजब झुलाती !
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आओ घूमें उठ के सुबह सवेरे नित ही
भरें ऊर्जा ओज योग आसन में रम जाएँ
भौतिक से कुछ सूक्ष्म जगत परमात्म ओर भी-
मन लाएं ! सुंदर सुविचार कर्म क्षेत्र ले जुट जाएँ
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घर आँगन परिवार हमारे सखा -सहेली
कितने प्यारे मन को सारे लगे दुलारे
अच्छा लगता सब कुछ जैसे माँ की लोरी
संयम साहस संस्कार ले जीत जहां रे !
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आओ अपना लें सब अच्छा दुर्गुण छोड़ें
सच ईमान को अंग बना लें रहें ख़ुशी
दिव्यानंद समाये मन में हाथ मिला लें
सब को गले लगा रे प्यारे , ना धन-निर्धन दीन दुखी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
उत्तरप्रदेश, भारत

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Friday 9 December 2022

कली और फूल





गदरायी हूं बंद कली हूं
मादक गंध बढ़ी ही जाती
आज बंद हूं मै परदे में
बड़ी सुरक्षित घुटन भी कुछ है
कैद कैद जैसे फंदे में
जकड़ी हूं स्वच्छंद नही हूं
आतुर हूं देखूं कुछ दुनिया
आकुल व्याकुल कैसी दुनिया?
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आज खिली हूं प्रकृति सुहानी
नेह भरी हूं नैनन पानी
सूरज चंदा तारे प्यारे पंछी उड़ते
अदभुत दुनिया अजब नजारे
मलयानिल की पवन छू रही
सिहरन गात है न्यारी प्यारी
खुशकिस्मत हूं खुशी हैं लोग
नैना भंवरे मुझे निहारें
आकुल व्याकुल क्या होगा कल?
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फूल बन गई कोमल कोमल
पंखुड़ियां रंगीन छुएं दिल
भंवरे अब मंडराते सारे
जन्नत परी जान भी वारें
कांटे भी सिहरन सिसकन भी
हवा विरोधी जब जब चलती
सुख या दुख कुछ समझ न पाऊं
मनहर मन खुश्बू भर जाऊं
आकुल व्याकुल खिली ही जाऊं।
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कभी शीश पर जटा कभी मैं
दूल्हा दुल्हन खूब सजाऊं
गुल गुलाब केतकी मनोहर
कामिनी चंपा मधु मालती
रात की रानी रजनी गंधा
नीम चमेली डोलन चम्पा
अगणित नाम से मैं इतराऊं
स्नेह मिले फूलूं इतराऊं
आकुल व्याकुल अनहोनी डर!
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कभी तोड़ते लेते खुश्बू
मसल कुचल देते हैं फेंक
रंग बिरंगा सारा सपना
काया मिलती मिट्टी धूल
सबरस यौवन मधु मकरंद
झूठी दुनिया कड़वा सच
पंच तत्व में मिलती काया
सच है ये ही जीवन मूल
उगा पेड़ फिर खिली कली
मुस्काते फिर झूम चली।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 
भारत
4.50 _5.14 मध्याह्न



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः