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Saturday 18 May 2013

सुगन्धित बयार

है प्रेम क्या उसका अर्थ क्या
वह हृदय की है अभिव्यक्ति
या शब्दों का बुना जाल
या मन में उठा एक भूचाल |
होती आवश्यक संवेदना
आदर्श विचार और भावुकता
किसी से प्रेम के लिए
कैसे भूलें त्याग और करुना
है यह अधूरा जिन के बिना |
कुछ पाना कुछ दे देना
फिर उसी में खोए रहना
क्या यह प्यार नहीं
लगता है यह भी अपूर्ण सा
कब आए किस रूप में आए
है कठिन जान पाना |
जिसने इसे मन में सजाया
इसी में आक्रान्त डूबा
मन में छुपा यही भाव
नयनों से परिलक्षित हुआ |
रिश्तों की गहराई में
दाम्पत्य की गर्माहट में
यदि सात्विक भाव न हो
 तब सात फेरे सात वचन
साथ जीने मरने की कसम
लगने लगते सतही
या मात्र सामाजिक बंधन |
जिसके हो गए उसी में खो गए
रंग में उसी के रंगते गए
क्या यह प्यार नहीं ?
यह है बहुआयामी
और अनंत  सीमा जिसकी
यह तो है सुगन्धित बयार सा
जिसे बांधना सरल नहीं |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Sunday 12 May 2013

कामवाली बाई



शादी के मौसम में
व्यस्त सभी बाई रहतीं
सहन उन्हें करना पड़ता
बिना उनके रहना पड़ता
उफ यह नखरा बाई का
आये दिन होते नागों का
चाहे जब धर बैठ जातीं
नित नए बहाने बनातीं
यदि वेतन की हो कटौती
टाटा कर चली जातीं
 लगता है जैसे हम गरजू हैं
उनके आश्रय में पल रहे हैं
पर कुछ कर नहीं पाते
मन मसोस कर रह जाते |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Thursday 9 May 2013

मान पाने का हक़ तो सब का बनाता है


मान पाने का हक तो सबका बनता है

तुम मेरी हो तुम्हारा अधिकार है मुझ पर  
लेकिन अपनों को कैसे भूल जाऊँ 
जिनकी ममता है मुझ पर ,
उन सब से कैसे दूर जाऊँ ,
मैं उनका प्यार भुला न सकूँगा ,
अपनों से दूर रह न सकूँगा ,
क्यों तुम समझ नहीं पातीं ,
क्या माँ की याद नहीं आती 
जब भी उनसे मिलना चाहूँ ,
कोई बात ऐसी कह देती हो ,
दूरी मन में पैदा करती हो ,
यह तुम्हारी कैसी फितरत है ,
नफरत से भरी रहती हो ,
वो तुम्हारी सास हुई तो क्या ,
वह मेरी भी तो माँ हैं ,
तुमको प्यार जितना अपनों से ,
मेरा भी तो हक है उतना ,
में कैसे भूल जाऊँ माँ को ,
जिसने मुझ को जन्म दिया ,
उँगली पकड़ी, चलना सिखाया ,
पढ़ाया लिखाया, लायक बनाया ,
सात फेरों में तुम से बाँधा ,
तुम्हारा आदर सत्कार किया ,
मान पाने का तो हक उनका बनता है ,
फिर तुमको यह सब क्यूँ खलता है ,
छोटी सी प्यारी सी मुनिया ,
मेरी बहुत दुलारी बहना ,
उसने ऐसा क्या कर डाला ,
तुमने उसको सम्मान न दिया ,
दो बोल प्यार के बोल न सकीं ,
उससे भी नाता जोड़ न सकीं ,
मैं उससे मिल नहीं पाया ,
मैंने क्या खोया तुम समझ न सकीं
केवल अशांति का स्त्रोत बनी
अब तुम्हारी न चलने दूँगा ,
जो सही मुझको लगता है ,
वैसा ही अब मैं करूँगा ,
जिन सबसे दूर किया तुमने ,
उन सब से प्यार बाँटना होगा ,
हिलमिल साथ रहना होगा ,
सभी का अधिकार है मुझ पर ,
केवल तुम्हारा ही अधिकार न होगा ,
तभी कहीं घर घर होगा ,
मेरा सर्वस्व तुम्हारा होगा |
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः