“घाव ” बना नासूर -भ्रमर -हिंदी पोएम .
छोटी सी एक ,
सुई चुभी थी ,
आज बना वो “घाव ”,
कुछ दिन “घाव ” –
को यूं ही छोड़ा ,
उससे रहता –दूर ,
इस दुनिया की ,
कीचर मिटटी ,
जहर -विषैले ,
लगते -लगते ,
खून टपकता ,
“घाव ’’ हुआ नासूर .
अब चाहूँ मै ,
साफ़ करूँ नित ,
डॉक्टर –वैद्य
दिखाऊँ - या –
जाऊं मै -गंगाजल –
ला खूब इसे नहलावुं ,
सडा गला ये ,
“घाव ” तुम्हारा ,
तेरा साथ न देगा ,
लोग कहें -डॉक्टर –
संग बोलें –काट -
फेंक दो –इसको .
तुमको और अगर -
है जीना …
बाकी ‘अंग ’ बचाना ,
जल्दी से तुम निर्णय
ले लो -बाद नहीं -
पछताना .
कैसे अपना ,
‘अंग ’ काट दूं ,
मेरा कितना प्यारा ,
बोझिल मन -न -
निर्णय करता –
कोर्ट कचेहरी –
से भी डरता -
बिना आज्ञा - या
सलाह बिन ,
‘अनुचित ’ –
काम -न -करना -
सीखा -फिर भी
कितना “जीना मुश्किल ”
देख रहा –अब सीखा .
सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमार .
11.30 पूर्वाह्न जल (पब )17.10.2011