AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Tuesday 25 September 2012

बेटी

बेटी अजन्मी सोच रही 
क्यूँ  उदास माँ दिखती है 
जब  भी कुछ जानना चाहूँ 
यूँ  ही टाल देती है|
रह ना पाई कुलबुलाई 
समय देख प्रश्न  दागा 
क्या  तुम मुझे नहीं चाहतीं 
मेरे  आने में है दोष क्या 
क्यूँ  खुश दिखाई नहीं देतीं ?
 माँ  धीमे से मुस्कुराई 
पर  उदासी न छिपा पाई 
बेटी  तू यह नहीं जानती 
सब  की चाहत है बेटा 
जब  तेरा आगमन होगा 
सब  से मोर्चा   लेना होगा 
यही  बात चिंतित करती 
मन  में उदासी भरती |
जल्दी  से ये दिन बीते 
खिली  रुपहली धूप 
आज  मेरे आँगन में 
गूंजी  तेरी किलकारी 
इस  सूने उपवन में
मिली  खुशी अनूप 
तुझे  पा लेने में |
देखा  सोच बदलता मैनें 
अपने  ही घर में |
कितना  सुखमय है जीवन 
आज  में जान पाई 
रिश्तों  की गहराई 
यहीं  नजर आई |
तेरी  नन्हीं बाहों की उष्मा
और प्यार भरी सुन्दर अँखियाँ 
स्वर्ग कहीं से ले  आईं 
मेरे  मुरझाए जीवन में |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Sunday 23 September 2012

कल चला था पुनः राह मै उसी दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए …




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32598-beautiful-bride-akshara.jpg
( फोटो साभार गूगल / नेट से लिया गया )









कल चला था पुनः राह मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए ...
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रौशनी छन के आई गगन से कहीं
दिल के अंधियारे दीपक जला के गयी
राह टेढ़ी चढ़ाई  मै चढ़ता गया
दो दिलों की सी धड़कन मै सुनता रहा
कोई सपनों में रंगों को भरता रहा
रागिनी-मोहिनी-यामिनी-श्यामली
मेंहदी गोरी कलाई पे रचता रहा
छम -छमा-छम सुने पायलों की खनक
माथ बिंदिया के नग में था उलझा हुआ
इंद्र-धनुषी छटा में लिपट तू कहीं
उन सितारों की महफ़िल सजाती रही
लटपटाता रहा आह भरता   रहा
फिर भी बढ़ता रहा रंग भरता रहा
तूने लव बनाये थे कुछ तरु वहीं
चीड-देवदार खामोश हारे सभी
तेरी जिद आगे हारे न लौटा सके
ना तुझे-ना वो खुशियाँ- न रंगीनियाँ
पलकों के शामियाने बस सजे रह गए
ना वो 'दूल्हा' सजा , ना वो 'दुल्हन' सजी
मंच अरमा , मचल के कतल हो गए
वर्फ से लदे गिरि  पर्वत वहीं थे कफ़न से
दिखे ! चांदी की घाटियाँ  कब्र सी बन गयीं
सुरमई सारे पल वे सुहाने सफ़र
सारे रहते हुए -बिन तुम्हारे सखी !
सारे धूमिल हुए -धूल में मिल गए
सिसकियाँ मुंह से निकली तो तरु झुक गए
फूल कुछ कुछ झरे 'हार' से बन गए
कौंधी बिजली तू आयी -समा नैन में
प्रेम -पाती ह्रदय में जो रख तू गयी
मै पढता रहा मै सम्हलता रहा डग भरता रहा
अश्रु छलके तेरी प्रीती में जो सनम
मै पीता रहा पी के जीता रहा
झील सी तेरी अंखियों में तरता रहा
तेरी यादों का पतवार ले हे प्रिये
तेरे नजदीक पल-पल मै आता रहा
दीप पल-पल जला-ये बुझाता रहा
आँधियों से लड़ा - मै जलाता रहा !
कल चला था पुनः राह मै उसी
दिल में यादों का तूफाँ समेटे हुए ...
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
४.४५-५.४० मध्याह्न
१९.५.१२ कुल्लू यच पी



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Saturday 8 September 2012

यदि ऐसा होता


यदि ऐसा होता

उपालंभ तुम देते रहे
हर बार उन्हें वह सहती रही
जब दुःख हद से पार हुआ
उसका जीना दुश्वार हुआ
कुछ अधिक सहा और सह न सकी
उसका मन बहुत अशांत हुआ
पानी जब सिर से गुजर गया
उसने सब पीछे छोड़ दिया
निराशा मन में घर करने लगी
जीने का मोह भंग हुआ
अपनी खुशियाँ अपने सुख दुःख
मुट्ठी में बंद किये सब कुछ
अरमानों की बलिवेदी पर
खुद की बली चढ़ा बैठी
जीते जी खुद को मिटा बैठी
दो शब्द प्यार के बोले होते
दिल के रहस्य खोले होते
जीवन में इतनी कटुता ना होती
वह हद को पार नहीं करती
सदा तुम्हारी ही रहती |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Sunday 2 September 2012

अनुभूति

तुम्हारे मेरे बीच कुछ तो ऐसा है
जो हम एक डोर से बँधे हैं
क्या है वह कभी सोचा है ?
अहसास स्नेह का ममता का
या अटूट विश्वास
जिससे हम बँधे हैं |
साँसों की गिनती यदि करना चाहें
जीवन हर पल क्षय होता है
पर फिर भी अटूट विश्वास
लाता करीब हम दोनों को
हर पल यह भाव उभरता है
अहसास स्नेह का पलता है
पर बढ़ता स्नेह
अटूट विश्वास पर ही तो पलता है |
कभी सफलता हाथ आई
कभी निराशा रंग लाई
जीवन के उतार चढ़ावों को
हर रोज सहन किया हमने
इस पर भी यह अहसास उभरता है
जीवन जीने का अंदाज यही होता है |
तुम्हारे मेरे बीच कोई तो ऐसा है
जो हमें बहुत गहराई से
अपने में सहेजता है
और इस बंधन को
कुछ अधिक प्रगाढ़ बनाता है |
कई राज खुले अनजाने में
मन चाही बातों तक आने में
फिर भी न कोई अपघात हुआ
और अधिक अपनेपन का
अहसास पास खींच लाया |
बीते दिन पीछे छूट गए
नये आयाम चुने हमने
अलग विचार भिन्न आदतें
व रहने का अंदाज जुदा
फिर भी हम एक डोर से बँधे हैं
सफल जीवन की इक मिसाल बने हैं
और अधिक विश्वास से भरे हैं
यदि होता आकलन जीवन का
हम परवान चढ़े हैं
तुम में कुछ तो ऐसा है
जो हम एक डोर से बँधे है |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः