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Monday 30 April 2012
Saturday 28 April 2012
"ईश्वर " ( 1)
MAA SAB MANGAL KAREN
Thursday 26 April 2012
हैप्पी बर्थ डे टू “सत्यम “
हैप्पी बर्थ डे टू “सत्यम “
MAA SAB MANGAL KAREN
Tuesday 24 April 2012
चार रुपइया और बढ़ा दो
कर्ज में डूबे कुछ किसान हैं
दर्द देख के -सभी – यहाँ चिल्लाते
सौ अठहत्तर अरब का सोना
कैसे फिर हम खाते ??
अठाइस है बहुत बड़ा
चार रुपइया और बढ़ा दो
३२-३३ – संसद देखो भिड़ा पड़ा
कहीं झोपडी खुला आसमां
सौ-सौ मंजिल कहीं दिखी
कहीं खोद जड़ – कन्द हैं खाते
कहीं खोद भरते हैं सोना
नोटों की गड्डी “वो” सोया
किसी के पाँव बिवाई – छाले
उड़-उड़ कोई मेवे खा ले
( सभी फोटो साभार गूगल/ नेट से लिया गया )
भाई -भाई लड़ मरते
सौ – सौ बीघे धर्म – आश्रम
बाबा-ठग बन जोत रहे
कितने अश्त्र -शस्त्र हैं भरते
जुटा खजाना गाड़ रहे
भोली – भाली प्यारी जनता
गुरु-ईश में ठग क्यों ना पहचाने ??
कुछ अपने स्वारथ की खातिर
सब को वहीं फंसा दें
निर्मल-कोई- नहीं है बाबा !
अंतर मन की-सुन लो-पूजो
खून पसीने श्रम से उपजा
खुद भी भाई खा लो जी लो !!
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर’ ५
८-८.२० पूर्वाह्न
कुल यच पी
२५.०४.२०१२
MAA SAB MANGAL KAREN
Sunday 22 April 2012
बचा लो धरती, मेरे राम-
बचा लो धरती, मेरे राम-
कैसे तुझे भुलाऊँ
चाँद भी खिसक गया
MAA SAB MANGAL KAREN
Saturday 14 April 2012
नफरत
कई परतों में दबी आग
अनजाने में चिनगारी बनी
जाने कब शोले भड़के
सब जला कर राख कर गए |
फिर छोटी छोटी बातें
बदल गयी अफवाहों में
जैसे ही विस्तार पाया
वैमनस्य ने सिर उठाया |
दूरियां बढ़ने लगीं
भडकी नफ़रत की ज्वाला
यहाँ वहां इसी अलगाव का
विकृत रूप नज़र आया |
दी थी जिसने हवा
थी ताकत धन की वहाँ
वह पहले भी अप्रभावित था
बाद में बचा रहा |
गाज गिरी आम आदमी पर
वह अपने को न बचा सका
उस आग में झुलस गया
भव सागर ही छोड़ चला |
आशा
Friday 13 April 2012
छोटी -छोटी बातें
छोटी -छोटी बातें
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छोटी छोटी बातों पर
अनायास ही अनचाहे
मन मुटाव हो जाता है
दुराव हो जाता है
दूरी बढ़ जाती है
हम तिलमिला जाते हैं
मौन हो जाते हैं
अहम भाग जाता है
मन का यक्ष प्रश्न बार बार
झकझोरता है
कुरेदता है
हम बड़े हैं फले-फूले हैं
हम देते हैं पालते हैं
पोसते हैं
न जाने क्यों फिर लोग
हमे ही झुकाते हैं -नोचते हैं
वैमनस्य --मारते हैं पत्थर
कैसा संसार ??
और वो बिन बौर-आये
बिना फले -फूले
ना जाने कैसे -सब से
पाता दया है
रहमो करम पे
जिए चला जाता है
पाता दुलार !!
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माँ ने मन जांचा -आँका
पढ़ा मेरे चेहरे को -भांपा
नम आँखों से -सावन की बदली ने
आंचल से ढाका
फली हुयी डाली ही
सब ताकते हैं
उस पर ही प्यारे -सब
नजर -गडाते हैं
लटकते हैं -झुकाते हैं
पत्थर भी मारते हैं
अनचाहे -व्याकुल हो
तोड़ भी डालते हैं
रोते हैं -कोसते हैं
बहुत पछताते हैं
नहीं कोई वैमनस्य
ना कोई राग है
अन्तः में छुपा प्यारे
ढेर सारा
उसके प्रति प्यार हैं
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मन मेरा जाग गया
अहम कहीं भाग गया
टूटा-खड़ा हुआ मै
फिर से बौर-आया
हरा भरा फूल-फूल
सब को ललचाया
फिर वही नोंच खोंच
पत्थर की मार !
हंस- हंस -मुस्काता हूँ
पाता दुलार !
वासन्ती झोंको से
पिटता-पिटाता मै
झूले में झूल-झूल
बड़ा दुलराता हूँ
हंसता ही जाता हूँ
करता दुलार !!
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शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू यच पी