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Wednesday 27 June 2012

इक बच्चे से ही निकल, जाती अपनी फूंक-

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

एक बच्चे की चाहत पारिवारिक रिश्ते को अंसतुलित करती है

 
(1)
खर्चा पूरा पड़े क्या, जब बच्चा अतिरिक्त |
व्यर्थ व्यस्तता भी बढे, पुन: रक्त से सिक्त |

पुन: रक्त से सिक्त, रिक्त  बटुवा हो जाता |
बिना पार्लर हाट, विलासी मन घबराता |

माँ का बदला रूप, पार्टी होटल चर्चा | 
लैप-टॉप सेल कार, निकल न पावे खर्चा ||  


(2)
इक बच्चे से ही निकल, जाती अपनी फूंक ।
दो बच्चों का पालना, बड़ी भयंकर चूक ।

 बड़ी भयंकर चूक, अवज्ञा मात-पिता की ।
बात कहूँ दो टूक, तैयारी करें चिता की ।

हाथ हमेशा तंग, गुप्त कुछ अपने खर्चे ।
कर न रविकर व्यंग, पाल ले इक इक बच्चे ।। 

(3) 
होटलबाजी करूँ नित, शाम रहूँ मदहोश ।
कार्यालय में दिन सकल, शेष बचे न होश ।


शेष बचे न होश , कैरियर कौन सँवारे ।
रविकर किसका दोष, समय के दोनों मारे ।


जीते हम चुपचाप, पराई दखलंदाजी ।
बंद करें अब आप, करें अब होटल बाजी ।।


(4)
एकांतवास का युग अहम्, कलयुग इसका नाम ।
दो बच्चों का है वहम, बनते श्रेष्ठ तमाम ।

बनते श्रेष्ठ तमाम, तीन भाई हैं मेरे ।
आते हैं क्या काम, अलग सब लेकर डेरे ।

मात-पिता असहाय, उदाहरण बहुत पास का ।
बड़ी विरोधी राय, मजा एकांतवास का ।।

Wednesday 20 June 2012

बरसात

बरसात


हरी भरी वादी में
लगी ज़ोर की आग
मन में सोचा
जाने होगा क्या हाल ।
फिर ज़ोर से चली हवा
हुआ आसमान स्याह
उमड़ घुमड़ बादल बरसा
सरसा सब संसार |
बरस-बरस जब बादल हुआ उदास
मैंने जब देखा तब पाया
पानी जम कर
बर्फ बन गया |  
ओला बन कर
झर-झर टपका
पृथ्वी की गोद भरी उसने
ममता से मन
पिघल-पिघल कर
पानी पानी पुनः हो गया |
काले भूरे रंग सुनहरे
कितने रंग सजाये नभ ने ।
उगते सूरज की किरणें
बुनने लगीं सुनहरे सपने
सारा अम्बर
पुनः हुआ सुनहरा
जीवन को जीवन्त कर गया !
                            आशा                          

Tuesday 19 June 2012

सोन परी हिय मोद भरे !


चित्र से काव्य प्रतियोगिता अंक -१५ (OBO)
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बिटिया रानी खिली कली सी
सागर चीरे- परी सी आई
बांह पसारे स्वागत करती
जन मन जीते प्यार सिखाई !
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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ
धरती अम्बर प्रकृति कहे
गोद उठा लो भेद भाव खो
सोन परी हिय मोद भरे !
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हहर-हहर मन ज्वार सरीखा
चन्दा को अपनाने दौड़ा
कहीं न मुड़ जाए  'पूनम' सा
नैन हिया भर सीपी -मोती पाने दौड़ा !
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बिना कल्पना ,बिन प्रतिभा के
लक्ष्मी कहाँ ? रूठ ना जाए
आओ प्यारे फूल बिछा दें
चरण 'देवि' के नेह लुटाएं !
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ये अद्भुत मुस्कान- धरा की
दर्द व्यथा कल से हर लेगी
सोन चिरइया -नदी दूध की
कल्प-वृक्ष बन वांछित फल  देगी !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '
कुल्लू यच पी १९.६.२०१२



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Monday 11 June 2012

मेरा दिल तब-तब रोता है

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः


अपनी इस रचना में मैंने अपने आस पास के जीवन से उद्धृत दो विभिन्न प्रकार के दृश्यों को चित्रित करने का प्रयास किया है ! ये दृश्य हम प्रतिदिन देखते हैं और शायद इतना अधिक देखते हैं कि इनके प्रति हमारी संवेदनाएं बिलकुल मर चुकी हैं ! लेकिन आज भी जब इतने विपरीत विभावों को दर्शाती ऐसी तस्वीरें मेरे सामने आती हैं मेरा मन दुःख से भर जाता है ! समाज में व्याप्त इस असमानता और विसंगति को मिटाने के लिये क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? क्या करें कि सारे बच्चे एक सा खुशहाल बचपन जी सकें खुशियों से भरपूर, सुख सुविधा से संपन्न ! जहाँ उनके लिये एक सी अच्छी शिक्षा हो, सद्विचार हों, अच्छे संस्कार हों, स्वस्थ वातावरण हो और सबके लिये उन्नति के सामान अवसर हों ! क्या ऐसे समाज की परिकल्पना अपराध है ? क्या ऐसे समाज की स्थापना के लिये हम कुछ नहीं कर सकते ? क्या ऐसे सपनों को साकार करने के लिये किसीके पास कोई संकल्पना, सुझाव या सहयोग का दिशा निर्देश नहीं ? क्या आपका हृदय ऐसे दृश्य देख कर विचलित नहीं होता ? इस रचना में 'उनका' शब्द सुख सुविधा संपन्न अमीर वर्ग के लिये प्रयुक्त किया गया है !


मेरा दिल तब-तब रोता है


एक छोटा बच्चा अपने सर पर
भारी बोझा ढोता है,
और उनके बच्चों के हाथों में
बॉटल बस्ता होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !


एक भूखे बच्चे का नन्हा सा
हाथ भीख को बढ़ता है,
और उनके बच्चों के हाथों में
बर्गर बिस्किट होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !


एक बेघर बच्चा सर्दी में
घुटनों में सर दे सोता है
और उनके बच्चों के कमरे में
ए सी , हीटर होता है ,
मेरा दिल तब-तब रोता है !


एक छोटा बच्चा गुण्डों की
साजिश का मोहरा होता है
और उनका बच्चा अपने घर
महफूज़ मज़े से होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !


एक नन्हा बच्चा बिलख-बिलख
माँ के आँचल को रोता है
और उनका बच्चा हुलस हुमक
माँ की गोदी में सोता है
मेरा दिल तब-तब रोता है !


जब छोटे बच्चे के हाथों में
कूड़ा कचरा होता है
और उनके बच्चे के हाथों में
खेल खिलौना होता है !
मेरा दिल तब-तब रोता है !


बच्चों की किस्मत का अंतर
जब पल-पल बढ़ता जाता है ,
और सबकी आँखें बंद
जुबाँ पर ताला लटका होता है
मेरा दिल तब-तब रोता है !


साधना वैद

Tuesday 5 June 2012

एक छोटी सी गली


जीवन के कई रंग देखे 
इस छोटी सी गली में 
भिन्न-भिन्न लोग देखे
इस सँकरी सी गली में |
प्रातःकाल भ्रमण करते 
बुजुर्ग दिखाई देते हैं
जाना पहचाना हो 
या हो अनजाना
हरिओम सभी से कहते हैं !
जैसे ही धूप चढ़ती है
सभी व्यस्त हो जाते हैं
कोई होता तैयार
ऑफिस जाने के लिये
तो कोई बैठा पेपर पढ़ता
हाथ में गर्म चाय का प्याला ले
बच्चों की दुनिया है निराली
करते शाला जाने की तैयारी
आधे अधूरे मन से
किसी का जूता नहीं मिलता
तो किसी का बस्ता खो जाता
फिर भी नियत समय पर
ऑटो वाला आ जाता
इतना शोरशराबा होता
तब कोई काम ना हो पाता
फिर भी जीने के अंदाज का
अपना ही नजारा होता |
भरी दोपहर में काम समाप्त कर
जुड़ती पंचायत महिलाओं की
करती रहतीं सभी वकालत
अपने अपने अनुभवों की !
है विशिष्ट बात यहाँ की 
हर धर्म के लोग यहाँ रहते हैं 
इस छोटी सी तंग गली में 
सभी धर्म पलते हैं \
अनेकता में एकता क़ी 
अद्भुत मिसाल दिखते हैं |
सारे त्यौहार यहाँ मनते हैं \
मीठा मुँह सभी करते हैं 
अगर कोई समस्या आये 
सभी सहायता करते हैं |
हिलमिल कर रहते हैं सभी 
छोटा भारत दिखते हैं 
यथोचित सम्मान सभी का 
सभी लोग करते हैं
है तो यह छोटी सी गली 
पर राखी, ईद, दिवाली, होली 
सभी यहाँ मनते हैं |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः