खिली कली बीता बचपन
जाने कब अनजाने में
दी दस्तक दरवाज़े पर
यौवन की प्रथम सीढ़ी पर
जैसे ही कदम पड़े उसके
आँखों ने छलकाया यौवन
हर एक अदा में सम्मोहन
वह दिल में जगह बना बैठी
सजनी सपने में आ बैठी |
धीरे-धीरे कब प्यार हुआ
साथ जीने मरने का
जाने कब इकरार हुआ
छिप-छिप कर आना उसका
मन के सारे भेद बताना
जैसे ही कदम पड़े उसके
आँखों ने छलकाया यौवन
हर एक अदा में सम्मोहन
वह दिल में जगह बना बैठी
सजनी सपने में आ बैठी |
धीरे-धीरे कब प्यार हुआ
साथ जीने मरने का
जाने कब इकरार हुआ
छिप-छिप कर आना उसका
मन के सारे भेद बताना
फिर जी भर कर हँसना
निश्छल मन चंचल चितवन
आनन पर लहराती काकुल
मन में कर देती हलचल |
जब विवाह तक आना चाहा
जाति प्रथा का पड़ा तमाचा
ध्वस्त हुए सारे सपने
कोई भी नहीं हुए अपने |
माँ बाबा ने उसे बुला कर
मुझसे दूर उसे ले जा कर
जाति बंधु से ब्याह रचाया
मुझसे नाता तुड़वाया
आनन पर लहराती काकुल
मन में कर देती हलचल |
जब विवाह तक आना चाहा
जाति प्रथा का पड़ा तमाचा
ध्वस्त हुए सारे सपने
कोई भी नहीं हुए अपने |
माँ बाबा ने उसे बुला कर
मुझसे दूर उसे ले जा कर
जाति बंधु से ब्याह रचाया
मुझसे नाता तुड़वाया
ऐसी क्या कमियाँ थीं मुझमें
मै समझ नहीं पाया |
जाति में मन चाहा वर
भाग्यशाली ही पाता है
अक्सर यह लाभ
कुपात्र ही ले जाता है
वह थोड़ा बहुत कमाता था
बहुत व्यस्त है दर्शाता था
ऐसा भी कोई गुणी नहीं था
जिस कारण अकड़ा जाता था
सारी हदें पार करता था
बेबसी पर खुश होता था |
पहले तो वह झुकती जाती थी
हर बार पिता की इज्जत का
ख्याल मन में लाती थी
फिर घुट-घुट कर
जाति में मन चाहा वर
भाग्यशाली ही पाता है
अक्सर यह लाभ
कुपात्र ही ले जाता है
वह थोड़ा बहुत कमाता था
बहुत व्यस्त है दर्शाता था
ऐसा भी कोई गुणी नहीं था
जिस कारण अकड़ा जाता था
सारी हदें पार करता था
बेबसी पर खुश होता था |
पहले तो वह झुकती जाती थी
हर बार पिता की इज्जत का
ख्याल मन में लाती थी
फिर घुट-घुट कर
जीना सीख लिया
समाज से डरना सीख लिया |
मैं भी दस-दस आँसू रोया
फिर दुनियादारी में खोया
एक लम्बा अरसा बीत गया
यादों को मन में दफना कर
उन पर पर्दा डाल दिया
अब जीवन चलता पटरी पर
कहीं नहीं भटकता पल भर |
तेज हवा की आँधी सी वह
मेरे सामने खड़ी हुई थी
बहुत उदास आँखों में आँसू
खंडित प्रतिमा सी लग रही थी
उसके आँसू देख न पाया
जज्बातों को बस में करके
उसका हाल पूछना चाहा
पहले कुछ न बोल पाई
फिर धीरे से प्रतिक्रिया आई
ऐसा कैसा जाति का बंधन
जो बेमेल विवाह का कारक बन
जीने की ललक मिटा देता
कितनों का जीवन हर लेता |
जब उसकी व्यथा कथा को जाना
मनोदशा को पहचाना
नफरत से मन भर आया
विद्रोही मन उग्र हुआ
जाति प्रथा को जी भर कोसा |
आशा
समाज से डरना सीख लिया |
मैं भी दस-दस आँसू रोया
फिर दुनियादारी में खोया
एक लम्बा अरसा बीत गया
यादों को मन में दफना कर
उन पर पर्दा डाल दिया
अब जीवन चलता पटरी पर
कहीं नहीं भटकता पल भर |
तेज हवा की आँधी सी वह
मेरे सामने खड़ी हुई थी
बहुत उदास आँखों में आँसू
खंडित प्रतिमा सी लग रही थी
उसके आँसू देख न पाया
जज्बातों को बस में करके
उसका हाल पूछना चाहा
पहले कुछ न बोल पाई
फिर धीरे से प्रतिक्रिया आई
ऐसा कैसा जाति का बंधन
जो बेमेल विवाह का कारक बन
जीने की ललक मिटा देता
कितनों का जीवन हर लेता |
जब उसकी व्यथा कथा को जाना
मनोदशा को पहचाना
नफरत से मन भर आया
विद्रोही मन उग्र हुआ
जाति प्रथा को जी भर कोसा |
आशा