AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Wednesday 28 December 2022

अच्छा लगता सब कुछ जैसे मां की लोरी


अच्छा लगता सब कुछ- जैसे माँ की लोरी
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गिरि की खोह से निकला सूरज
स्वर्ण रश्मियाँ ज्यों सोना बरसाईं
हुआ उजाला चमक उठा सब
चिड़ियाँ चहकीं अंगड़ाई ले जागा नीरज
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खिले फूल बहुरंगी प्यारे
खिले-खिले हर चेहरे न्यारे
रंग बिरंगी तितली मन को चली उड़ाए
पंख लगा मन भर 'कुबेर' सा फूल रहा रे !
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बहुत सुहानी मन-हर वायु जैसे अमृत
नदी पहाड़ से उड़ -उड़ आती
जान फूंक देती प्राणी या कोई चराचर
हिंडोले में सावन जैसे गजब झुलाती !
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आओ घूमें उठ के सुबह सवेरे नित ही
भरें ऊर्जा ओज योग आसन में रम जाएँ
भौतिक से कुछ सूक्ष्म जगत परमात्म ओर भी-
मन लाएं ! सुंदर सुविचार कर्म क्षेत्र ले जुट जाएँ
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घर आँगन परिवार हमारे सखा -सहेली
कितने प्यारे मन को सारे लगे दुलारे
अच्छा लगता सब कुछ जैसे माँ की लोरी
संयम साहस संस्कार ले जीत जहां रे !
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आओ अपना लें सब अच्छा दुर्गुण छोड़ें
सच ईमान को अंग बना लें रहें ख़ुशी
दिव्यानंद समाये मन में हाथ मिला लें
सब को गले लगा रे प्यारे , ना धन-निर्धन दीन दुखी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
उत्तरप्रदेश, भारत

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Friday 9 December 2022

कली और फूल





गदरायी हूं बंद कली हूं
मादक गंध बढ़ी ही जाती
आज बंद हूं मै परदे में
बड़ी सुरक्षित घुटन भी कुछ है
कैद कैद जैसे फंदे में
जकड़ी हूं स्वच्छंद नही हूं
आतुर हूं देखूं कुछ दुनिया
आकुल व्याकुल कैसी दुनिया?
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आज खिली हूं प्रकृति सुहानी
नेह भरी हूं नैनन पानी
सूरज चंदा तारे प्यारे पंछी उड़ते
अदभुत दुनिया अजब नजारे
मलयानिल की पवन छू रही
सिहरन गात है न्यारी प्यारी
खुशकिस्मत हूं खुशी हैं लोग
नैना भंवरे मुझे निहारें
आकुल व्याकुल क्या होगा कल?
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फूल बन गई कोमल कोमल
पंखुड़ियां रंगीन छुएं दिल
भंवरे अब मंडराते सारे
जन्नत परी जान भी वारें
कांटे भी सिहरन सिसकन भी
हवा विरोधी जब जब चलती
सुख या दुख कुछ समझ न पाऊं
मनहर मन खुश्बू भर जाऊं
आकुल व्याकुल खिली ही जाऊं।
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कभी शीश पर जटा कभी मैं
दूल्हा दुल्हन खूब सजाऊं
गुल गुलाब केतकी मनोहर
कामिनी चंपा मधु मालती
रात की रानी रजनी गंधा
नीम चमेली डोलन चम्पा
अगणित नाम से मैं इतराऊं
स्नेह मिले फूलूं इतराऊं
आकुल व्याकुल अनहोनी डर!
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कभी तोड़ते लेते खुश्बू
मसल कुचल देते हैं फेंक
रंग बिरंगा सारा सपना
काया मिलती मिट्टी धूल
सबरस यौवन मधु मकरंद
झूठी दुनिया कड़वा सच
पंच तत्व में मिलती काया
सच है ये ही जीवन मूल
उगा पेड़ फिर खिली कली
मुस्काते फिर झूम चली।
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश 
भारत
4.50 _5.14 मध्याह्न



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Sunday 27 November 2022

मोती पाने की चाहत में


भाव बड़े गहरे निर्झर से , 
बहते रहते अंतस्तल में,
 बाल सा मेरा प्यारा मन तो,
 उड़ता फिरता नीलगगन में ।

कभी डूबता गागर सागर,
लहरें पटक किनारे देती
मोती पाने की चाहत में,
दर्द भुला फिर कूद पड़ूं ।

कुछ पाने को कुछ रचने को
बहुत थपेड़े सहने पड़ते
कभी रिक्त हाथों को लेकर
आता सब की सह लेता हूं।

मोती गहने भाव की गागर
कभी जभी मैं भर लाता हूं
बड़ी प्रशंसा प्रेम की गागर
से, अमृत भी तो पी लेता हूं

इसी ज्वार भाटा में उलझा 
चांद कभी लेता है खींच 
कभी सूर्य संग डूबूं निकलूं
अदभुत दुनिया प्रकृति अनूप।

जय जय श्री राधे।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5



सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Friday 22 April 2022

धरती मां का ये ही प्यार

BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: धरती मां का ये ही प्यार: धरती मां का ये ही प्यार ******** बिन आधार कहां हम रहते शून्य में क्या हम सदा विचरते स्थिर मन मस्तिष्क से रचते नित नूतन नव जग व्यवहार धरती मा...
धरती मां का ये ही प्यार
********



बिन आधार कहां हम रहते
शून्य में क्या हम सदा विचरते
स्थिर मन मस्तिष्क से रचते
नित नूतन नव जग व्यवहार
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***


बीज छिपाए गर्भ में रखती
लेखा जोखा समय देखकर
अंकुर पादप पेड़ फूल फल
सांसे जीवन सब कुछ देती
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
धरती खुद फंगस से जुड़कर
अपनी बुद्धि का करे प्रयोग
तरु पादप हर जीव पालती
देती विविध तरह संदेश
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
फोटो सिंथेसिस से जुड़कर
पौधे जीवित देते सांस
पर्वत झरने नदियां जंगल
पक्षी फूल सभी हैं साथ
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।

***


खनिज सम्पदा रत्न व भोजन
कर्म तुम्हारे अवनि वारे
क्षिति जल पावक गगन हवा में
पंच तत्व के सभी सहारे
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***


कभी उर्वरक कभी उर्वरा 
कूड़ा कचड़ा पाप नासती
जहर धुआं प्लास्टिक से रूष्ट हो
उलट पलट कर हमें चेताती
धरती मां का ये ही प्यार
भुला सके कैसे संसार।
***
आओ जागें चेतें जुड़कर
इस वसुन्धरा को हम पढ़ लें
इन प्यारे उपहार के बदले
धरा बचाने का हम प्रण लें
धरती मां गुरु का ये प्यार
भुला सके कैसे संसार??
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।

पृथ्वी दिवस

BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN: पृथ्वी दिवस: मित्रों पृथ्वी दिवस की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। पहली बार, पृथ्वी दिवस सन् 1970 में मनाया ...

मित्रों पृथ्वी दिवस की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं

पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। पहली बार, पृथ्वी दिवस सन् 1970 में मनाया गया था। दुनिया भर के लोग अपनी धरती की प्राकृतिक संपत्ति को बचाने के लिए बड़े उत्साह के साथ ये पृथ्वी दिवस  मनाते हैं।


इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी. अब इसे लगभग 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है. पृथ्वी दिवस का महत्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, इस दिन हमें ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविदों के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है. 
पृथ्वी दिवस जीवन सम्पदा को बचाने व पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक करता है. 
जनसंख्या वृद्धि ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ डाला है, संसाधनों के सही इस्तेमाल के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व आज और भी  बढ़ गया है।

 विश्व पृथ्वी दिवस का उदेश्य अपनी पृथ्वी के पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हम सब को प्रेरित करना है।
इस पूरे  ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एक ऐसा एकमात्र ग्रह है जहाँ आज तक जीवन संभव है। इसलिए, पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के लिए, पृथ्वी को बचाना परम आवश्यक है। 
22 अप्रैल का दिन पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है जिससे कि मानव जाति को पृथ्वी के महत्व के बारे में सब कुछ पता चल सके।
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पृथ्वी को आइए बंजर ना बनाएं,  कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक तो हर जगह ना फैलाएं।
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पृथ्वी हम सबका घर है, इसकी सुरक्षा हम सब पर है।
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आने वाली पीढ़ी है प्यारी, तो पृथ्वी को बचाना है हमारी जिम्मेदारी …
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धरती माता करे पुकार, हरा भरा कर दो संसार।
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दिल लगाने से अच्छा है कि पौधे लगाएं, वो घाव नहीं देंगे, कम से कम छांव तो देंगे।
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पानी बचाएं पेड़ लगाएं पर्यावरण संरक्षण में अपना हाथ बंटाऐं।

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश , भारत।

Monday 28 March 2022

संगिनी हूं संग चलूंगी

BHRAMAR KA JHAROKHA-DARD-E-DIL: संगिनी हूं संग चलूंगी: संगिनी हूं संग चलूंगी ------------------------ जब सींचोगे पलूं बढूंगी खुश हूंगी मै तभी खिलूंगी बांटूंगी  अधरों मुस्कान मै तेरी पहचान बनकर **...संगिनी हूं संग चलूंगी
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जब सींचोगे
पलूं बढूंगी
खुश हूंगी मै
तभी खिलूंगी
बांटूंगी
 अधरों मुस्कान
मै तेरी पहचान बनकर
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वेदनाएं भी
 हरुंगी
जीत निश्चित 
मै करूंगी
कीर्ति पताका
मै फहरूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
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अभिलाषाएं 
पूर्ण होंगी
राह कंटक
मै चलूंगी
पाप पापी
भी दलूंगी
संगिनी हूं
संग चलूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
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ज्योति देने को
जलूंगी
शान्ति हूं मैं
सुख भी दूंगी
मै जिऊंगी
औ मरूंगी
पूर्ण तुझको
मै करूंगी
सृष्टि सी 
रचती रहूंगी
सर्वदा ही
मै तेरी पहचान बनकर
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ,
भारत