
ये रचना प्रिय दिलबाग विर्क द्वारा रचित है और सधन्यवाद प्रेषित है
जिंदादिली ( कविता )
तालियों की गड़गड़ाहट
और
पेट की भूख
कर देती है मजबूर
मौत के मुंह में उतरने को
यह जानते हुए कि
यह वीरता नहीं
मूर्खता है ।
बाजीगिरी
कोई चुनता नहीं शौक से
यह मुकद्दर है
गरीब समाज का
और इस मुकद्दर को
कला बनाकर जीना
जिन्दादिली है
और यह जिन्दादिली
जरूरी है क्योंकि
जिन्दगी जीनी ही पड़ती है
चाहे रो के जियो
चाहे हँस के जियो
चाहे डर के जियो
चाहे जिन्दादिली से जियो ।
द्वारा -दिलबाग विर्क
7 comments:
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ सच में शुरुआत तो ऐसे ही हो जाती है ...लेकिन निभाते हुए जीते रहना जिन्दादिली है ही
भ्रमर ५
आभार भ्रमर जी
sahityasurbhi.blogspot.com
प्रिय दिलबाग जी अभिवादन ...आप का योगदान रहेगा इस ब्लॉग के लिए उम्मीद है ...आइये कला को यों ही प्रोत्साहित करें ..
हो सके तो इस ब्लॉग का समर्थन भी करें ..
आभार
भ्रमर ५
प्रिय बैजनाथ पाण्डेय जी अभिवादन ..और अभिनन्दन आप का .....त्वरित गति से आप ने यहाँ दर्शन दिया समर्थन किया ख़ुशी हुयी ...कुछ लिख कर उत्साह तो बढ़ाना था ...आइये कला को यों ही प्रोत्साहित करें ..
आभार
भ्रमर ५
अच्छी प्रस्तुति |
बधाई |
धन्यवाद आशा जी अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
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