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Wednesday, 27 February 2013

कसौटी


कसौटी





वह गीत गाती, गुनगुनाती, वादियों में घूमती।
बीते दिनों की याद उसको, जब सताने लग गयी।
तब तोड़ कर बंधन जगत से, प्रभु भजन में खो गयी।

जिस साधना की नव विधा के, स्वर सिखाये आपने।
वो गीत गाये गुनगुनाये, जो सुनाये आपने।।
वो थे मदिर इतने कि कानों - में, मधुरता चढ़ गयी।
है गीत की यह रीत, गाने - की विकलता, बढ़ गयी।१।

मौसम मधुर का पान करती, मस्तियों में झूमती।।
ढेरों किये तब जतन उसने, आपसे दूरी रही।
मिलना न था सो मिल न पाई, क्वचिद मज़बूरी रही।२।

तब याद जो मुखड़े रहे, वह, गुनगुनाने लग गयी।।
वह आत्म विस्मृत भटकनों में, भटकती जीने लगी।
फिर भूल कर सुध-बुध, मगन-मन, भक्ति-रस पीने लगी।३।

अनुरोध मन का मान कर, वह, कृष्ण प्यारी हो गयी।।
हर श्वास में प्रभु थे बसे, वश, लेश, तन-मन पर न था।
हर पल कसौटी तुल्य था, पर, पर्व से कमतर न था।४।
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

4 comments:

अज़ीज़ जौनपुरी said...

bahut hi sundar ,bhavpyrn prastuti,sadar

Dinesh pareek said...

बहुत खूब

ये कैसी मोहब्बत है

रविकर said...

बढ़िया प्रस्तुति ॥

Asha Lata Saxena said...

अपना अमूल्य समय दे कर रचना पढ़ने के लिए और अपनी अमूल्य टिप्पणी देने के लिए आभार |
आशा