AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com

Saturday 28 May 2011

"ये भटके लोग मिल जाते "

"ये भटके लोग मिल जाते "

ये लाल रंग ,

इन्हें उन्हें हमें ,

हम सबको प्यारा है ,

इसके कतरे छीटें बूँदें ,

अनायास जो यहाँ वहां ,

बह रहे मिटटी में मिल रहे ,

पैरों तले रौंदे जा रहे ,

शोले भड़का रहे ,

नफरत की दीवार बन ,

दिन प्रतिदिन रजनीति में ,

अणु परमाणु ढूंढ रहे ,

बारूद भर रहे ,

कपड़ा और मकान तो दूर ,

रोटी और पेट पर लात ,

ये क्या कलयुगी बात !

कब तक जोहें हम ,

कल्कि की बाट ,

आओ हम मिल जुल ,

छोड़ रीति ढुलमुल ,

संजोये सम्हालें ,

इन बहती बूंदों को ,

बनायें तस्वीरें सपनो की ,

भरें रंग - ये "लाल रंग" ,

इन्हें - उन्हें - हमें ,

हम सबको - जो प्यारा है ,

लगता है नजर लग गयी ,

किसी की हमारेस्वर्ग को ,

ये कितने प्यारे कितने काम के ,

कुदरत की अमूल्य देन ,

निकले थे जो हरियाली लाने ,

बसाने चाँद , सूरज आशियाँ ,

भटक गए

भूल गए .. कुछ रास्ता ..लक्ष्य ,

भटक रहे दिशा विहीन ,

पहाड़ो घाटियों में ,

भूखे लोग सहमे बच्चे ,

भागते फिर रहे

काश कोई तथाकथित ..

अल्लाहगाडभगवान ..

ओझा नेता ..राजनेता ,

जादूगर छड़ी घुमाता ,

ये भटके लोग मिल जाते ….

हरियाली लौट आती ,

और इस "चमन " में -

फिर सेअमन

वही फूल खिल जाते

सुरेंद्रशुक्लाभ्रमर जम्मू & कश्मीर


No comments: