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Tuesday 14 August 2012

तिरंगे की छाँव तले

जाने कितने वर्ष बीत गए
फिर भी रहता है इन्तजार
हर वर्ष पन्द्रह अगस्त के आने का
स्वतंत्रता दिवस मनाने का |
इस तिरंगे के नीचे
हर वर्ष नया प्रण लेते हैं
है मात्र यह औपचारिकता
जिसे निभाना होता है |
जैसे ही दिन बीत जाता
रात होती फिर आता दूसरा दिन
बीते कल की तरह
प्रण भी भुला दिया जाता |
अब भी हम जैसे थे
वैसे ही हैं ,वहीँ खड़े हैं
कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ
पंक में और अधिक धंसे हैं |
कभी मन मैं दुःख होता है
वह उद्विग्न भी होता है
फिर सोच कर रह जाते हैं
अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता
जीवन के प्रवाह को रोक नहीं सकता |
शायद अगले पन्द्रह अगस्त तक
कोई चमत्कार हो जाए
हम में कुछ परिवर्तन आए
अधिक नहीं पर यह तो हो
प्रण किया ही ऐसा जाए
जिसे निभाना मुश्किल ना हो |
फिर यदि इस प्रण पर अटल रहे
उसे पूरा करने में सफल रहे
तब यह दुःख तो ना होगा
जो प्रण हमने किया था
उसे निभा नहीं पाए
देश के प्रतिकुछ तो निष्ठा रख पाए
अपना प्रण पूरा कर पाए |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

2 comments:

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

आदरणीया आशा जी सुन्दर सन्देश देती रचना ...इन्तजार के सिवा हमारे हाथ बचता ही क्या है फिर भी आइये आशावान रहें शायद कुछ चमत्कार हो ही जाए ...
स्वतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाये आप को तथा सभी मित्र मण्डली को भी
भ्रमर ५

Asha Lata Saxena said...

सुरेन्द्र जी टिप्पणी हेतु धन्यवाद स्वतंत्रता दिव्वास पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
आशा