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Sunday, 19 June 2011

पुरुष “पिता” - पाले -भर नेह



जीवन रथ के दो पहिये का

बड़ा सुहाना अदभुत मेल

एक अगर जो नहीं मिला तो

बिगड़े जीवन का सब खेल !!

नारी प्यारी माँ अपनी तो


पुरुष पिता- पाले -भर नेह !!


मेहनत कर थक दिन भी आये

पहले शिशु को गले लगाये

चूमे उछले गोदी भर ले

भूख प्यास को रहे भुलाये !!

दृष्टि सदा कोमल शिशु रख वो

न्योछावर हो बलि बलि जाये

भटके खुद काँटों के पथ पर

फूल के पलना उसे झुलाये !!

कोशिश उसकी पल पल जीवन

कोई कमी नहीं रह जाये

उसके अगर अधूरे सपने

देखे खुद को शिशु में अपने

संबल -संसाधन सब ला दे

सपने अपने सच कर जाये !!

शिक्षक है वो रक्षक है वो

पालक भाग्य विधाता है वो

ईश रूप है सब ला देता

भटकी नैया तट ला देता

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नाज हमें भी पूज्य पिता पर

जिसने हमको गुणी बनाया |

अनुशासन में पाला हमको,
निज संस्कृति को हमें सिखाया||

शुद्ध आचरण सु-विचार से

निष्कलंक रहना सिखलाया !!

सत्य अहिंसा दे ईमान धन

ऊँगली थामे खड़ा किया !

रोज -रोज सींचे पौधे से

मुझको इतना बड़ा किया !!

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अभिलाषा है प्रभु बस इतनी

मुन्ना”- उनका बना रहूँ !

वरद हस्त सिर पर हो उनका

चरण में उनके पड़ा रहूँ !!

उनकी कभी अवज्ञा न हो

आज्ञाकारी बना रहूँ !!

पिता और संतान का रिश्ता

पावन प्रतिदिन हो जाए

नहीं अभागा कोई जग में

पिता से वंचित हो जाये

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पिता की महिमा जग जाहिर है

शोभे उपमा जहाँ लगा दो !

परम पिता परमेश्वर जग के

राष्ट्र पिता चाहे तुम कह लो !!

बूढ़े पीड़ित भटक रहे जो

पिता समान अगर तुम कह दो

लो आशीष दुआ तुम जी भर

जीवन अपना धन्य बना लो !!

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शुक्ल भ्रमर५

१९.६.२०११ जल पी बी

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