AAIYE PRATAPGARH KE LIYE KUCHH LIKHEN -skshukl5@gmail.com
Tuesday, 21 October 2014
Wednesday, 1 October 2014
"सूचना"
मान्यवर,
दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल
साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा
है।
जिसमें एक सत्र बाल साहित्य लिखने वाले ब्लॉगर्स का
रखा गया है।
हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग
करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
कृपया मेरे ई-मेल
roopchandrashastri@gmail.com
पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा
करें।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
|
Wednesday, 24 September 2014
Wednesday, 30 July 2014
रिश्ते का सत्य
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
जल में घुली चीनी की तरह
कभी एक रस ना हो पाए
साथ साथ न चल पाए
तब कैसे देदूं नाम कोई
ऐसे अनाम रिश्ते को |
जल में मिठास आ जाती है
चीनी के चंद कणों से
होती है हकीकत दिखावा नहीं
पर स्थिति विपरीत यहाँ
रिश्ता बहुत सुदृढ़ दीखता
पर खोखला अंदर से |
दौनों में कितना अंतर है
पर जीवन का सत्य यही है
मतलब के सारे रिश्ते हैं
छलना का रूप लिए हैं |
क्षणभर के लिए बहकाते हैं
वास्तविक नजर आते हैं
तभी विचार आता है
क्या रिश्तों का सत्य यही है |
आशा
Wednesday, 23 July 2014
दोहे
माँ की ममता पुत्र पर ,बेटी देख रिसाय |
तेरा कैसा न्याय प्रभू,कुछ भी समझ न आय ||
यहाँ वहाँ क्या देखते ,जीवन छूटा जाय |
प्रभु सुमिरन करते रहो ,अंत भला हो जाय ||
जीव न जादू की छड़ी,छूते ही कुम्हलाय |
कठिन डगर पार करके ,फल तुरतही मिल जाय ||
जल अथाह समुन्दर में .कभी कमीं ना होय |
सूरज कितना भी तपे, जलनिधि सूख न पाय ||
मानस से जो प्यार करे ,कष्ट उसे ना सताय |
नियमित पाठ करे जितना ,जनम सफल हो जाय |
आशा
तेरा कैसा न्याय प्रभू,कुछ भी समझ न आय ||
यहाँ वहाँ क्या देखते ,जीवन छूटा जाय |
प्रभु सुमिरन करते रहो ,अंत भला हो जाय ||
जीव न जादू की छड़ी,छूते ही कुम्हलाय |
कठिन डगर पार करके ,फल तुरतही मिल जाय ||
जल अथाह समुन्दर में .कभी कमीं ना होय |
सूरज कितना भी तपे, जलनिधि सूख न पाय ||
मानस से जो प्यार करे ,कष्ट उसे ना सताय |
नियमित पाठ करे जितना ,जनम सफल हो जाय |
आशा
Thursday, 26 June 2014
कायर हैं वे लोग यहाँ नारी को आँख दिखाते हैं
( photo with thanks from google/net)
प्रिय मित्रों नारियों के प्रति दिन प्रतिदिन बढ़ता अत्याचार मन को बहुत बोझिल करता है जरुरत है बहुत सख्त और सजग होने की , बच्चों में संस्कार भरना बहुत जरुरी हैं उन्हें अनुशासन से कदापि वंचित नहीं करना है बेटा हो या बेटी उन के आचार व्यवहार पर नजर रखना जरुरत से अधिक मुक्त ना छोड़ना ये सरंक्षक का दायित्व है और इससे संरक्षक अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते अगर वे प्रेम से अनाचार दुराचार की राह से उन्हें बचा सके तो फिर केवल मनोरोगी से ही खतरा रहेगा जो की अक्सर नजर आ जाते हैं अपने क्रियाकलाप से उनकी हाव भाव भंगिमाओं को ध्यान दे कर काफी कुछ बचा जा सकता है
कानून को भी अतिशीघ्र निर्णय लेना होगा फैसला जितनी जल्द समाज के सामने आ सके फास्ट ट्रैक अदालत आदि द्वारा वह अमल में लाया जाए सरकार भी ऐसी संस्था बना रही है जो की पीड़ित नारियों को प्राथमिकी दर्ज करने अपना पक्ष रखने आदि में मदद करेगी …
आइये हम सब मिल कर ऐसा कृत्य करें एक सभ्य समाज का निर्माण करते रहें ताकि मानव को मानव कहने में शर्म न आये मानवता शर्मसार न हो तो आनंद अति आये
इस निम्न रचना को और लोगों / पाठकों तक पहुँचाने हेतु पुनः मै आप सब के सम्मुख रख रहा हूँ कृपया जो पाठक इस रचना को पढ़ चुके हैं मन पर ना लें ………………..
कानून को भी अतिशीघ्र निर्णय लेना होगा फैसला जितनी जल्द समाज के सामने आ सके फास्ट ट्रैक अदालत आदि द्वारा वह अमल में लाया जाए सरकार भी ऐसी संस्था बना रही है जो की पीड़ित नारियों को प्राथमिकी दर्ज करने अपना पक्ष रखने आदि में मदद करेगी …
आइये हम सब मिल कर ऐसा कृत्य करें एक सभ्य समाज का निर्माण करते रहें ताकि मानव को मानव कहने में शर्म न आये मानवता शर्मसार न हो तो आनंद अति आये
इस निम्न रचना को और लोगों / पाठकों तक पहुँचाने हेतु पुनः मै आप सब के सम्मुख रख रहा हूँ कृपया जो पाठक इस रचना को पढ़ चुके हैं मन पर ना लें ………………..
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
————————
कौरव रावण इतिहास बहुत से
अधम नीच नर बदला लेते
अपनी मूंछे ऊंची रखने को
नारी का बलि चढ़ा दिए
अंजाम सदा वे धूल फांक
मुंह छिपा नरक में वास किये
मानव -दानव का फर्क मिटा
मानवता को बदनाम किये
नाली के कीड़े तुच्छ सदा
खुद को भी फांसी टांग लिए
नारी रोती है विलख आज
क्या पल थे ऐसे पूत जने
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
=====================
इन अधम नीच नर से अच्छे
चौपाये जंगल राज भला
हैं वीर बहुत खुद लड़ लेते
मादा को रखें सुरक्षित सा
उनके नैनों में झाँक-झाँक
वे क्रीड़ा-प्रेम बहुत करते
शावक-शिशु मादा सभी निशा
हरियाली-खुश विचरा करते
दिन में असुरक्षित माँ -बहनें -
अपनी- कहते रोना आता
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
=========================
नारी -देवी-लक्ष्मी अपनी
संकोच शील की छवि न्यारी
बिन नारी भवन खंडहर हैं
मंदिर सूना -ना-प्रेम -पुजारी
तितली -बदली-चन्दा -गुलाब
हैं जेठ दुपहरी शीतल छाया
चन्दन-खुशबू-कुंकुम -पराग
मधु-मधुर बहुत अनुपम-माया
है यही मोहिनी सृष्टि यही
जन पूत उसी से मिटती भी
शीतल गंगा जग सींच रही
ना हो ऐसा वो उबल पड़े
पालन पोषण दुग्धामृत सब
जीवन अपना सब हाथ लिए
इस सृष्टि का मत कर विनाश
देखो कल हों कंकाल पड़े
नारी दुर्गा -काली -चण्डी
है रौद्र रूप बच के रहना
दया स्नेह संस्कार मूर्ति
हिय भरे नेह गर बच रहना
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
====================
इस उपर्युक्त रचना को और लोगों / पाठकों तक पहुँचाने हेतु पुनः मै आप सब के सम्मुख रख रहा हूँ कृपया जो पाठक इस रचना को पढ़ चुके हैं मन पर ना लें आप सब का बहुत बहुत आभार और धन्यवाद ……………….
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
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कौरव रावण इतिहास बहुत से
अधम नीच नर बदला लेते
अपनी मूंछे ऊंची रखने को
नारी का बलि चढ़ा दिए
अंजाम सदा वे धूल फांक
मुंह छिपा नरक में वास किये
मानव -दानव का फर्क मिटा
मानवता को बदनाम किये
नाली के कीड़े तुच्छ सदा
खुद को भी फांसी टांग लिए
नारी रोती है विलख आज
क्या पल थे ऐसे पूत जने
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
=====================
इन अधम नीच नर से अच्छे
चौपाये जंगल राज भला
हैं वीर बहुत खुद लड़ लेते
मादा को रखें सुरक्षित सा
उनके नैनों में झाँक-झाँक
वे क्रीड़ा-प्रेम बहुत करते
शावक-शिशु मादा सभी निशा
हरियाली-खुश विचरा करते
दिन में असुरक्षित माँ -बहनें -
अपनी- कहते रोना आता
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
=========================
नारी -देवी-लक्ष्मी अपनी
संकोच शील की छवि न्यारी
बिन नारी भवन खंडहर हैं
मंदिर सूना -ना-प्रेम -पुजारी
तितली -बदली-चन्दा -गुलाब
हैं जेठ दुपहरी शीतल छाया
चन्दन-खुशबू-कुंकुम -पराग
मधु-मधुर बहुत अनुपम-माया
है यही मोहिनी सृष्टि यही
जन पूत उसी से मिटती भी
शीतल गंगा जग सींच रही
ना हो ऐसा वो उबल पड़े
पालन पोषण दुग्धामृत सब
जीवन अपना सब हाथ लिए
इस सृष्टि का मत कर विनाश
देखो कल हों कंकाल पड़े
नारी दुर्गा -काली -चण्डी
है रौद्र रूप बच के रहना
दया स्नेह संस्कार मूर्ति
हिय भरे नेह गर बच रहना
कायर हैं वे लोग यहाँ
नारी को आँख दिखाते हैं
कमतर कमजोर हैं वे नर भी
नारी को ढाल बनाते हैं
====================
इस उपर्युक्त रचना को और लोगों / पाठकों तक पहुँचाने हेतु पुनः मै आप सब के सम्मुख रख रहा हूँ कृपया जो पाठक इस रचना को पढ़ चुके हैं मन पर ना लें आप सब का बहुत बहुत आभार और धन्यवाद ……………….
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ५ ‘
कुल्लू हिमाचल
भारत
7.30 A.M. -8.15 P.M.
13.06.2014
कुल्लू हिमाचल
भारत
7.30 A.M. -8.15 P.M.
13.06.2014
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Monday, 23 June 2014
"आज से ब्लॉगिंग बन्द" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों।
फेस बुक पर मेरे मित्रों में एक श्री केवलराम भी हैं।
उन्होंने मुझे चैटिंग में आग्रह किया कि उन्होंने एक ब्लॉगसेतु के नाम से एग्रीगेटर बनाया है। अतः आप उसमें अपने ब्लॉग जोड़ दीजिए।
मैेने ब्लॉगसेतु का स्वागत किया और ब्लॉगसेतु में अपने ब्लॉग जोड़ने का प्रयास भी किया। मगर सफल नहीं हो पाया। शायद कुछ तकनीकी खामी थी।
श्री केवलराम जी ने फिर मुझे याद दिलाया तो मैंने अपनी दिक्कत बता दी।
इन्होंने मुझसे मेरा ईमल और उसका पासवर्ड माँगा तो मैंने वो भी दे दिया।
इन्होंने प्रयास करके उस तकनीकी खामी को ठीक किया और मुझे बता दिया कि ब्लॉगसेतु के आपके खाते का पासवर्ड......है।
मैंने चर्चा मंच सहित अपने 5 ब्लॉगों को ब्लॉग सेतु से जोड़ दिया।
ब्लॉगसेतु से अपने 5 ब्लॉग जोड़े हुए मुझे 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि इन महोदय ने कहा कि आप ब्लॉग मंच को ब्लॉग सेतु से हटा लीजिए।
मैंने तत्काल अपने पाँचों ब्लॉग ब्लॉगसेतु से हटा लिए।
अतः बात खत्म हो जानी चाहिए थी।
---
कुछ दिनों बाद मुझे मेल आयी कि ब्लॉग सेतु में ब्लॉग जोड़िए।
मैंने मेल का उत्तर दिया कि इसके संचालक भेद-भाव रखते हैं इसलिए मैं अपने ब्लॉग ब्लॉग सेतु में जोड़ना नहीं चाहता हूँ।
--
बस फिर क्या था श्री केवलराम जी फेसबुक की चैटिंग में शुरू हो गये।
--
यदि मुझसे कोई शिकायत थी तो मुझे बाकायदा मेल से सूचना दी जानी चाहिए थी । लेकिन ऐसा न करके इन्होंने फेसबुक चैटिंग में मुझे अप्रत्यक्षरूप से धमकी भी दी।
एक बानगी देखिए इनकी चैटिंग की....
"Kewal Ram
आदरणीय शास्त्री जी
जैसे कि आपसे संवाद हुआ था और आपने यह कहा था कि आप मेल के माध्यम से उत्तर दे देंगे लेकिन आपने अभी तक कोई मेल नहीं किया
जिस तरह से बिना बजह आपने बात को सार्जनिक करने का प्रयास किया है उसका मुझे बहुत खेद है
ब्लॉग सेतु टीम की तरफ से फिर आपको एक बार याद दिला रहा हूँ
कि आप अपनी बात का स्पष्टीकरण साफ़ शब्दों में देने की कृपा करें
कोई गलत फहमी या कोई नाम नहीं दिया जाना चाहिए
क्योँकि गलत फहमी का कोई सवाल नहीं है
सब कुछ on record है
इसलिए आपसे आग्रह है कि आप अपन द्वारा की गयी टिप्पणी के विषय में कल तक स्पष्टीकरण देने की कृपा करें 24/06/2014
7 : 00 AM तक
अन्यथा हमें किसी और विकल्प के लिए बाध्य होना पडेगा
जिसका मुझे भी खेद रहेगा
अपने **"
--
ब्लॉग सेतु के संचालकों में से एक श्री केवलराम जी ने मुझे कानूनी कार्यवाही करने की धमकी देकर इतना बाध्य कर दिया कि मैं ब्लॉगसेतु के संचालकों से माफी माँगूँ।
जिससे मुझे गहरा मानसिक आघात पहुँचा है।
इसलिए मैं ब्लॉगसेतु से क्षमा माँगता हूँ।
साथ ही ब्लॉगिंग भी छोड़ रहा हूँ। क्योंकि ब्लॉग सेतु की यही इच्छा है कि जो ब्लॉगर प्रतिदिन अपना कीमती समय लगाकर हिन्दी ब्लॉगिंग को समृद्ध कर रहा है वो आगे कभी ब्लॉगिंग न करे।
मैंने जीवन में पहला एग्रीगेटर देखा जिसका एक संचालक बचकानी हरकत करता है और फेसबुक पर पहल करके चैटिंग में मुझे हमेशा परेशान करता है।
उसका नाम है श्री केवलराम, हिन्दी ब्लॉगिंग में पी.एचडी.।
इस मानसिक आघात से यदि मुझे कुछ हो जाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी ब्लॉगसेतु और इससे जुड़े श्री केवलराम की होगी।
आज से ब्लॉगिंग बन्द।
और इसका श्रेय ब्लॉगसेतु को।
जिसने मुझे अपना कीमती समय और इंटरनेट पर होने वाले भारी भरकम बिल से मुक्ति दिलाने में मेरी मदद की।
धन्यवाद।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
Saturday, 14 June 2014
यह पड़ाव कब पार हो
28 अगस्त, 2011
यह पड़ाव कब पार हो

जीवन की लंबी डगर पर
देखे कई उतार चढ़ाव
अनेकों पड़ाव पार किये
फिर भी विश्वास अडिग रहा |
कभी हार नहीं मानी
जीवन लगा न बेमानी
जटिल समस्याओं का भी
सहज निदान खोज पाया |
आशा निराशा के झूले में
भटका भी इधर उधर
कभी सफलता हाथ लगी
घर असफलता ने घेरा कभी |
अनेकों बार राह भूला
फिर उसे खोज आगे बढ़ा
ऊंची नींची पगडंडी पर
जीवन यूँ ही चलता रहा |
जीवन इतना दूभर होगा
इस अंतिम पड़ाव पर
कभी सोचा न था
ना ही कल्पना की इसकी |
आज हूँ उदास ओर बेचैन
यह राह कब समाप्त हो
कर रहा हूँ इन्तजार
यह पड़ाव कब पार हो |
आशा
देखे कई उतार चढ़ाव
अनेकों पड़ाव पार किये
फिर भी विश्वास अडिग रहा |
कभी हार नहीं मानी
जीवन लगा न बेमानी
जटिल समस्याओं का भी
सहज निदान खोज पाया |
आशा निराशा के झूले में
भटका भी इधर उधर
कभी सफलता हाथ लगी
घर असफलता ने घेरा कभी |
अनेकों बार राह भूला
फिर उसे खोज आगे बढ़ा
ऊंची नींची पगडंडी पर
जीवन यूँ ही चलता रहा |
जीवन इतना दूभर होगा
इस अंतिम पड़ाव पर
कभी सोचा न था
ना ही कल्पना की इसकी |
आज हूँ उदास ओर बेचैन
यह राह कब समाप्त हो
कर रहा हूँ इन्तजार
यह पड़ाव कब पार हो |
आशा
Wednesday, 14 May 2014
बात पिछले साल की
बात पिछले साल की
पिछले वर्ष ना जाने क्या हुआ इन्द्र देव अचानक रूठ गए | जब गर्मी आई तो बिना पानी के बहुतसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा |पहले नल रोज आते थे , फिर ४ दिनमें एक बार और बाद में यह स्थिती हो गई की नल में टपकती पानी की एक बूंद देखने को भी तरस गए | टेंकरों से दूर दूर से पानी लाया जाता था | अन्य स्त्रोतों को भी सफाईके बाद उपयोग में लाया गया | पर फिर भी पूर्ति न हो पाई शहर से बहुत दूर के जल स्त्रोत से चैनल कटिंग कर बहुतही महंगी योजना अपना कर पानी सोने के भाव उपलब्ध हुआ | पर जैसेही स्थिति सामान्य हुई , मानसून सक्रीय हुआ हमें अखवार में पढने को मिला की इतनी मेहनत से बनाई गई चैनल को समाप्त किया जा रहा है | मै कई दिन तक सोचती रही उसको तोड़ने से क्या फायदा हुआ इतना धन उसे बनाने में लगा और फिर उसे तोड़ने में |क्या यह धन का दुरूपयोग नहीं है ? यदि उस स्त्रोत के जल का उपयोग नहीं करना था तब भी उसे यथावत रख कर फिर किसी कठिन समय के लिए सहेजा जा सकता था | क्या पता कब इसकी आवश्यकता हो जाती |पर शान को कौन समझाए , बार बार की तोडा फोड़ी सरकारी खर्च को बढ़ती है | इससे लाभ की जगह हानी ही होती है जितना सरकार खर्च करती है , उसका प्रभाव आम नागरिकपर ही तो पड़ता है |
आशा
|
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Saturday, 10 May 2014
माँ
तुम्हारे नेह बंध का सार
मुझ में साहस भर देता है
नहीं मानती हार
माँ तुझे मेरा शत-शत प्रणाम |
आज जहाँ मै खड़ी हुई हूँ
जैसी हूँ ,तुमसे ही हूँ मैं
मुझे यही हुआ अहसास
माँ तुझे मेरा प्रणाम |
तुमने मुझ में कूट- कूट कर
भरा आत्म विश्वास
माँ मेरा तुझे शत-शत प्रणाम |
न कोई वस्तु मुझे लुभाती
कभी किसी से ना भय खाती
रहती सदा ससम्मान
माँ मेरा तुझे हर क्षण प्रणाम !
Saturday, 12 April 2014
'आम' आदमी बन जाऊं
'आम' आदमी बन जाऊं
----------------------
मन खौले 'शक्ति' की
खातिर
'आम' आदमी बन जाऊं
भीड़ हमारे साथ चले
तो
रुतबा मै भी कुछ पाऊँ
अगर 'सुरक्षा' चार
लगे तो
शायद 'थप्पड़' ना खाऊं
अंकुर उभरा दबा -दबा
मै
टेढ़ा -मेढ़ा ऊपर आया
ऊपर हवा स्वर्ग सी
सुन्दर
मान के सीढ़ी चढ़ आया
'सिर ' ऊपर तलवार है लटकी
आज समझ मै ये पाया
कहाँ रहूँ नीचे है
दल-दल
ऊपर बिजली गिरती गाज
मूंड मुंडाए गिरते
ओले
जान बचाऊं करून क्या
काज ?
डाकू 'वो' लूटें सब
अच्छा
निजी कमाई मै बदनाम
सौ कमरों में गुप्त
खजाने
भोले भले नेता जी
'दो' से 'चार' अगर
मेरा हे!
जनता को मै लूटा जी
यारों आओ अब जागें
हम
सच ईमाँ को चुन लाएं
जाति धर्म को दूर रखें
हम
कर 'विकास' आगे आयें
अपना भारत स्वर्ग अभी
भी
फूट-फूट कर हम रोते
आओ मिल सब हाथ मिला
लें
सिर धुन देखो वे रोते
प्रतिनिधि अपने जाएँ सच्चे
दर्द व्यथा जो अपनी
समझें
'फूल' खिला अपनी क्यारी
में
गुल-गुलशन बगिया महके
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
'भ्रमर ' ५
६.५५-७.२० पूर्वाह्न
जम्मू ३०.३.१४
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Location:
Unknown location.
Sunday, 30 March 2014
सरदी ने पीठ दिखाई
मौसम ने ली अंगडाई
सर्दी ने पीठ दिखाई
धूप के तेवर बदले
वे भी लगे बदले बदले
पैर जलते धूप में
पिधलता डम्बर
पक्की सड़क पर
चलना दूभर होता
घर के बाहर
फिर भी कोई
काम न रुकता
जीवन यूं ही चलता रहता |
आशा
Sunday, 16 March 2014
छोरी छोरवन क अजब धमाल है कान्हा की कारगुजारी। …
आज उड़त अबीर गुलाल
छोरी छोरवन क
अजब धमाल
=================
मिटटी लेप किये
कोई कजरा लगाये
बनरे लाल मुख
धारी कोई लंगूर आये
कुर्ता टोपी रंगे
कोई कपड़ा भी फाड़े
छोटी बड़ी पिचकारी
रंग मारे बौछारें
ढोल मजीरा कोई
पीटे है ताली
है कान्हा की
कारगुजारी। … -----
आज उड़त अबीर गुलाल
छोरी छोरवन क
अजब धमाल
===========================
काला मुख लिए
मोतियन सी आँखें
राधा गोपियन की
टोली है राह में ताके
तिरिया चक्कर से
बच चलो झांके
कान्हा ग्वालों
की अटकी रे साँसें
लिए लट्ठ गजब की
ये होरी
है राधा की
कारगुजारी। ……………।
आज उड़त अबीर गुलाल
छोरी छोरवन क
अजब धमाल
है कान्हा की
कारगुजारी। …
============================
लाल गाल वाली सभी
हरी पीली रंगी
चोली घाँघरा चूनर
है अजब सतरंगी
गायें फगुवा कड़क
जैसे दामिनि
काली दुर्गा ये
प्रेम रंगी कामिनि
अरी ! होली है या
री कबड्डी। …
है राधा की
कारगुजारी -----------
आज उड़त अबीर गुलाल
छोरी छोरवन क
अजब धमाल
है कान्हा की
कारगुजारी। …
=========================
खाये भंग पिए हैँ
ठंडाई
ऋतु वासन्ती इनपे
है छायी
प्रेम परवान जोड़ी
बनि के आयी
कामदेव नजरों में
खुमारी है छायी
इन्द्र दरबार
परियाँ ज्यों आयीं -----
है कान्हा की
कारगुजारी ---------
आज उड़त अबीर गुलाल
छोरी छोरवन क
अजब धमाल
है कान्हा की
कारगुजारी। …
==========================
पहने साड़ी बने
कान्हा नारी
सेंध लाये धरे
राधा प्यारी
ह हा हि ही
हुल्लड़ गायें होरी
चूर मस्ती गजब
खेलें होरी
छलके रस-रास
यादगार होरी
है कान्हा की
कारगुजारी। ।
आज उड़त अबीर गुलाल
छोरी छोरवन क
अजब धमाल
===================
सुरेन्द्र कुमार
शुक्ल 'भ्रमर'५
प्रतापगढ़ भारत
१५. ०३. १४
१० से १०.
२५
हरदोई -लखनऊ
मार्ग
लौह पथ गामिनी
में
==================
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Saturday, 15 March 2014
फूल और ओस
होली के अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
(१)
फूल क्या जिसने
ओस से प्यार न किया हो
फूल क्या जिसने
ओस से प्यार न किया हो
भावों में बह कर उसे
बाहों में न लिया हो |
(२)
टपकती ओस
ठिठुरन भरी सुबह की धुप
देखे बिना चैन नहींआता
ओस में नहाया पुष्प
अनुपम नजर आता |
(३)
टपकती ओस
ठिठुरन भरी सुबह की धुप
देखे बिना चैन नहींआता
ओस में नहाया पुष्प
अनुपम नजर आता |
(३)
फूलों की फूलों से बातें
कितनी अच्छी लगती हैं
प्यार भरी ये सौगातें
मन को सच्ची लगती हैं |
कितनी अच्छी लगती हैं
प्यार भरी ये सौगातें
मन को सच्ची लगती हैं |
Monday, 17 February 2014
‘लोरी’ गा के मुझे सुलाना
‘लोरी’ गा के मुझे सुलाना
-------------------------------
जोह रही हैं बाट
लाल हमारे कब आयेंगे
धुंध पड़ी अब आँख
—————————-
जब उंगली पकड़ाये चलती
कही कभी थी बात
मै आज सहारा दे सिखलाती
जब बूढी तुम थामना हाथ
—————————-
सूरज मेरा पढ़ा लिखा था
संस्कृति अपनी था सीखा
मात पिता के थे सारे गुण
प्रेम, कर्म से भरा जोशीला
—————————-
घर में रोटी दाल सभी थी
मै ही थी पगलाई
जो विदेश खेती गिरवी रख
लाल को मै भिजवायी
—————————-
बहुत कमाया प्य्रार जताया
अभी और पढता हूँ माँ
कल जब पढ़ लिख पक्का हूँगा
तुझको ले आऊंगा माँ
———————————–
तब तो चिट्ठी आ जाती थी
हँस -रो के मै खा लेती थी
अब रो-रो ही खाती जीती
जितने दिन हैं सांसे चलती
———————————
‘बुरी नजर’या हुआ विदेशी
कौन कला पश्चिम की भायी
सौ गुण युक्त ये सोने चिड़िया
काहे उसको रास न आयी
———————————
बापू तेरे जर्जर हो गए
ठठरी पंजरी पड़ गये खाट
कुछ दिन चल फिर मै कर लूँगी
आँख अँधेरा कल क्या राम !
————————————–
रामचन्द्र का तो ‘चौदह’ था
तेरा कितना हे ! वनवास
क्रोध गुरेज नहीं है मन में
‘नजर’ भरूं ‘आ’ देखूँ आस
——————————–
दिल ये हहर-हहर कर टीसे
जब आते हैं उनके लाल
होली-दीवाली फागुन रंग
हम दो के सपनों की बात
————————————–
अपना देश भी किया तरक्की
घडी घडी अब होती बात
क्यों भूला सब माँ ममता रे !
भूले-विसरे कर ले बात
————————————-
मेरे दिल का दर्द प्रेम क्या
तेरे दिल को ना तड़पाता
‘खून’ मेरा क्या तेरे खून से
जुदा हुआ सब तोड़े नाता
———————————
मर गयी या संवेदना तेरी
तू ‘मशीन’ अब यूरोप का
प्रेम प्यार रिश्ते-नातों की
मातृ-भूमि ना मया-दया
——————————–
‘आ’ बेटा आ अन्त समय ही
मेरी उंगली थाम दिखाना
मुँह में गंगा जल थोड़ा सा
‘लोरी’ गा के मुझे सुलाना
——————————–
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ५ ‘
करतारपुर , जालंधर
पंजाब
१५-०२ -२०१४
४-४. ३५ मध्याह्न
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ५ ‘
करतारपुर , जालंधर
पंजाब
१५-०२ -२०१४
४-४. ३५ मध्याह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
Location:
Jalandhar, Punjab, India
Friday, 31 January 2014
है कौन दोषी
01 फ़रवरी, 2011
पैर पसारे भ्रष्टाचार ने
अनाचार ने,
नक्सलवादी उग्रवादी
अक्सर दीखते यहाँ वहाँ |
कोई नहीं बच पाया
मँहगाई की मार से ,
इन सब के कहर से
भटका जाने कहाँ-कहाँ |
जन सैलाब जब उमड़ा
इनके विरोध में
पर प्रयत्न रहे नाकाम
होता नहीं आसान
इन सब से उबरना |
है यह ऐसा दलदल
जो भी फँस जाता
निकल नहीं पाता
दम घुट कर रह जाता |
यह दोष है लोक तंत्र का
या प्रदेश की सरकार का
या शायद आम आदमी का
सच्चाई है क्या ?
जानना हो कैसे सम्भव
हैं सभी बराबर के दोषी
कोई नहीं अछूता इन से
जब खुद के सिर पर पड़ती है
पल्ला झाड़ लेते हैं |
असफल गठबंधन सरकारें
नेता ही नेता के दुश्मन
ढोल की पोल खोल देते
जब भी अवसर हाथ आता |
आम आदमी
मूक दृष्टा की तरह
ठगा सा देखता रहता
देता मूक सहमति
हर बात में |
क्या दोषी वह नहीं ?
वह विरोध नहीं कर पाता
मुँह मोड़ लेता सच्चाई से
इसी लिए तो पिस रहा है
खुद को धँसता पा रहा है
आज इस दल दल में |
आशा
अनाचार ने,
नक्सलवादी उग्रवादी
अक्सर दीखते यहाँ वहाँ |
कोई नहीं बच पाया
मँहगाई की मार से ,
इन सब के कहर से
भटका जाने कहाँ-कहाँ |
जन सैलाब जब उमड़ा
इनके विरोध में
पर प्रयत्न रहे नाकाम
होता नहीं आसान
इन सब से उबरना |
है यह ऐसा दलदल
जो भी फँस जाता
निकल नहीं पाता
दम घुट कर रह जाता |
यह दोष है लोक तंत्र का
या प्रदेश की सरकार का
या शायद आम आदमी का
सच्चाई है क्या ?
जानना हो कैसे सम्भव
हैं सभी बराबर के दोषी
कोई नहीं अछूता इन से
जब खुद के सिर पर पड़ती है
पल्ला झाड़ लेते हैं |
असफल गठबंधन सरकारें
नेता ही नेता के दुश्मन
ढोल की पोल खोल देते
जब भी अवसर हाथ आता |
आम आदमी
मूक दृष्टा की तरह
ठगा सा देखता रहता
देता मूक सहमति
हर बात में |
क्या दोषी वह नहीं ?
वह विरोध नहीं कर पाता
मुँह मोड़ लेता सच्चाई से
इसी लिए तो पिस रहा है
खुद को धँसता पा रहा है
आज इस दल दल में |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
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