मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
माँ के जैसी साथ
निभाया गुरु कह माथ नवाओ
ऊँगली पकडे चले
-सिखाया -आओ साथ निभाओ
जैसा प्रेम दिया
मैंने है जग में जा फैलाओ
उन्हें ककहरा अ आ
इ ई जा के ज़रा सिखाओ
संधि करा दो छंद
सिखा दो अलंकार सिखलाओ
प्रेम वियोग विरह
रस दे के अंतर ज्योति जलाओ
रच कविता जीवन दे
उसमे कर श्रृंगार जगा दो
करुणा दया मान मर्यादा सम्पुट हिंदी खोल बता दो
देव-नागरी लिपि
है आत्मा परम-आत्मा कहिये
ज्ञान का है
भण्डार ये हिंदी भाषा-भाषी ग्यानी कहिये
सरल ज्ञान नेकी
है जिन दिल ना इन्हें मूढ़ समझिये
मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
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मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
हिंदी है कमजोर
या सस्ती मूढ़ आत्मा ना बनिए
डूबो पाओ मोती
गूंथो विश्व-बाजार में फिर -फिरिए
बीज को अपने खेती
अपनी जो ना मान दिया तूने
बिना खाद के जल
के जीवन मिटटी मिला दिया तूने
अहं गर्व सुर-ताल
चूर कर गोरी चमड़ी भाषा झांके
वेद शास्त्र सब ग्रंथन को रस-रच हिंदी काहे कम आंके
पत्र-पत्रिका
चिट्ठी-चिट्ठे ज्ञान अपार भरा हिंदी में
रोजगार व्यवहार
सरल है साक्षात्कार कर लो हिंदी में
हिंदी भत्ता वेतन
वृद्धि खेत कचहरी हिंदी आँको
हिंदी सहमी दूर
कहीं जो गलबहियां जाओ तुम डालो
हार 'नहीं' है 'हार' तुम्हारा विजय पताका जा फहराओ
इस हिंदी की
बिंदी को तुम माँ भारति के भाल सजाओ
कल्पतरु सी गुण
समृद्धि सब देगी हिंदी नाज से कहिये ……..
मै संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै
हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
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सुरेन्द्र कुमार
शुक्ल ' भ्रमर ५'
११ -१ १ .५ ०
मध्याह्न
३ ० सितम्बर २ ०
१ ३
प्रतापगढ़
वर्तमान कुल्लू
हिमाचल भारत
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
2 comments:
भावपूर्ण रचना मन को छू गई |
आशा
आदरणीया आशा जी अपनी प्यारी हिंदी के मान में आप का समर्थन मिला ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५
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