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Monday, 30 September 2013

हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये

मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
माँ के जैसी साथ निभाया गुरु कह माथ नवाओ
ऊँगली पकडे चले -सिखाया -आओ साथ निभाओ
जैसा प्रेम दिया मैंने है जग में जा फैलाओ
उन्हें ककहरा अ आ इ ई जा के ज़रा सिखाओ
संधि करा दो छंद सिखा  दो अलंकार सिखलाओ
प्रेम वियोग विरह रस दे के अंतर ज्योति जलाओ
रच कविता जीवन दे उसमे कर श्रृंगार जगा दो
करुणा  दया मान मर्यादा सम्पुट हिंदी खोल बता दो
देव-नागरी लिपि है आत्मा परम-आत्मा कहिये
ज्ञान का है भण्डार ये हिंदी भाषा-भाषी ग्यानी कहिये
सरल ज्ञान नेकी है जिन दिल ना इन्हें मूढ़ समझिये
मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
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मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
हिंदी है कमजोर या सस्ती मूढ़ आत्मा ना बनिए
डूबो पाओ मोती गूंथो विश्व-बाजार में फिर -फिरिए
बीज को अपने खेती अपनी जो ना मान दिया तूने
बिना खाद के जल के जीवन मिटटी मिला दिया तूने
अहं गर्व सुर-ताल चूर कर गोरी चमड़ी भाषा झांके
वेद  शास्त्र सब ग्रंथन को रस-रच हिंदी काहे कम आंके
पत्र-पत्रिका चिट्ठी-चिट्ठे ज्ञान अपार भरा हिंदी में
रोजगार व्यवहार सरल है साक्षात्कार कर लो हिंदी में
हिंदी भत्ता वेतन वृद्धि खेत कचहरी हिंदी आँको
हिंदी सहमी दूर कहीं जो गलबहियां जाओ तुम डालो
हार 'नहीं' है 'हार' तुम्हारा विजय पताका जा फहराओ
इस हिंदी की बिंदी  को तुम माँ भारति  के भाल सजाओ
कल्पतरु सी गुण समृद्धि सब देगी हिंदी नाज से कहिये ……..
मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ' भ्रमर ५'
११ -१ १ .५ ० मध्याह्न
३ ० सितम्बर २ ० १ ३
प्रतापगढ़

वर्तमान कुल्लू हिमाचल भारत


सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Saturday, 14 September 2013

धर्म की आड़ में

तेरा क्यों सम्मान करें ,
जो बार-बार सबने चाहा ,
तेरा धरम से क्या नाता ,
तू तो केवल चेक भुनाता ,
धर्म गुरू लोगों ने कहा ,
पर तू ना निकला सन्यासी ,
अरे धर्म का नाम डुबा,
कितने ढोंग रचाये तूने ,
जो चाहा जितना चाहा ,
शिष्यों से पाया तूने ,
मन भूखा तेरा तन भूखा ,
अरे मूर्ख अत्याचारी,
तेरे जैसे कई लोगों ने ,
धर्म की नींव हिला डाली ,
कई बार धर्म की आड़ लिए ,
लोगों को बर्बाद किया ,
जिनको माँ और बहन कहा ,
उनको ही गुमराह किया ,
किसी समस्या में फँस कर ,
मन का चैन खो जाने पर ,
आत्मशांति की चाहत में ,
यदि तेरी कोई शरण आया ,
शरणागत को खूब लुभा ,
कमजोर क्षणों का लाभ उठाया ,
आस्था का जाल बिछा,
अंधविश्वासी उसे बनाया ,
एक बालिका मैंने देखी ,
जिसने माँ की गलती झेली,
बाबा के चक्कर में फँस कर ,
वह मुग्धा बन बैठी चेली ,
पढ़ा लिखा सब धूल हो गया ,
खुद से ही खुद को बिसराया ,
बाबा ही शान्ति देते हैं ,
हर क्षण उसके संग रहते हैं ,
नहीं असहाय लाचार रहे ,
मन में ऐसा भाव जगाया ,
जो कुछ भी वह करती है ,
या बात किसी से करती है ,
बाबा सारी बातें उसकी ,
पूरी-पूरी सुन सकते हैं ,
उसको शक्ती देते हैं ,
मन में यह भ्रम रखती है ,
ऐसे ही कुछ बाबाओं ने,
धर्म ग्रंथों से नाता जोड़ा ,
अच्छी भाषा लटके झटके ,
व चमत्कार सबसे हटके ,
लोगों से नाता जोड़ा ,
ली धर्म की आड़ ,
अपने रंग में उन्हें डुबोया ,
जब कोई बुद्धिजीवी आया ,
सारी पोल पकड़ पाया ,
जैसे ही मुख से हटा मुखौटा ,
असली रूप नजर आया ,
तू बाबा है या व्यभिचारी ,
या है कोई संसारी ,
तेरी दरिंदगी देख-देख,
नफरत दिल में पलती है ,
आस्था जन्म नहीं लेती ,
मन में अवसाद ही भरती है|


आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

Monday, 2 September 2013

प्रेरणा शिक्षक से

आसपास के अनाचार से  
खुद को बचाकर रखा 
पंक में खिले कमल की तरह 
कीचड से स्वम् को बचाया तुमने 
सागर में सीपी बहुत थी 
अनगिनत मोती छिपे थे जिनमे 
उनमे से कुछ को खोजा 
बड़े यत्न से तराशा तुमने
 जब आभा उनकी दिखती है 
प्रगति दिग दिगंत में फैलती है 
लगता है जाने कितने
 प्यार से तराशा गया है 
उनकी प्रज्ञा को जगाया गया है
काश सभी तुम जैसे होते 
कच्ची माटी जैसे बच्चों को 
इसी प्रकीर सुसंस्कृत करते 
अच्छे संस्कार देते 
स्वच्छ और स्वस्थ मनोबल देते 
अपने बहुमूल्य समय में से 
कुछ तो समय निकाल लेते 
फूल से कोमल बच्चों को ,
विकसित करते सक्षम करते ,
जो कर्तव्य तुमने निभाया है ,
सन्देश है उन सब को 
तुम से कुछ सीख पाएं 
नई पौध विकसित कर पाएं 
खिलाएं नन्हीं कलियों को 
कई वैज्ञानिक जन्म लेंगे 
अपनी प्रतिभा से सब को 
गौरान्वित करेंगे 
जीवन में भी सफल रहेंगे 
अन्य विधाओं में भी 
अपनी योग्यता सिद्ध करेंगे 
जब रत्नों की मंजूषा खुलेगी 
कई अनमोल रत्न निकलेंगे |
आशा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः