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Wednesday, 6 February 2013

अपूर्व सौन्दर्य

गीत हजारों बार सुने
चर्चे भी कई बार किये
सच्ची सुंदरता है क्या
इस तक न कभी पहुँच पाये
तन की सुंदरता तो देखी
मन की सीरत न परख पाये
ऐसा शायद विरला ही होगा
जो तन से मन से सुंदर हो
सुंदर सुंदर ही रहता है
मन से हो या तन से हो
यदि कमी कोई ना हो
फिर शिव वह क्यों ना कहलाये
यह तो दृष्टिकोण है अपना
किसको सुंदर कहना चाहे
जिसको लोग कुरूप कहें
वह भी किसी मन को भाये
आखिर सुंदरता है क्या
परिभाषा सुनी हजारों बार
जो प्रथम बार मन को भाये
सबसे सुंदर कहलाये
नहीं जरूरी सब सुंदर बोलें
विशिष्ट अदा को सब तोलें
जिसने चाहा और अपनाया
उसने क्या पैमाना बनाया
तन की सुंदरता देखी
मन को नहीं माप पाया
जिसने जिस को जैसे देखा
अपने मापदण्ड से परखा
उसको विरला ही पाया
अन्यों से हट के पाया
जब आँखें बंद की अपनी
कैद उसे आँखों में पाया
तन तो सुंदर दिखता सबको
मन को कोई न समझ पाया
ऐसा कोई नाप नहीं
जो सच्चा सौंदर्य परख पाता
सबने अपने-अपने ढंग से
सुंदरता को जाँचा परखा
ख़ूबसूरती होती है क्या
कोई भी नहीं जान पाया
यह तो अपनी इच्छा है
किसको सुंदर कहना चाहे
वही मापदण्ड अपनाये
जो उसके मन को भाये |
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः

2 comments:

Madan Mohan Saxena said...

Nice information. Thanks for sharing.


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SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

आदरणीया आशा जी ..बहुत सुन्दर ..सच.. सब के लिए ख़ूबसूरती , सौन्दर्य की अलग परख है ..कभी चाहत ,कभी प्रेम , कभी चेहरा , कभी आँखें, कभी गोरे को कभी काली को ...कुछ भी मन मिल जाए नैन खिल जाएँ मन सुन्दर हो गुण हो बस ....
भ्रमर ५